Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 730
________________ 367 98 L. शुद्धः पाठः P. L. शुद्धः पाठः 943 °जला, एतदेव ___1039 शुद्धविषयो 94 14 भोगिनः ।। इति । किञ्चा 1039 मशुद्धविषयो वर्तते, तद्यथा94 17 कंचरण 103 20-22 चडि 94 19 मणुयामरेसुं 104 1 पृथिव्यादिकायेषु भूयो भूयः 24 °मध्यमविपाकम् 104 3 तद्विपर्यासात् 33 जएज्जाह 104 13 बालो योऽस्या 9537 पुच्छिसु 104 16 नरकादौ, तस्य कर्म विपाकं दददेकस्मिन्नेव 38 से के इणेगंतहियं जन्मनि विपाक तीव्र ददाति 968 योऽसाविमं [प्र०] 104 19 °माचरितं 28-29 तत्प्रणीतश्रुतचारित्राख्यं [प्र.] 104 40 पातयेत् त्रिपातयेत् 36 तथासौ [प्र.] 105 21 जीवाकारं यानि विलम्बन्ति धारयन्ति यथा 972 कासवे हि कलला 23 पण्णसा 105 23 °स्थान्तो मनुष्यो भवति एवं 30 महानुभागश्चेति 105 27 देहोपचयार्थ वा 2 वा वि मुदागरे 105 28 प्रागल्भ्याद् धर्मावष्टम्भाथ० [प्र०] 18 संस्पर्शीत्यर्थः 105 30 हरितादीनि 25 मेखलाभिर्दष्ट्रा 105 36-37 पोरिसा य [प्र०] 36 मनोरमः, 1066 लसुणं 17 °निवृत्त्याख्य 106 15 पाणं कुरो छायस्य भुत्तए तित्ती। दुक्खसय99 21 गति संपतत्तं [प्र.] 1002 महानुभागः 106 दुःखमेवाप्नोति 100 18 णवादित्कादित्यभिप्राय: [प्र.] 106 22 धम्मो य दयारहिओ 100 19 चक्रवर्ती यदि वा विश्वसेनाख्योऽर्धचक्रवर्ती, 108 23 °मित्यादि यथासो 107 1 न चैतद् दृष्ट [प्र.] 101 12 वीरे 12 उट्टा दग 101 16 भगवानपि 107 16 सीग्रोदगं [प्र०] 101 24-25 महर्षिश्च एवं च पर 20 °विशेषा एव, ते प्रथम 101 30 पार [प्र०] 10722 नापहरत्येवं कर्म 102 12 पार परलोकाख्यं [प्र.] 107 35 °दोषोपपत्तिरिति [प्र०] 16 °धुवंमि 108 1-2 वि णिहाय 102 16 विरिओ 108 9 कथं सातं सुख 102 20 आगमिष्यन्तीति भविष्यन्ति 108 ___ 13 लषन्त्यशीलाः 103 1 °कोधादी 108 14 तेऽप्कायतेजस्कायारम्भिणो [प्र.] 103 2-3 आभीक्ष्ण्यसेवनायामनवरत [प्र.] 108 15 स्तनन्ति केवलं करुण 103 6 सुद्धे कुत्ति दुगुंछा अपरिसुद्धे [प्र.] 108 16 पृथक् पृथक 103 7 इति स्थितम् । [प्र.] 108 20 उद्देशिक [प्र.] 1038 कुशीला: कुत्सितशीला अशुद्धा 108 21 °जातं निधाय 107 107 102 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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