Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܬܬܕ ॥ श्री ॥ मानतुंग राजा नवती राणीनो रास. पंति श्री मोहन वीजयजी विरचीत द्वितीय मृषावादपरिहार व्रतमाहात्म्यरूप. ने मा आवृति त्रीजी श्र ग्रंथने यथामति संशोधन करीने शा. जीमसिंह माणकें श्री मुंबापुरीमध्यें निर्णयसागर छापखानामां छपावी प्रसिद्ध करयुं छे. Jain Educationa International श्रावण शुदि ३ संवत् १९६२. इसवी सन १९०६. For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ सत्यवचन उपरें ॥ मोहनविजयजी विरचित ॥ ॥श्रीमानतुंगराजा अने मानवती राणीनो रास प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ षनजिणंद पदांबुजे, मनमधुकर करि लीन॥ आगमगुणसौरज्यवर, अतिवादरथी कीन ॥१॥ यानपात्रसम जिनवरू, तारण नवनिधितोय ॥ आप तस्या तारे अवर, तेहनें प्रणिपति होय २॥ अथ सरखतीवर्णनम् ॥ नावें प्रणमुं नारती, वरदाता सुविलास ॥ बावन अदरथी नस्यो, अखय खजानो जास ॥३॥ शुक्र कस्या केईशनीथकी, एहवी जेहनी शक्ति ॥ किम मूकाए तेहना, पदनी कोविद नक्ति ॥४॥ गुरुवर्णनम् ॥ गुरु गुण अगणित कुण गणे, तारक कवण गणंत ॥ कुण तर्जनीअंगुलिसिरें, धरणी अधर धरंत ॥ ५॥ अद्वितीय दीपक सुगुरु, करता झानप्रकास ॥ पण हर्ता अज्ञानतम, सेतस थ दास ॥ ६॥ जिनागमवरदा सुगुरु, तेहना प्रणमी पाय ॥ धरमतणा अधिकारथी, छिवृद्धि नित था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य॥७॥ प्रिनेद ते धर्म बे, आगारी अणगार ॥ व्रत पण छादश पंच तिहां, तेहना विविध प्रकार ॥ ॥ मृषावाव्रत द्वितीय ए, मृषातणो परिहार ॥ सत्यवचन श्राराधिये, तो वरिये शिवनार ॥ ए॥ कूट मृषा तजतां थका, धरिये श्म प्रतिबंध ॥ सत्य वचन ऊपर सुणो, मानवतीसंबंध ॥ १० ॥ अतिहि कौतुकनी कथा, सांजलजो चित लाय ॥ मत कर जो श्रोता सकल, बधिरगीतनो न्याय ॥ ११॥ ॥ ढाल पहेली चोपाईनी देशी ॥ ॥ मानांगुल जोयण एक लाख ॥ वटविष्कंन जं बेनो नाख ॥ जगती आठ जोयण उच्चंत ॥ बार चार धुर ऊवरि दंत॥१॥चार अनुत्तर नामे हार॥ जंचत आठ जोयण विस्तार ॥ पंचसयां धनु तिहां वेदिका ॥ लीजे जोयण सवि देवका ॥२॥ कुल गिरीले जंबूमकार ॥ सातमो मध्य मेरु वनधार ॥ क्षेत्र सातवलि तिहां आयंत ॥ नरततणी सीमा हि मवंत ॥३॥ तेह जरतनो जोयणमान ॥ पांचसे न विस उ कला जाण ॥बीजा देत्रतणा अधिकारले जो शास्त्रथकी सुविचार ॥४॥ ददणनरते मालव देश ॥ नहि रौरव वली नही कलेश ॥श्रवर देसजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) म फणि परखिये॥ एतो मणिसम करी लेखिये ॥५॥ तिहां नगरी उजायणी नाम ॥ अमरपुरीके लंका धा म॥ए आगल लंका बापमीलमथमती जलनिधिमां पमी ॥६॥ स्फटिकरतनतणा जिहां गेह ॥ ननमंमल तजि लखता जेह ॥ नयरी ए वीट्यो वप्रघट्ट, युवति नातिमनुं धस्यो योगपट्टाग्रह ग्रह केतु चपल थई घणे॥मनुं सुरग्रहने चपेटे हणे॥हाटे हाटे क्रियाणा घणां ॥ पंकज तिहां कुंकमतणा॥॥दूंदाला व्यवहा री वसे ॥ पंकजसरिखा आनन हसे ॥ चंजाननी चा ले चमकती ॥ नेपुर कांकर रमझमकती॥ ए॥ हय गय रथ पायक परिवार ॥गह मह अहनिस रहे दर बार ॥ मानतुंग राजा करे राज ॥ मकरध्वज रूपे वम लाज ॥१॥ वाच काळ निकलंक नरेस ॥ जस जय सेवे शत्रु विदेश॥परिजनने अमृतसम जिस्यो ॥खलने अनलसम अचरिज किस्यो ॥ ११ ॥ जन पद सोल तणा नृपतणी ॥ पुत्री विलसे प्रीते घणी ॥ महिपति ते स्त्रीये परवस्यो ॥ सोल कला लेई श शी उतस्यो ॥१५ ॥ बुछिनिधान सुबुद्धि परधान ॥ ते ऊपर नूपनो बहुमान ॥ न्यायें राज करे नूपाल॥ पत्नणे मोहन पहेली ढाल ॥ १३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) ॥ दोहा ॥ ॥ एक दिन बंद पूरी करी, बेठो अवनीनाथ ॥ ऊना सेवक यागले, जोमी जोमी हाथ ॥ १ ॥ नृत्यकार नाटक करे, गायनपण करे गान ॥ बंदीजन बोले बिरुद, मुंजे पान सुपान ॥ २ ॥ एहवे सिंध्यासमय तिहां, प्रगट्यो रंग असंख ॥ ऊल्लर ऊणकारा थया गरजे घन जेम शंख ॥ ३ ॥ हय गय रथ वहेता र ह्या, गहमद थई प्रतिगेह ॥ चंचल हुई पदमिनी, कुलटा तस्कर जेह ॥ ४ ॥ दीपकयोति थई सुनग, वाम नाम जलकंत ॥ मानुं नयरी नयणकरी, नरप तिने निरखंत ॥ ५ ॥ याम एक गई जामिनी, सजा विसर्जी राय ॥ श्रोता सांजलजो हवे, जे कौतुक हां थाय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ हमीरांनी देशी ॥ ॥ महीपति मनमां चिंतवे, निरखुं नगरवरूप ॥ चतुरनर || परिजनमें हां माहरो || केहवो बे न्या य अनूप ॥ चतु० ॥ १ ॥ सूरिजन सांजलजो कथा, रसिक यई देई कांन ॥ च० ॥ ऊपजसे रस रंगनो, चाख्याथी जेम पान ॥ च०सु०॥ २ ॥ मुऊ ऊपर मा हरी प्रजा, केहवो राखे बे नेह ॥ च० ॥ के बेस For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) रखे स्वारथी, के आज्ञाकारी एह ॥ च० ॥ सु० ॥ ॥ ३ ॥ ऊट्यो परीक्षा कारणे, नरपती लेई करवा ल ॥ च० ॥ नीलवसन उढी करी, चाल्यो थई उ जमाल ॥ च०॥ सु०॥४॥ चाचर चोहटे गलिये नमे, एकलको नरराज ॥ च० ॥ गलिये गलिये सांजले, निजजसनो आवाज ॥ च०सु०॥ ५ ॥ लोक सकल कहे पणे, राजासमो नहि कोय ॥ च० ॥ वाक्य वछल हरिचंद जिस्यो, जुजबलजीम ज्यूं होय ॥ च०॥ सु० ॥ ६ ॥ आपण नगरीमे नथी, चौरादिकनी जीत ॥ च० ॥ नवि लीये कोई तृणो पड्यो, रामना राजनी रीत ॥ च० ॥ सु० ॥ ७ ॥ करदंग नही कोइ ऊपरे, दंग देवल तिचंग ॥ च० ॥ बंधन धम्मले अबे, तामना जलघटी संग ॥ चणासु ॥८॥ प्रगटयुं जाग्य प्रजातएं, राजननी थई रूप ॥ च० ॥ वाय हजी लाग्यो नयी, कलियुगनो तनु नूप ॥ च०॥ ॥॥ ए महिपति चिरंजीव जो, म होजो ऊनो वाय ॥ च० ॥ खारे दरीये जई पमो, नृपनी अलाय बला य ॥ ० ॥ ०॥ १० ॥ प्रभु रहना मनमातणी, पू रजो नितप्रते स ॥ च० ॥ लोढाजो एहना सदा, डुरजन ने कपास ॥ च०सु०॥ ११ ॥ एह नृप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ने गुणेकरी, खेच्यो जे जसनो वितान ॥ च ॥ ते हने तुं त्रिजुवनधणी, मत करजे नुकसान ॥चासुन ॥ १२ ॥ एम प्रजाना मुखथकी, जिहां तिहां सुणी वात ॥ च ॥ मनमें अतिविकसित थयो, जेम जल धरेंछुमपात ॥ चणासु०॥ १३ ॥ धन धन ए माहरी प्रजा, मुऊ ऊपर धरे राग ॥ च० ॥ सहुए वांडे जलु, माहरूं पूरण नाग ॥ च० ॥ सु॥ १४ ॥ मोह नविजयें हेजशु, नाषी बीजी ढाल ॥ च ॥ कहीस सरस हवे हुँ कथा, सांजलो बाल गोपाल ॥ च० ॥ सु० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ आगल नरपति संचस्यो, दीगे कौतुक एक॥ कन्या पांच मली नली, वधते रूप विवेक ॥१॥ समरूपे सरिखे गुणे, सरखी वय सोहंत ॥ गोरी गु णनी उरमी, सुरनरमन मोहंत ॥२॥ पहेरी पी तांबर प्रवर, सोल सजी सिणगार ॥ नोली टोलीयें मली, रमवाने तेणीवार ॥३॥ कुब्जरूप महीपति करी, निरखे कन्याकेलि ॥ क्रिमा आरंने हवे, पंचे गजगति गेल ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥ ढाल त्रीजी ॥ रमतां फाटो घाघरो रे, दस गज फाटो चीर रे हूंबे॥ आवे रे उलगाणा तारी कांकणीने जूंबे ॥ ए देशी॥ ॥ चरणे बांधी घूघरा रे, फरहरतां करी वस्त्र रे बाला ॥ ढलता रे मूक्यां शिरथी गोफणा फूंदाला ॥१॥ विमल कमल लेई बिहू करे रे, घाले हसि गल बां हिरे दोमी ॥ जाणे रे मतवाला मूक्या कलनलारे बोनी ॥२॥क्षिणमे पय करी एकठारे, एकएकना ग्रहे हाथ रे कूदी॥मातीरे रस राती ताती लेवतीरे फूदी ॥३॥ घाले घुमण घुमतीरे, पयतलनी पमता ल रे रूमी॥खलके रेचलकारा हाथे सोनतीरे चूमी ॥४॥ गाती गीत सुकंठथी रे, फांऊरनाऊणकार रे रंगें ॥ जाणे रे कहकी कोकिल अंबने प्रसंगें ॥