Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 677
________________ 314 177 177 178 187 P. L. शुद्धपाठः __P. L. शुद्धपाठः ___4 वस्त्रं वा पतद्ग्रहं वा 184 22-23 °लोकनाधिष्ठितभावस्या' [प्र.] 177 5 –यत् प्रासुक 184 27 स्वतो ज्वालितादौ 13 भुक्ते पुनर्भोजनाय 1855 वा छिद्रपाणिः, 177 17 व(प-प्र०)लेमाणे त्ति 185 12 तस्यैवम्भू 177 25 जमिणं विप्पडिवन्ना मामगं धम्म पन्नवे- 185 16-17 तत्र चतस्रो वस्त्रैषणा भवन्ति-"उद्दिल माणा इत्थ वि जाणह १ पेह २ अंतर ३ उज्झियधम्मा य।" तत्र 178 1 तेषां मते, नास्ति चास्याधस्तन्यो [प्र.] 178 3 ॥१॥ तथा–भौतिकानि 185 38 घिविकः, तं लापविकमात्मान 6 भूधराणां 186 4 जहेतं भगवया..."जाणिया 178 12 ॥३॥ तत्र तस्य 186 19-20 समुपस्थितो 179 1 अस्तिव्यापकत्वे 186 25 यस्मात् सा सीमन्तिनी 179 2 प्रतिज्ञा 'अस्ति लोकः' इति कृत्वा 186 26 तदेव श्रेयो यदेक: 179 23 अस्ति-नास्ति-ध्र वा-ऽध्र वादिवादिनां 186 30 अणुपरियट्टइ 180 12 लज्जामहे 187 9-11 प्रहापरिजुन्नाई वत्थाइ परिठ्ठवित्ता 180 13 'वान् तद्वा पूर्वोक्तं अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले....."जहेयं 180 19 परक्कमेज्ज 13 से सेवं वयंतस्स 181 2 पराक्रमणादिकां 187 22 वेत्याद्याहृत्य तस्मै 181 12 राज्ञोपदिष्टो वा 187 25 तत्राभिहृतमिति 181 16 दिनामन्त्रयेत्, [प्र०] 187 26 °मभ्याहृतं वा कल्पते 20 परिज्ञां न विदधेऽहमित्यर्थः, 187 35 इह तु धृति' 181 24 से भिक्खू 1888 एकोऽहमस्मिन् संसारे [प्र.] 181 26 सहसम्म 189 19 दाहिणाओ वा हणुयानो वाम 181 32 'परिघासयितु' परिभोजयितुम्, 189 21 सम्मत्तमेव समभि० [प्र०] 190 1 अवसरे ग्लायामि [प्र०] 181 35 ज्ञात्वा च 'प्राज्ञापयेत् 190 13 वृत्ता(ता): 1828 °शयाद्राजानु° 191 16-17 प्रतिपद्य विधिना 182 11-12 दण्डादिभिः"छिन्त हस्त' 191 25 निष्पद्यत 182 12 ऊरु' 19138 यदि पुनरेतानि 182 12-13 सर्वस्वापहारेण सहसा कारयत 1923 स एव [प्र.] 182 18 सम्यक् शुद्धि 192 21 २ तथा यस्य 182 39 कुशीलास्त्याज्या 192 27 कुर्याम् 19 °भोगाननभि 1939 मेषनिमेषादिकम्, 183 20 एवम्भूताश्च स्व' 193 31 तिउट्टई 183 23 °न्नेष महान् 193 37 क्षणे २ मूर्छन्नाहारस्यैवान्तिक 183 33 दयादीनि च व्रता 193 38 विहायानशननं 184 7 बालज्ञो [प्र.] 194 24 पा(अ)जितपुण्य' 184 13 उज्जालित्तए वा पज्जालित्तए वा ___194 28 उड्डमहेचरा 181 183 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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