Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 688
________________ 325 109 70. 146 178 P. L. उद्धृतः पाठः 39 मच्छा मणुमा य सत्तमि पुढवि...... 647 मणवयणकायको...... 15 ममाह मिति चैष...... 51 34 मरिष्यामीति यद् दुःखं....." 77 6 मांसेन पुष्यते मांसम्..... 36 मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा...... 61 24 मायावलेहिगोमुत्ति...... 104 3 माल्यम्लानि: कल्पवक्षप्रकम्प:'....... 68 6 मासैरष्टभिरह्ना च...... 64 4 मिच्छद्दिट्ट्ठी महारंभपरिग्गहो....... 162 33 मिथ्या च दृष्टिर्भवदुःखधात्री...... 69 4 मुत्तपुरीसनिरोहे...... 152 29 यज्जातमात्रमेव प्रध्वस्त...... 161 18 यत्र प्रमादेन तिरोप्रमादः...... 2 9 यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति ..... 4 यत् स्वयमदुःखितं स्यात् ...... 30 यथाप्रकारा यावन्तः'..... 2 यथा यथाऽर्थाश्चिन्त्यन्ते...... 106 23 यथेष्टविषया: सात...... 925 यदि नामास्य कायस्य...... 85 40 यल्लोके व्रीहियवं...... 178 30 यादृच्छिकमिदं सर्व....... 27 यावदृश्यं परस्तावद्...... 59 15 योगनिरोधाद् भवसन्ततिक्षयः... ... 10241 रक्तः शब्दे हरिणः स्पर्श ..... 203 29 रङ्गभूमिर्न सा काचित्...... 82 12 रमइ विहवी विसेसे ..... 23 34 रागद्दोसकसाएहि...... 82 37 रागद्वेषाभिभूतत्वात्...... 103 20 रागद्वेषावशाविद्ध...... 965 रूवेसु अ भद्दयपावएसु...... 90 33 लज्जां गुणोधजननी...' 24 25 लज्जा दया संजम बंभचेर...... 907 लभ्यते लभ्यते साधु....... 178 32 लोकक्रियाऽत्मतत्त्वे....... 80 18 लोकद्वयव्यसनवह्नि...... 359 वणस्सइकाइए णं भंते ! वणस्सइ...... _____P. L. उद्धृतः पाठः 15 वणस्सइकाइयाणं भंते के महालिया ..... 122 40 वदत यदीह कश्चिदनुसंतत ..... 38 वलिसन्ततमस्थि....... 157 12 वातात् पित्तात् कफाद् रक्ताद ..... 18 10 वारिदस्तुप्तिमाप्नोति ..... 4 वालुयाकवलो चेव ..... 23 विगलिदिएसु दो दो...... 45 32 विगलिदिएसु दो दो...... 127 35 विचिन्त्यमेतद् भवताऽहमेको.. 4 विज्ञप्तिः फलदा पुंसां ...... 13 6 विणया णाणं णाणायो...... 59 59 12 विनयफलं शुश्रूषा...... 96 9 विभव इति किं मदस्ते..... 106 17 विरसरसियं रसंतो तो...... 15 35 विहवावलेवनडिएहि...... 39 24 वृक्षादयोऽक्षाधुपलब्धि...... 4 वीतरागा हि सर्वज्ञा...... 160 24 वीतरागो वसुर्जेयो..... __ 18 5 वीरभोग्या वसुन्धरा..... 168 31 शरीरं धर्मसंयुक्त...... 58 16 शाठ्यं ह्रीमति गण्यते...... 13 ll शास्ता शास्त्रं शिष्यः...... 2ll 16 शास्त्राण्यधीत्यापि...... 288 13 81 38 शिशुमशिशु कठोरमकठोर...... __97 21 शिवमस्तु कुशास्त्राणां ..... 1589 श्रवणलवनं नेत्रोद्धारं...... 18 श्रेयांसि बहुविध्नानि...... 92 15 संचारिमजंतगलंत...... 26 संते य अविम्हइउ...... 81 35 संदिग्धेऽपि परे लोके...... 59 13 संवरफलं तपोबलमथ..'' 127 34 संसार एवायमनर्थसार:...... 22 सगुणमपगुणं वा...... 17 6 सततानबद्धमुक्तं...... l 19 सति धम्मिणि धर्माश्चिन्त्यन्ते 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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