Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 742
________________ P. 14 129 63 111 5 85 87 16 129 140 190 117 145 69 12 201 148 27 42 118 150 29 191 158 114 243 231 17 256 Jain Education International L. उद्धृतः पाठः श्रादिपदानि 30 प्रकर्त्ता निर्गुणो भोक्ता 5 1 अक्कोसहणणमारण 38 16 अक्तरलंभेण समा 21 अच्छड्डयविसयसुहो 20 प्रच्छिरिणमीलरणमेत्तं 28 प्रच्छेद्योऽयमभेद्योऽय सूत्रकृताङ्गस्य शीलाचार्यविरचितवृत्तावृद्धताः पाठाः P. 123 168 201 11 20 25 27 30 अजरामरवद् बालः 12 प्रज्ञानिकवादिमतं 27 13 7 22 7 25 31 32 7 20 17 पो जन्तुरनो ट्ठकुक्कुडिडगमेत्तप्पमाणे 5 अद्धमसरणस्स सब्बंजरगस्स 33 प्रषीरव शास्त्राणि भवन्ति मूल अनुमन्ता विशसिता अनेन व्रतभंगेन अन्नं पानं च वस्त्रं व अन्यथाऽनुपपन्नत्वं अन्यथा कुंभकारेण अणुहूयदिट्ठिचितिय पलं भांति पुरो अत्थि मे प्राया उववाइए 40 93 23 अन्यैः स्वेच्छारचितानर्थविशेषान् 6 अपकारसमेन कर्मणा 13 अपवर्ततेऽकृतार्थ [केवलिभुक्तिप्रकरणे ] अपेक्षेत परं कश्चित अप्पत्तियं जेरण सिया " 57 43 170 271 53 42 265 114 16 69 131 237 75 70 24 111 164 31 7 29 18 79 85 1 26 253 255 L. 3: 413: पाठः 1 7 7 24 8 14 30 19 21 1 27 30 33 26 30 मध्ये बहुमेसेज्जा अप्रशान्तमतौ शास्त्र अब्भंगेरण व सगडं ग श्रमित्तो मित्तवेसेणं 8 8 For Private & Personal Use Only अर्थानामर्जने दुःखम् अहं (ह) यदि सर्वशो अलं कुतीर्थैरिह प्रवराहस पुणे अवाप्य मानुषं जन्म अविज्ञानोपचितं परिज्ञानी' अशाश्वतानि स्थानानि सदकरणादुपादानग्रहणात् [ सांख्यकारिकायाम् ] प्रसयारंभारण तहा असियसयं किरियागं 16 1 5 37 भामुष्टेन मतिमता तत्त्वार्थविचारणे 5 प्रति मरस्यस्तिमिर्नाम ग्रह एयाणं पगई अहवा को जुवईणं आकारैरिङ्गितैर्गत्या 11 35 पाग्रही बत निनीषति युक्ति 16 आसज्ज उ सोयारं 7 15 26 27 18 36 प्रासीदिदं तमोभूत इत एकनवते कल्पे इदं तत्स्नेह सर्वस्वं इयं भीसरणंमि गिरए० उक्तार्थं ज्ञातसंबन्धं ० उच्चालियंमि पाए० 11 " 27 www.jainelibrary.org

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