Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 727
________________ 364 35 21 P. L. शुद्धः पाठः 55 15 अप्रत्यक्षत्वाच्च नाप्य° 16 °भिघातेन 18 °समायारा 19 केन ? केशानां 28 पलियंतंसि चारि चोरे त्ति 33 चारि चोरित्ति चरोऽयं 34 बालवद् बाला 7 तिव्वसढे त्ति 16 र्यार्थः, इमे 25 °ष्यसीति कृत्वा ततोऽधुना णे अस्मानपि 30 अप्राप्तवया किमपि कर्म साम्प्रतं 13 अनिच्छं गृह 17 निर्धनोऽहमिति इत्येवं 23 गृहवासमनु [प्र.] 25 °न्ति, तत् तत् कुर्वते 26 विबद्धा [प्र.] 29 विबद्धे (?) इत्यादि, विविधं बद्धाः परवशी कृताः विबद्धाः [प्र०] 58 28 °पशमोपगतेन 32 भिक्खुचरियाए 1 चर्या, 1 °दिका वा, तया चो(नो-प्र०)दिता: बाधिताः, यदिवा 18 उद्देशकः 1 अवकप्पंतिम 6 ज्योतिष्क 14 कर्तुं भावाः 60 18 प्रत्युपेक्षिणो 60 28 चपलैः 60 36-37 यदिवा प्राप्तो मोक्षः 61 2 °षन्ते परिभाषन्ते [प्र०] 61 4 मोक्षात् [प्र.] 61 11-12 दलाह त्ति [प्र.] 61 15 °मुपगताः [प्र०] 61 15 तच्च गृहस्थ L. शुद्धः पाठः 21 श्यौद्देशकादि 61 32 औद्दे शिकादि' 61 36 °तयोदकौद्देशिकादिभोजित्वात् 62 32 °जणो वि मोल्ले विसंवयति व्यापारान् शरणं यान्ति 63 20 प्रीतिकारिणं [प्र०] 63 21-22 °च्छीतीभूत° 63 30 तहा तारागणे रिसी 5 तथा तारागणो नाम 64 9 पाराशराख्य [प्र.] 64 14 पीढसप्पी व संभमे 64 22-23 अपि न मोक्ष 64 35 °विलोमभ्यो [प्र०] 14 अयोहारीव 'जूरह' l मन्धाद इति मेषः 4 स्तिमितं 7 दर्भाद्यन्तरणात् 66 9-10 दृष्टान्तैरेव 25 यथा पूतना 31 वीरा 2 वीराः 67 10 धृतिमुषो पूजा कामविभूषा [प्र०] पर्याप्तकापर्याप्तक [प्र.] 67 30 सर्वासु वावस्थासु 689 °नुष्ठाने गच्छेदिति 68 17 प्रागेव नियुक्ति 68 29-30 °विपक्षभूतपुरुष 68 31 पजगणे कम्मे 695 खलियस्स प्रणवत्था 14 मूलावश्यकाद 705 दढमई 6 तथा य एवम्भूतः 7 वीरश्च स्वकर्म 8 पुरुषसम्बन्धे स्त्रीणामपि 14 एवं च यदुक्तं 70 17 उवायं पि 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764