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सूत्रगाथा
उद्वेग उ भन
छट्ठेण एगया भुंजे"
जो वज्जं समुपवे'
जमाहू बोई सलिलं प्रार
जहा हि वद इह मानवेहि
जं किचुवक्कमं जाणे
जंसिप्पेगे पवेयंति
जाइ च बुढि च इहऽज्ज पासे
जावज्जीवं परीसहा
जीवियं नाभिकंखिज्जा
जे के इमे अगारत्था
णच्चा णं से महावीरे
जिद्दपि नोपगामाए
णो चेविमेण वत्थेण
जो सुकरमेयमेसि
णो सेवइ य परवत्थं
तणफासे सीयफासे य
ततविततं पणं खरं
तम्हातिविज्जो परमंति पन्ना
तह प्यारेहि जणेहि हीलिए "
तहागयं भिक्खुमणं तसं जयं
तहा विमुक्कस्स परिन्नचारिणो.
तंसि भगवं अपडिन्ने
तिन्नेव य कोडिसया
दिवो मोसी......
दिसोदिसंऽणंत जिणेण ताइणा
दुविहंग विलयं.....
दुविहं समिच्च मेहावि
न सक्का गंधमा धाउ
नसक्का न सोड सद्दा
न सक्का फासमवेएउ
न सक्का रसमस्साउ
न सबका स्वमद
नाईयमट्ठे न य श्रागमिस्सं
नागो संगामसीसे वा
नारइ सहई वीरे
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P. L सूत्रगाथा
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8 साहितसा
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वणसं वकुमियं
वरपरिवरि
विऊ नए धम्मपयं श्रणुत्तरं
वित्तिच्छेयं वज्जंतो
रिए गामघम्मे हि
वेसमणकुंडधारी -
सद्दे फासे अहिवासमा
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निहाय दंडं पाहि
परिबजितु चरितं
परिक्कमे परिकिलंते
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पाणासिंति
पुढवि च भाउकायं च ..
पुरषो सुरा हंती
वि उविता माणसेह
फरुसाई दुतितिक्खाई''
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बंभंमि य कप्पंमि
भगवं च एवमन्नेसि
मेउरेसु न रज्जिज्जा
मभवो निज्जरापेही
मंसानि छिन्नपुष्याणि
मायणे असणपाणस्स
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20 सव्यमुच्छिए
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सजणेहि तत्थ पुच्छि
सयणेहि तत्थवसग्गा
सयणेहिं वितिमिस्सेहि"
सयमेव अभिसमागम्म
संघाडीग्रो पवेसिस्सामो
संयुज्यमाणे पुणरवि ....
संवच्छरं साहियं
संवच्छरेण होहिइ
संसप्पगा य जे पाणा
संसोहणं च वमणं
सासहि निमंतिजा.....
सिएहि भिक्खू असिए परिव्वए.
सिद्धत्थवणं व जहा
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