Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas
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96 3-4 तत्राप्यभिसहन (प्र०)। तत्राप्यतिसहन विधेय
समतेति । (प्र०) 4 उक्तं च5 °यानभिसहमानः (प्र०) 9 करनिहत. 24 °कारपरिसमाप्ती 35 'तुच्छए' इत्यादि, 38 सुवसुमुनि 1 धनधान्यहिरण्यमातापित्रादिः
4 परात्मनोर्मोक्षस्य नायः 14 'इति कम्म' (प्र.) 16 वर्तते 3 नन्दावलाकुक्षिमुद्भिद्य बुद्धो जात इति बुद्धो
त्पत्ति 8 'पत्रापि श्रेयो न विद्यते, अत्रापि श्रेयो न
विद्यते' इत्येवं 26 तिर्यग्दिक्षु मनु ___1 °तश्च च कुशलः
6 तदारब्धव्यमनारम्भरणीयं चेति, 8 नरिभेत-न कुर्या० 15 कुमार्ग निरा 20 नामेवार्तमनुपरिवर्तते
27 °मर्थाधिकारो 100 20 °नीयोदयादिति
36 भवे सीम्रो । 101 13 °पावकेन च दहयते, 101 38 शब्द-रूप-गन्ध-रस-स्पर्शा 103 36 इति चेत्, तन्न, तत्राप्युपान्तकाले 104 31 तदुपदिशति105 29-30 पञ्चसप्ततिः, सापि तीर्थकर''क्षयमुपगच्छ
तीत्यतोऽन्त्यसमये 106 2 तद् यत्क्षणं कर्माहूय 106 33 °पायं भयं शारीरमानस (प्र.) 107 14 न मोहमतिवृत्त्य"न चेकविध 107 32 लोगसीत्यादि (प्र.) 108 1 कालेन 1083 सूक्ष्मसाम्परायिकस्य
P. L. 108 37 झोसइ 109 5-6 चालनी "पूरयितुमर्हति, 109 9 कालप्रष्ठादयो 109 16 °येत् एतम् नन्तमन्यं न समनु० (प्र०) 109 29 नन्दी (प्र.) 110 5 वीरः सन्
7 उम्म(म्मु-प्र०)ग्ग लद्धमित्यादि, 110 8 मानुषेष्वित्युक्तम्,
14 अतोऽनेन (प्र.)
21 °मासाद्य क्षणमपि 110 32 पापं कर्म 111 22 एवं गतिरपि, 112 5 से अईअं 112 13 °भिलषन्ति, के 112 15 'विहूयकप्पे' 112 16 स एवंतदनुदर्शी (प्र.) 112 31 परोपाधिनेति (प्र०) 11237 संसारिसुखसाहाय्यो० 113 2 वृत्तमाचरति (प्र०) 11324 जीव्यास्त्वं बहूनि 113 25-26 प्रवर्तमानः''भावयति 11327 'जं सेगे' इत्यादि (प्र०) 1147-8 क्रोधं वमिता (प्र.) 11421 भावशस्त्रं 115 3-4 जे एगणामे से बहुणामे जे बहुणामे से एग.
पामे
115 4 जंति वीरा 115 11 बह्वभावनान्तरीयक' 115 11 जे एग इत्यादि (प्र०) 115 14 स्थितिविशेषान् 115 16 नान्यदेत्यतो 11522 'वीरा' कर्मविदारण 1166 पुढो विगिचमाणे एग विगिचई, सड्ढी 116 8-9 °बन्धिनमेकं क्षपयति पृथक्क्षयान्यथानुपपत्तेः,
किंगुणः पुन: क्षपक 116 16 ततोऽप्यपरं ततोऽप्यपरमिति
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