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उद्धृतः पाठः
पावं काऊरण सयं
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पास त्योसपण कुसील०
पिब खाद च साधु शोभने
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29 प्रियादर्शनमेवास्तु
110 5 फासे व भद्दयाव
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पियत भाइडिङगा०
पिंडस्स जा विसोही ०
पिंडोलगे य दुस्सीले ०
पुढविकाए र भ
पुद्गलकर्म शुभं पत्
पुप्फफलाणं च रसं सुराइ
पुराणं मानवो धर्मः
पुरुष एवेदं सर्वं
33
पुव्वाणुपुव्वि हेट्ठा
तास
पुचि बुद्धीए पेहिता
प्रकृतिः करोति पुरुष उपभुङ्क्ते
प्रकृतेर्महान् महतोऽहङ्कार ०
प्रतिकर्तुमशक्तिष्ठा प्रमाणपदकविज्ञा
12 बंधट्ठई कसायवसा
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26
17
प्राणिनां बाधकं चैतत्
प्राणी प्राणज्ञानं ०
प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण
33
बद्धा मुक्ताश्च कथ्यन्ते
बायालीसेसर संकमि
बाबई व सुरक्षा
बारसविहे कसाए०
वृद्धियो
ब्रह्मा लूनशिरा हरि०
ब्रुवाणोऽपि न्याय्यं
भक्खेसु य भद्दयपावएसु
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L.
उद्धृतः पाठः
भक्षणीयं भवेन्यांसं
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37 मारगुरवेलजाई
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भवकोटीभिरसुलभं [प्रशमरतौ ]
भुक्तभोगो पुरा जोऽवि
भूतस्य भाविनो वा भावस्य
भूतिया किया संव
भूतेषु जङ्गमत्वं
भोगे अवयक्वंता पडंति
मज्जं विसयकसाया
मरगुणं भोक्तुं भोच्या
मतिविभव ! नमस्ते
ममाहमिति चैत्र यावदभिमान
मया परिजनस्यार्थे
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महिला य रत्तमेत्ता ०
महिला दिन करेज्ज०
महुरा य सूरसेगा ०
"
मातापितरौ हत्वा बुद्धशरीरे.
मातापितृसहस्राणि
मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा
मातृवत्परदाराणि
मायाशीलः पुरुषः [प्रशमरतौ ]
मारे जियंत पि
मासैरष्टभिराच
मा विसं ता
मा होहि रे विसन्नो जीव० मितमहररिभिजे पुनहि
मुक्ककरूंदकडाडुनरुत
मूडनइयं यं कालिये
मुण्डं शिरो वदनमेतदनिष्टगन्धं
8 मुष्टिनाssच्छादयेल्लक्ष्यं
19
मुलं चैतदधर्मस्य
1
मूलं दुम्बरियानं हवइ उ
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29
34
25 मैत्रीप्रमोदकारुण्य माध्यस्थ्यानि
मूलमेयमहम्मस्स
मृद्वी शय्या प्रातरुत्थाय पेया
"
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