Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 596
________________ 233 ३ आहार. ४ परिज्ञाध्य. जावमक्वायं ॥ सूत्रं ५२॥ एवं तणजोणिएम तणेसु तणत्ताए विउदृति, तणजोणियं तणसरीरं च आहारति जावमक्वायं ॥ एवं तणजोणिएसु तणेसु मूलत्साए जाव बीयत्ताए विउति ते जीवा जाव एवमक्वायं ॥ एवं ओसहीणवि चत्तारि आलावगा ॥ एवं हरियाणवि चत्तारि आलावगा ॥ सूत्रं ५३ ॥ अहावरं पुरक्वायं इहेगतिया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु आयत्ताए वायत्ताए कायत्ताए कूहणत्ताए कंदुकत्ताए उचेहणियत्ताए निवेहणियत्ताए सछत्ताए छत्तगत्ताए वासाणियत्ताए कूरत्ताए विउति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति, तेवि जीवा आहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं आयत्ताणं जाव कूराणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं, एगो चेव आलावगो सेसा तिण्णि णस्थि ॥ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता उद्गजोणिया उद्गसंभवा जाव कम्मनियाणेणं तत्थवुकमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु रुक्वत्ताए विउति, ते जीवा तेसिं गाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारंति, ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य गं तेसिं उद्गजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्वायं । जहा पुढविजोणियाणं रुक्खाणं चत्तारि गमा अज्झारु हाणवि तहेव, तणाणं ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियबा एक्केके ॥ अहावरं पुरक्खायं सूत्रक ५९ इहेगतिया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा जाव कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएस उठण्म सूत्रकृताङ्ग उदगत्साए अवगत्साए पणगसाए सेवालसाए कलंबुगसाए हडताए कसेरुगत्ताए कच्छभाणियसाए २ श्रुतस्क उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुयत्ताए नलिणसाए सुभगत्साए सोगंधियत्साए पोडरियमहापोंडरियत्ताए न्धे शीलाकीयावृत्तिः सयपत्तत्ताए सहस्सपत्तत्ताए एवं कल्हारकोंकणयत्ताए अरबिंदत्ताए तामरसत्ताए भिसभिसमुणालपुक्ख लत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउद्घति, ते जीवा तसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते ॥३४९॥ जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं, अवरेऽविय णं तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं जाव पुक्खलच्छि भगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं, एगो चेव आलावगो॥ सूत्रं ५४॥ अहावरं पुरक्वायं इहेगतिया सत्ता तेसिं चेव पुढवीजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं रुक्वजोणिएहिं अज्झारोहे हिं अज्झारोहजोणिएहिं अज्झारुहेहिं अज्झारोहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं पुढविजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं एवं ओसहीहिवि तिन्नि आलावगा, एवं हरिएहिवि तिन्नि आलावगा, पुढविजोणिएहिवि आएहिं काएहिं जाव कूरेहिं उद्गजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं एवं अज्झारुहेहिवि तिण्णि तणेहिंपि तिण्णि आलावगा, ओसहीहिंपि तिपिण, हरिएहिंपि तिण्णि, उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउति ॥ते जीवा तेसिं पुढवीजोणियाणं उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहीजोणियाणं हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झारुहाणं तणाणं ओसहीणं हरियाणं मूलाणं जाव बीयाणं आयाणं कायाणं जाव कुरवा(कूरा) णं उदगाणं अवगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेति पुढवीसरीरं जाव संतं, अवरेवि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव कूरजोणियाणं उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खलच्छिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं ॥ सूत्रं ५५॥ सुधर्मखामी जम्बूस्वामिनमुद्दिश्येदमाह-तद्यथा-श्रुतं मयाऽऽयुष्मता तु भगवतेदमाख्यातं, तद्यथा-आहारपरिज्ञेदमध्ययनं, 18 तस्स चायमर्थः-प्राच्यादिपु दिक्षु 'सर्वत' इत्यूर्वाधो विदिक्षु च 'सवावंति'त्ति सर्वसिन्नपि लोके क्षेत्रे प्रज्ञापकभावदिगाधा% रभूतेऽस्मिन् लोके चत्वारो 'बीजकाया' बीजमेव कायो येषां ते तथा, बीजं वक्ष्यमाणं, चखारो 'बीजप्रकाराः' समुत्पत्तिभेदा भवन्ति, तद्यथा-अग्रे बीजं येषामुत्पद्यते ते तलतालीसहकारादयः शाल्यादयो वा, यदिवाऽग्राण्येवोत्पत्तौ कारणतां प्रतिपद्यन्ते श येषां कोरण्टादीनां ते अग्रबीजाः, तथा मूलबीजा आर्द्रकादयः, पर्ववीजास्विक्ष्वादयः, स्कन्धवीजाः सल्लक्यादयः, नागार्जुनीयास्तु पठन्ति-"वणस्सइकाइयाण पंचविहा बीजवकंती एवमाहिज्जइ-तंजहा-अग्गमूलपोरुक्खंधबीयरुहा छट्ठावि एगेंदिया संमुच्छिमा बीया जायते" यथा दग्धवनस्थलीपु नानाविधानि हरितान्युद्भवन्ति पग्रिन्यो वाभिनवतडागादाविति । तेषां च चतुर्विधानामपि वनस्पतिकायानां यद्यस्य बीजम्-उत्पत्तिकारणं तद्यथाबीजं तेन यथाबीजेनेति, इदमुक्तं भवति-शाल्यङ्करस्य SSSSSSSS ॥३४९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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