Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 682
________________ 319 सप्तादः 262 272 P. . L. शुद्धपाठः P. L. शुद्धपाठः 260 3 भासाहि बुइया 2699 कोकण 260 16 केशवकृष्णश्वशुक्लदन्त 269 13 °या एत्ताव ता उव' गुणोद्घट्टनवद् 269 15 परपडियाए 260 20 दर्शनीयादिकां 269 22 °ष्यन्ति तावन्मात्रमवग्रहीष्याम' 260 25 प्रतिषेधविधिसूत्रद्वयमपि 269 26 °नुग्रह इत्येव ......'परपडियाए' 26033 रसवइ त्ति वा महव्वए त्ति वा 269 35 पीठकादि संभोग्य 261 5 देवदत्तादेः 272 11 दुदकप्रसूतानि......"न प्रतिगृह्णीया261 10 रसवतीति वा तथा महद्वया दिति । 261 15-16 कोमलानीति 272 14 'मवलम्बिष्ये 261 17 °सम्भूतफलान् वृक्षान् प्रेक्ष्यैवं [प्र०] 272 16 द्वितीयायां चालम्बनं परिस्पन्दं च वचः262 13 साणियं वा पत्तयं वा कायेन विधत्ते, न परिष्वष्कणमिति । 262 18 पत्तगं ति तृतीयायां त्वयं विशेषः-अवलम्बन262 19 अर्कादिवूकनिष्पन्न [प्र.] मेव विधत्ते, न परिस्पन्दनपरिष्वष्कणे35 °यादिति पिण्डार्थः । अपि च से इत्यादि इति । [प्र.] 263 10 पेसलेसाणि 272 23 निषीथिकाध्य 26433 शीतोदकेन बहुदेश्येन धावनादि 36 निषीथिकां 264 35 मलापनयनं 272 37 प्रतिगृह्णीयादिति 264 39 कुलियंसि वा भित्तिसि वा 272 39 निषीथिकाभूमौ 265 3 °कांक्षेद् 2732 निषीथिकाध्य 265 16 तथाभूताधौतरक्त [प्र.] 273 3 निषीथिका 265 19 अत्र तु सर्वं 27330 श्रमणादीन् 265 32 ममान्यद्दद्याः, 274 17 'घसाः ' 26534 परिच्छिन्द्य (द्य) 274 18 इक्षुजो नलिकादिदण्डक: 265 35 अन्यस्य वैकाकिनो 274, 28 निक्कादौ 266 1 समणा अभिकंखसि 274 29 गोप्रलेह्यासु 2668 गृहीतानां च परि 274 38 कुर्यात् प्रतिष्ठापयेदिति वा 10 न द्वितीयम्, 275 3 दव्वं संठाणाई....."सभावो य । दवं 267 12 हारपुडपाय त्ति त्रिलोहपात्रमिति [प्र.] 275 10 सद्दाइं तताई , हारपुडपाय त्ति बृहत् लोहपात्र- 275 18 खरमुही-तोड(ट्ट-प्र०)हिका मिति [प्र.] 276 29 केदारस्तटादिर्वा 267 29 द्वीन्द्रियादयः 276 18 ११॥ चतुर्थसप्तककानन्तरं 267 30 'त्यर्थः, अथ साधूनां 276 35 लेप्यादीनि 267 40 नीकतया वा तथा 276 39 १२ ॥ साम्प्रतं पञ्चमानन्तरं 268 1 तद् यद्यकामेन 278 11 शेषाणि 268 4 स्यामार्जनादि 278 11 सप्तककेऽपि स्य प्रमार्जनादि [प्र०] 280 17 भावणा य एरिसगं [प्र.] 268 13 द्रव्यावग्रह 280 31 °बलवीर्येणो 267 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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