५॥ एमी एक उनी रहे रे, चक्रपरे फेर फरे रे थोमो॥ दोमीने ले घेरी पाणी पंथनो ज्यु घोमो॥६॥एक एकने ताली दीये रे, मलकती करती हास रे वारु॥ वसननी जोतें दीपक हार तो ते वारु ॥७॥ नाचे नवनव रीतथी रे, बंद अने उपबंदरे माने।पोहोची रे न सके कोई किन्नरीयुं गाने॥७॥ विस्मय पाम्यो मन्नमां रे, निरखी एहवो ख्याल रे राजा ॥ आलोचे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) एहवो तिहां पथी दीवाजा || || एहशुं गगनथी ऊतरी रे, श्रावी रमवा काजरे रंगें ॥ सहुने सुख दो वे वलि एहने प्रसंगें ॥ १० ॥ टोले मलि ए नाचती रे, अपर मलीने छात्र रे एहवी ॥ बीजी रे सी दीजे एहने उपमा रे केहवी ॥ ११ ॥ नाखीयें एहने क परे रे, उर्वसीने उवार रे साचे ॥ खेचरीयो सुरनारी बापमी सुं नाचे ||१२|| के ए पातालनी सुंदरी रे, यावी रमवा काज रे रे | ॥ मेतो रे नव दीवी एवी कोई मृगानेी ॥ १३ ॥ याज जले इहां नीसस्यो रे, रिज जोवा का रे हूं तो ॥ नहि तो ए कौतुक नय कहां थकी रे जोतो ॥ १४ ॥ याज नयण पावन थयां रे, वदनमें अमृत बिंदू रे पीधुं ॥ चोरीने कन्याये माहरुं मन्नडुं रे लीधुं ॥ १५ ॥ एहवे रूपें बालिका रे, किम घमी सक्यो किरतार रे साथे ॥ एहवी. रे बिपी रुमी बेटी क्यांथकी रे हाथे ॥१६॥ चिंतवतो एम नूपती रे, ऊनो समीपें थाय रे बानो || सांजलतो चित आणी गीत थई एकतानो ॥ १७ ॥ मोहन विजयें रंगथी रे, जाखी त्रीजी ढाल रे मीठी ॥ कहिये बे सुकथा जेहवी शास्त्रमांहे दीवी ॥ १८ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥दोहा॥ ॥ एहवे थाकी बालिका, रामत करीने ताम ॥खेद खिन्न हुई थकी, बेठी सहु एक गम ॥१॥ मान वती धनदत्तधिया. निवसी कुमरी मद्य ॥ सोहे एह वी सील जिम, वीट्यो हतो लश ॥२॥ रोहि णिना तारकपरे, सोहे कन्या पंच ॥ मांडे अंतरगत तणी, वातो तजी खल खंच ॥३॥ नृप जोतो हर णीपरें, ऊनो निसुणे वात ॥ वातो जे थाय हां, मूकी सुणो व्याघात ॥४॥ ॥ ढाल चोथी॥ ॥ नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीया॥ए देशी॥ ॥ मानवती जणी ताम वदे चउबालिका, रे रे सांनल प्राणतणी प्रतिपालिका ॥ रामतमांहे आज विलंब न कीजीयें, खेली खेल अशेषके लाहो ली जीयें ॥१॥ थोमामांहें काज घणो न बिगामिये, थोमी रही ले रेण रमीने गमामिये॥ए मेलोएरात जाए सोहणा जिसी, उगे उतस्यो खेदके ढील करो किसी ॥२॥ जाय श्राजनी रात ते कोमिटंका समी, नोली थाए असुर गृहे पोहोचो रमी॥लटका चटकामांहे जे कोई न माणसे, तो बालापण एह पढ़ें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शुं जाणसे ॥३॥ श्म कहे वारंवार सखी आदर घणे, मानवती तव तास ईस्या वायक नणे ॥रे स हीयो केम आज करो हठ एवमो, सहुए थई एक राग पुठे मुक कां पमो॥४॥ फोगट जोगवे कोण बाई ऊजागरो, थोमामांहे सवाद हवे तो मयाकरो ॥ वलि शहां रामत काले रमसुं नवनवी, हरणी ढली आकासके वेला बद हवी ॥५॥ गीततणा नणकार जो श्रवणें वागसे, सूता लोक सवे इहां जबकी जा गसे ॥ अतिक्केसें जे अर्थ करे स्यो फायदो, श्रावजो काल ईहायके आपणो वायदो ॥६॥ मानवतीनणी ताम चारे चतुरा कहे ॥ हे बेहेनी अमवातते तुंतो नवी लहे ॥ काल अमारो तात उत्सव मंमावसे॥चा रेने वर चार जलापरणावसे ॥७॥परण्या पडे तो होसे रहे, सासरे, अहर्निस बे कर जोमी पीयुने आसरे सासु ससरो जेठ नणंदी वमी शिरें, तेहनी लाज अ तीव करेवी बहूपरे ॥ ॥ करवो घरनो काम अहो निस चडवडी, नही परवार लिगार रहे एके घडी। चालवु मन अनुजाइ सहुसुं सुंदरी, परणे नूचरी खे चरी कोण पुरंदरी ॥ ए ॥ बालपणाना मित्रतणो अ लजो सही, नीगमवो जमवारो खुणे बेसी रह। ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) धुंघटना पटमांहे सदा मुख राखवू, हलवे हलवे के ग्थी वायक जाखवू ॥ १० ॥ नजरथी अध खिण मात्र न मूके पीऊमो, जेम ग्रहि घाल्यो पंजरमांशुक जीवमो ॥ तेमाटे सखी आज रमो हुँनर जरी, मानी व्यो मनुहार घणे श्रादर करी॥१९॥ पजे एम मलीने क्यारे रमसुं वालही, गलिया वृषलतणी परे बेसी तूं का रही ॥ ताहरां सखुणां बोल ते तो नहि विसरे, तुऊथी रहेवू दूर रखे प्रजु ते करे ॥ १५ ॥ चोथी ढाल रसाल ए कान जगावती, मोहन विजयें रंगें कही मन जावती ॥ निसुणी श्रोता लोक हृदयसुख पामसे, सांजलजो हवे मानवती जे बोलसे ॥ १३॥ ॥दोहा॥ मानवती सही प्रते, मधुरे वचने वदंत ॥ रे रे सुगुण सहेलियो, परण्या कीधो कंत ॥१॥ रहेसो जश्ने सासरे, वढूवारु थई सार ॥ पियूंथी रहेसो बीहतां, तो धिग तुम अवतार ॥२॥ जो प्रीतम वस कीजीये, तो परण्यो परमाण ॥ नहि तो जेम करी कूकसे, नरवो पेट अजाण ॥३॥ गुणवंतीने श्रा गले, स्यो बल दाखे नाथ ॥ तेम वले जेम वालिये, वृषजतणी जेम नाथ ॥४॥ सुनगो नारी चरित्रनो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) कोई न पाम्यो पार ॥ कोटिकोटियुग पच रहे, पोते सरजणहार ॥५॥ ॥ ढाल पांचमी॥ ॥आज धरा हुवोधुंधलो हो लाल ॥ ए देशी॥ ॥साहेलडीहे ॥ मानवतीना सुणी बोलमा हो लाल, चतुरा चमकी चार ॥ साहेलमीहे,उलंना देवा नण। ॥ हो लाल ॥ एम कहे थई हुसियार ॥सा॥ मोटा बोल न बोलीयें॥हो लाल ॥१॥ नानामखथी एम ॥ सा ॥ बोलीयें एहवं वरे पडे ॥ हो लाल ॥ कहे अणघटतुं केम ॥ सा ॥ मो॥२॥ नारीनो नरागले॥हो लाल ॥स्यो सरोकहेवाय॥सा॥ कोमिटंकानी मोजमी ॥ हो लाल ॥ तो पण पहेरवी पाय ॥ सामो ॥३॥ कृष्णागर घणुं रुथमो ॥ हो लाल ॥ पण पावकमांघलाय ॥सा॥ तटनी घj विषमी हुए ॥ हो लाल ॥पण सायरमा समाय ॥सा ॥मो॥॥ विषधर हुए घणो वांकमोहो लाल॥बि लमां सीधो होय ॥सा॥ एम उखाणा घणा ॥ हो लाल ॥पार न पामे कोय ॥साामो॥५॥ पीयू केम जाये तस्यो॥हो लाल ॥अमें तो अबला बालासा॥ दीवे मारग संचरं॥हो लाल॥पीजे पाय पखाल ॥सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ॥मो० ॥ ६ ॥ कंतनो गायो गायसुं ॥ हो लाल || श्रमचो काम एह ॥ सा० ॥ केवलि वातें रीजनुं ॥ ढो लाल ॥ के करी नवलो नेह ॥ सा०|| मो० ॥ ॥ ७ ॥ के जोजन युगते करी ॥ हो लाल ॥ के वली सजि सण गार ॥ सा०॥ के वली गीत गानेकरी ॥ हो लाल ॥ करसुं मुदित जरतार ॥ सा० ॥ मो० ॥ ८ ॥ चालीयें केम प्राणेशथी ॥ हो लाल ॥ थइ उपरांठा बेक ॥ सा० ॥ कपटें रमीयें तेहथी ॥ हो लाल ॥ तो डुवाए प्रभु एक ॥ सा० ॥ मो० ॥ ए ॥ पालव बांध्यो जेहथी ॥ हो लाल || तेहथी केम दुवे कूम ॥ सा० ॥ गरुरु गल लघु चमकली ॥ हो लाल ॥ किहां लगे जाए ऊम ॥ सा० ॥ मो० ॥ १० ॥ त्रटकी मानवती तिहां ॥ हो लाल || बोली भृगुटी चढाय ॥ सा० ॥ रहो रे बाइ बोलीयुं ॥ हो लाल ॥ सी करो वातो बनाय ॥ सा० ॥ मो० ॥ ११ ॥ नारीयुं कामण गारीयुं ॥ हो लाल ॥ नर बापडा कुणमात्र ॥ सा० ॥ नारीये केइने बेतरया ॥ हो लाल ॥ सुं तुमे नवि सुणीवात ॥ सा० ॥ मो० ॥ १२ ॥ उमया ईस नचावीयो ॥ हो लाल ॥ वलि अहिल्यायें सुरेश ॥ सा०॥ परायें कृषि जोलव्यो ॥ हो लाल ॥ गोपीयें वली गोपेश ॥ सा० ॥ मो ॥ १३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) युवती जोरावर जो हुवे॥होलाल ॥ वालिम थई रहे दास ॥सा॥पीउने वश नारी थई॥हो लाल॥जनम अलेखे तास ॥ सा ॥ मो॥ १४ ॥ मोहनविजयें रंगसुं॥ हो लाल ॥ पनणी पांचमी ढाल ॥ साम्॥ जे जे मानवती कहे ॥ हो लाल ॥ ते सांजले नूपा ल ॥ सा॥ मो० ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ सहीयुं मानवती नणी, कहे यदि तूं परणेस ॥ त्यारें वश करजे पिऊ, कीम जोली राखेस ॥१॥व लतुं मानवती कहे, ज्यारे परणिस कंत ॥ एतीविध त्यारे करीस, ते निसुणो उदंत ॥२॥ पीसे चर णोदक पीयु, जिमसे फुअन्न ॥ सहसे टुंबा मस्तके, करसे कोड जतन्न ॥३॥ धरसे करपद मुफतणे, श्म वस करसुं तास ॥ जो ए सघला हुं करूं, तो कहेजो साबास ॥४॥ चारे कहे हारी अमे, तु ऊथी साचुं मान ॥ श्म कही उठी ग्रहलणी, पांचे रूपनिधान ॥५॥ ॥ ढाल बही॥ ॥दोरी मारी श्रावेहो रसिया कमतले॥एदेशी॥ ॥ धरणीधव तव ध्रुज्यो सांजली, मानवतीना रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) बोल ॥ चतुरनर ॥ किम ए बाला एम बोली गई, एहवा वयण निटोल ॥च०॥१॥सांजलजोहवे कौतुक नी कथा, चूंप करी चित लाय ॥ च ॥ जो जो लखित लेख न मिटे कदा, करे जो कोडि उपाय ॥ चणासां॥२॥ रूपें रूडी पण कूमी हिए, न्हानी पण विषकंद ॥च॥ अमृतरूपें विष दीसे अबे, जुर्ड जुर्म एहना रे फंद ॥च ॥ सांग ॥३॥ हूंसतो मनमा घणी राखे अने, मोटी मेरुसमान ॥०॥ हजी ए बाला उबरे ने हवे, निहई बिहुपान॥चणासां ॥४॥ श्रावे ने फीण हजी पय पाननां ॥ घाले बे ननबाथ ॥ च ॥वां सायर तरवो जुजेकरी,अचरि जए जगनाथ ॥च॥सांग ॥५॥ ए किम पीयुने पाय लगाउसे, त्रटकी बोली रे एह ॥च०॥ में तो पां चमे रूमी गणी हती, रूपवती गुणगेह ॥ चणसांग ॥६॥ पण ए रूप देखी नविराचिये, अधिको गुण सुप्रमाण ॥ च ॥ काम पडे कांई काम आवे नहि, गुण विण लालकबाण ॥च॥सां ॥७॥ दीधी खो म एकेकी रतनमें, दैवे थई निःशंक ॥च॥ खारोप योधि तरुणी कस्यो आकरो, शशिने दीधकलंक॥च० ॥सांगा॥ तिम ए घणुं ए बीजे गुणेनरी, पण अव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) गुण एक एह ॥ च० ॥ बांगड बोलीने धीठं । घणुं निगुणिने निसनेह ॥ च० ॥ सां० ॥|| एह बे पुत्री केहनी कहां रहे, जोउं एहनो रे गेह ॥ च०॥ बल बलकल करी साह; बेतरी, परणुं कन्या रे एह ॥ च०॥ सां०॥१०॥ पबे ए मुकने जोउं वश केम करे, केम धो वारसे पाय ॥ च० ॥ ए तो सही में पारखं पेखयुं, पाऊं खोटी तो हुं राय ॥ च० ॥ सां० ॥ ११ ॥ राजा मानवतीने पूग्ले, क्रोधथी चाल्यो रे जाय ॥ च० ॥ कुवचन होय सहुने अलखामणुं, सुवचन सहूने सुहाय ॥ च० ॥ सां० ॥ १२ ॥ मंदिरे पोहोती नृप दिवो नही, पोढ़ी से जे रे तेह ॥ च० ॥ करि सहिनाणी तांबुल पीकतणी, राये धारयो ते गेह ॥ च ॥ सां० ॥ १३ ॥ चंपक पादप घरने प्रांगणे, कुसुम कुरंज सुत्रास ॥ च० ॥ एह सेंधाणी धारीने वल्यो, श्राव्यो नूप श्रावास ॥ च० ॥ सां० ॥ १४ ॥ सुखजर सेजें नृप जई पोढियो, नांखी बही ए ढाल ॥ च० ॥ मोहन विजय कहे तुमे सांजलो, आगल वात रसाल ॥ च० ॥ सां० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नयनावे निड्डी, चटपटि नृपने चित्त ॥ क्षण द हियमे सांजरे, मानवतीनुं चरित्त ॥ १ ॥ ॥ श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) तुर हूवो परणवा, चतुर महीप तिवार॥रयणी विहा पी प्रह थयो, वा जयजयकार ॥२॥ अरुण उ दय अंबर थयो, नूतल थयो प्रकाश ॥ धेनु वलगा वाबरू, कैरव कीध विकास ॥३॥ सिंहासन बेगे नृपति, चामर बत्र धरंत ॥ खलक मलक खिजमत करे, जाट बिरुद बोलंत ॥४॥ नूपति तेमी सचि वने, दीधो श्रादर मान ॥ नाषे वातो रातनी. हिय डुं खोली ताम ॥ ५॥ ॥ ढाल सातमी॥ ॥ करमपरीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ एदेशी ॥ ॥ रयणीए आज नयरमा एकलो रे॥हुँ गयो चर्चा हेत॥कन्या पांच में दीठी क्रीमतीरे,अनिनव विथुम खेत, राजन जाये रे सचिवने वातमी रे ॥ १॥ जे जे दीवी रेण, मंत्रीपण ते मनमांहे धरे रे, थश्ने नृपनो सेण ॥रा॥२॥कन्या एक धुतारी पंचमें रे, कम्वा बोली रे तेह ॥ वृश्चिक विषयी ते घणुं आ करी रे, सुं कहुं घणुं बुझिगेह ॥रा॥३॥ कडं ति णे पीयुने पाय लगामशुं रे, टुंबे घमशुं रे शीस ॥ ए हषांवांकां बोलती बोलमां रे, केम करी वाचु रे रीस ॥राण ॥॥ एहवां वचन सुणीने मुझने रे, परण्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नी थर हूंस॥सेजे सुता नींद श्रावी नही रे, मुझने ताहरा सूंस ॥रा॥५॥ते माटे तुं पुबत पाधरो रे, पोहोचजे तस आगारपीक सहिनाणीनिंते जोयनेरे, वली चंपकतरुछार ॥ रा॥६॥ जिम तिम करीने तेहना तातने रे, जोलवी करजे हाथ ॥ कहेजे ताह री पुत्री जाचवारे, मूक्यो २ महिनाथ ॥ रा० ॥७॥ करजे प्रणिपति तुं माहरी वती रे, मानिस ताहरो पाड ॥ जीवित सुधी गुण नही वीसरूं रे, पालीस रूमा लाम ॥रा ॥ ॥ ए कन्याथी वेध डे वयण नो रे, अवर न बीजो कोय॥जो ए परणुं ताहरी बु छिथी रे, तो मुझने सुख होय ॥रा ॥ ए ॥ वचन सुणीने महीपतिना इस्या रे, बोल्यो अमात्य तिवार॥ ए कन्यानो केहो आसरो रे, अवनीपति अवधार ॥ ॥ रा ॥ १० ॥ ए तो मुझथी कारज सहेल रे, क रिस हुंदाय उपाय ॥ कहो तो लावु हरिनी पुरंदरी रे, करीने तुम पसाय ॥ रा ॥ ११॥ मणिधर मा थे नाचे डेमकी रे, ते गारमीने प्रसाद ॥ईसने उपरे करीने पोठियो रे, सिंहथकी करे नाद ॥ रा ॥१॥ तिम हुँ पण ऊपरथी ताहरे रे, स्यों न करी सकुं का ज॥तो हूं साचो सेवक राउलो रे॥जो परणावं आ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) ज ॥रा० ॥ १३ ॥ इम महिपतिने देई धारणा रे, उठ्यो ताम प्रधान ॥ नयर संचस्यो मंदिर पेखतो रे, आणी मन अभिमान ॥ रा० ॥ १४ ॥ मोहनविजयें जाषी सातमी रे, सुंदर ढाल ए जोय ॥ मीठी आगल एहथी वाती रे, सांजलजो सहु कोय ॥ रा० ॥ १५ ॥ ॥ डुहा ॥ ॥ सेरी सेरी ढूंढतो, पीकांकित यावास ॥ जाणे मृगकस्तूरीयो, हिंडे लेतो वास ॥ १ ॥ मूके एक मं दिर सचिव, पेसे बीजे क ॥ गुणमोताहलनी परे, पामे विस्मय लोक ॥ २ ॥ इम जमतां दीठो तिहां, चं पकतर सांहिं ॥ सहिनांणी सघली मली, दरख्यो घणुं मनमाहिं ॥ ३ ॥ कह्याथकी अधिपति तणे, हुं जोवंतो जेह ॥ ते अनुमाने मानता, निश्चय मंदिर एह ॥ ४ ॥ पेठ ग्रहमे धसमसी, दाससहित शुचित्रं ग ॥ जिम प्रतिबिंबे मुकुरमे, श्राननभूषणसंग ॥५॥ ॥ ढाल यामी ॥ ॥ अलबेलानी देशी ॥ धनदतें दीगे यावतोरे ला ल ॥ निजघरमांदे प्रधान रे || रंगीला ॥ चलचित्त ति हुई तदा रे लाल ॥ जेम हाथीनो कांनरे ॥ रं गीला ॥ प्रायें सुंहालो वालियो रे लाल ॥ १ ॥ बोबडुं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) बोलणहार रे ॥ रंग ॥ वातो सो गरणे गले हो ला ल ॥ डाह्यो जेह व्यापार रे ॥२॥प्रा०॥२॥ धव धव ऊव्यो ध्रुजतो रे लाल ॥ बेहडो हाथ विचाल रे ॥ रंग ॥ पमती धोती पहिरतो रे लाल ॥ खमखम हसतो थाल रे ॥ २० ॥ प्राण ॥३॥ चिंतवतो मन मां इस्यो रे लाल ॥ केम सचिव मुक गेहरे ॥ रंग ॥ मोसीने घरे वाघलो रे लाल ॥केम समाये एह रे ॥रंग ॥ प्राण ॥४॥ हूं व्यापारी वाणिलं रे लाल॥ ए तो नृपनो अंग रे ॥ २०॥ धाईने जाई मल्यो रे लाल ॥ कारमो करी उबरंग रे॥रंगाप्रा॥॥ दीधुं अमात्यने बेसणुं रे लाल ॥ जगति युगति करी को म रे ॥ २० ॥ तांबूलादि श्रागें धस्या रे लाल ॥ उन्नो बे कर जोम रे ॥२०॥ प्रा० ॥६॥कहा कम खामी कृपा करी रे लाल ॥ मुऊ ऊपर धरी प्रेम रे॥ रं॥ आज कृतारथ हुं थयो रे लाल ॥ प्रगटी मुफ घर गंगरे ॥ ९॥ प्रा० ॥ ॥ कोण प्रयोगें पधारि या रे लाल ॥ कहो मुफ लायक काम रे ॥ रंग ॥हुं पदरज बुं रावलो रे लाल ॥ पाम्यो घणुं आनंद रे ॥ रंग ॥ प्राण ॥ ७ ॥ फरमावो कोई चाकरी रे लाल ते करूं शिरने जोर रे ॥रं॥ मामी साकर घोलवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) रे लाल ॥ मुखथी करी नीहोर रे ॥२०॥प्रा॥ ॥ए ॥ वचन सुणी धनदत्तनां रे लाल ॥ रंज्यो प्र धान विशेष रे ॥ २० ॥ अतिहि आगतवागता रे लाल ॥ वलि निपुणा पेखरे ॥ २० ॥ प्राण ॥ १० ॥ सचिव कहे मलवा जणी रे लाल ॥ श्राव्यां बु अमे आज रे ॥ २ ॥ तुमे सजन बो सेठजी रे लाल ॥ तुम नणि रूडा काज रे ॥ रं ॥ प्राण ॥ ॥ ११ ॥ नृप बहु तुम ऊपर कृपा रे लाल ॥ राखे ने निसदीस रे ॥रं ॥ जेहवा सांजलिया तेहवा रे लाल ॥दीग अमे सुजगीस रे ॥॥प्रा॥ १२ ॥ मांमी मांहोमांहे वातमी रे लाल ॥ पूढे सचिवजी वात रे ॥ २॥ कहो व्यापार किस्यो करो रे लाल॥ केता तुम अंगजात रे ॥ २० ॥ प्रा० ॥ १३ ॥ सेठ कहे प्रवहण तणो रे लाल ॥ व्यापार कृपाल रे ॥रं ॥ पुत्री एक माहरे अ रे लाल ॥ मानवती सुकमाल रे ॥२०॥ प्रा० ॥ १४॥ सांजलजो श्रोता जना रे लाल ॥ आगल वात रसाल रे ॥ २ ॥ मोहन विजयें रुपमी हो लाल ॥ नाषी आग्मी ढाल रे ॥ २ ॥ प्राण ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) ॥ दोहा॥ ॥ कहे प्रधान धनदत्तने, ते पुत्री ने क्याहिं ॥ नयणे तेहने निरखिये, तेमावो तुमे आंहिं ॥१॥ शेठ कहे ते बालिका, गश् अ सुणो देव ॥ जणवा अध्यापकगृहे, जिमवा आवसे हेव ॥२॥ केहो शा स्त्र जणे अजे, तुम पुत्री गुणवंत ॥ जैनधर्म अम श्राइनो, साधु समीप नणंत ॥३॥ कहे प्रधान तुम धर्मनो, समकावो मुझ मर्म ॥श्रवण देश्ने सांनलो, पामीने सुखशर्म ॥ ४ ॥ धनदत्त कहे सुण साहेबा, श्राजधर्मनो मूल ॥जेहवो गुरुमुख सांजल्यो, निसुणो थश् अनुकूल ॥५॥ ॥ ढाल नवमी॥ ॥ ते तरिया जाई ते तरिया ॥ ए देशी॥ ॥ जीवदया गुणधर्म अमारो ॥ हवं नही अमें कोश्ने रे ॥ मजान प्रमुखे जल वावरियें, नूतलजंतु जोश्ने रे ॥ जी० ॥ १॥ मंत्र नवकार जपोजे अह निस, नावें अढ मन राखी रे ॥ एहथी केई नर सं पद पाम्या, शास्त्र अबे केई साखं। रे ॥ जीव० ॥२॥ तरण तारण जिन पंचम नाणी, करियें तस पदसेवा रे ॥ कर्मसुनटने दूर करेवा, शिवपदना सुख सेवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) रे ॥ जी० ॥ ३ ॥ जीयकोह जीयमान महामुनि, ते हना मुखनी वाणी रे ॥ दानादिक अधिकारे नावि, ते सुणिये हित श्राणी रे॥जी॥४॥ शास्त्र जिना लय जिननी मूरति; संघ चतुर्विध जव्य रे ॥ए साते दे वावरियें, शक्ति यथोचित अव्य रे ॥जी॥५॥ व्रत पचखाण पोसह पमिकमणुं, विधिपूर्वकथी क रियें रे, ए संसार असार निहाली, विनयाच्यास अनुसरिये रे ॥ जी० ॥ ६॥ पृथिव्या दिकनो जे आरंज, थोडो जार ते लीजें रे॥पूरो आरंज निवारी न सकिये, तो पण थोड़ें कीजे रे ॥जी॥७॥ जेहवो जीव पोतानो तेहवो, परनोपण जाणीजें रे॥ छादशव्रत धारक कहेवाजं, परनिंदा नविकीजें रे॥जी० ॥॥ मिथ्यामतिने तो नवि मानु, गोगादिक नवि पू जूरे ॥ कोइ जीवने वध बंधन करता देखीने अमे , जूरे ॥ जीगाए। नेद गहन जिनधर्मतणा जे, नाणी विण कुंण जाणे रे ॥ तत्वज्ञान विण निज निज म तने, अझाने मत ताणे रे ॥ जी० ॥१०॥ अंधपुरुष जेम गजने पेखे, अवयव गजने प्रमाणे रे ॥ दृष्टि वंत गज पूरण देखे. तिम नयनेद वखाणे रे ॥ ॥जी० ॥ ११॥ एहवां वचन धनदत्तनां निसुणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) प्रमुदित हु प्रधान रे॥वाहवाह लाई धर्म तमारो॥ पावन कीधां कान रे ॥ जी ॥११॥ एहवे रमऊम करती श्रावी, मानवती मनरंगें रे ॥ विनयसहित प्रणिपात करीने ॥ बेठी तात उबंगें रे ॥जी० ॥१३॥ लावण्यता सुंदर देखीने, नृपसेवक श्म जाणे रे ॥ न्याये ए कुमरीने ऊपर, नृपति एकंगो ताणे रे ॥ ॥जी० ॥१॥ ए कुमरी नृपने परणाविस, चिंतव्यु बे जो कृपाल रे॥ मोहनविजयें हेजे नाषी, नवमी ढाल रसाल रे ॥ जी० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा॥ ॥चकितचित्त हुई सचिव, रूप निहाली जेह ॥ शुं शशिमुख दिसे सही, मुखप्रतिमाया एह॥१॥ कोटि विरंची जो लिखे, एह लिप तो न लिखाय॥ रचित रचाणो रूप ए, जिम जमराकर न्याय ॥२॥ सचिव कहे तव शेग्ने, रसनां वचन अमोल ॥जो मानो माहरो कह्यो, तो नाखं एक बोल ॥३॥क हिये ने मानो नही, तो कहे, ते आलि ॥ कचरा में नांखे कवण, मुरख कंचन कालि ॥४॥ शेठ कहे नाषो प्रन्नु जे मुऊ लायक काम ॥ हूं बुं राजनो टे ली, तुमे खांमी अनिराम ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) ॥ ढाल दशमी॥ ॥ केसरवरणो हो काढ कसुबो मारा लाल॥एदेशी ॥ ॥सेठ पयंपे हो सचिवने आगे॥मारा लालक हेतां तुमने हो दामसुं लागे ॥ मा० ॥ नाष्या मोरे हो श्म कां विचारो ॥मा॥ मोजां पाणी हो विण कां उतारो ॥ मा० ॥१॥ एहवो क्याथी हो नाग्य अमारो ॥ मा० ॥ कीजे साहिब हो काम तुमारो॥ मा० ॥ जे तुमे कहेसो हो ते अमे करसुं ॥ मा० ॥ विगर कहेथी हो माये न पीरस्युं ॥मा॥२॥श्म अति आदर हो सेठनो जाण ॥ मा० ॥ सचिव ते वारे हो बोल्यो वाणी ॥ मा॥ए विनती हो सु जग अमारी ॥मा॥ नूपति चाहे हो पुत्री तुमारी ॥माण्॥३॥ श्राव्यो बुं कहेवा हो ते हुँ तुमने ॥ मा० ॥ राजी करीने हो सिख यो अमने ॥मा ॥ राजन सरिखो हो होसे जमाई ॥ मा० ईन्य तु मारी हो पूर्ण कमाई ॥ मा० ॥ ४ ॥ पुत्री तुमची हो होसे सोहेली ॥ मा कोश् वाते हो नहि थाय दोहेली ॥ मा० ॥ अवसर एवो हो फिरि नहि श्रा वे ॥ मा० ॥ गान प्रमाणे हो गावण गावे ॥ मा॥ ॥५॥ जेवो वायरो हो उलो लीजे ॥ मा० ॥ पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) नृपसेंती हो हठ नवि कीजे ॥ मा० ॥ कारज तत क्षिण हो कीजे विचारी॥मा॥ कंबल नीजे हो तिम होये नारी॥मा०॥६॥ खोली मनमो हो कहो हूं कारो ॥ मा० ॥ नाहितर ए ले हो नृपति अटारो ॥मा॥थरक्यो धनदत्त हो निसुणी वाणी ॥ मा ॥ सचिवने ना हो कां कहो ताणी ॥ मा०॥७॥ नृपथी अलगो हो हूं बुं किवारे ॥ मा० ॥ पुत्री ले हाजर हो कहेसो जिवारे ॥ मा ॥ ते दिन होवे हो जे दिनराजा ॥ मा ॥ श्रावे अंगण हो वधते दीवाजा ॥ मा० ॥ ॥ आसरो केहो हो पुत्री केरो ॥ मा० ॥ बीजो कोइ कहो काज जवेरो ॥ मा० ॥ वस्तु केही हो नृपने न घटे ॥ मा ॥ ते श्यां फूल मांहो शिवने न चढे ॥ मा० ॥ए॥ जाउँ पधारो हो नृपने नाषो ॥ मा० ॥ लगन लेवामो हो मुहुरत दा खो॥मा॥ चोकस कीधी हो सचिवें सगाई॥ मा० ॥ ऊठी नृपने हो दीधी वधाई ॥मा॥१॥ रंज्योमहि पति हो केतव गेही ॥मा॥ खटके चितमे हो वाय क तेही माण॥ तेड्यो पंमित हो लगन निहाली ॥ ॥मा करशं राजी हो या ताली॥मा॥११॥ जाख्युं जाषो हो पंडित जोई ॥ मा॥ नीमी आपो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) हो सुलग्न कोई ॥मा॥ खोले पुस्तक हो लालच वा ह्या ॥माण ॥ योतिष केरा हो पुस्तक साह्या ॥ माण ॥ १५ ॥ दूषण विडंणो हो लगन ते लीधो ॥ मा ॥ नूपें तेहने हो अतिधन दीधो ॥मा॥ अतिसनमा नी हो गृहे पोहोचाव्या ॥ मा॥ पासा ढलीया हो नृप मन जाव्या ॥मा॥ १३ ॥ हर्षपयोधि हृदयें न मावे ॥माण॥ उत्सव महोत्सव हो नूरि उपावे ॥माण ॥ पण को नृपनो हो गुह्य न जाणे ॥ मा॥सहुको साधु हो करीने प्रमाणे ॥ मा० ॥ १४ ॥ आगले जोजो हो करमनी कांणी ॥ मा० ॥ पण ते ढाले हो वहेसे पाणी ॥ मा० ॥ ढाल ए दसमी हो मन थिर राखी ॥ मा० ॥ मोहनविजयें हो रंगें नाखी ॥ मा० ॥ १५॥ ॥दोहा॥ ॥ सेवक नृप आदेशश्री, जलासक्तिकृतमिसि एगायो पूर विवाहपर, कृष्णागरकृत धूम ॥१॥ समियाणा ताण्या नला, तिम तोरण लहकंत ॥ का णे घटा घन ऊनही, केकी नृत्य करंत॥२॥ मृगम द सूधा अरगजा, परिमल करता नूरि ॥ घरघर ढो स धमाल अति, नेह सरुदंता तूरि ॥ ३॥ कमध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) जीया जाने मल्या, केशरमे गरकाव ॥ ताता तुरी कु दावता, यालुंदा नरराव ॥ ४ ॥ धनदत्ते हवे मंदिरें, मांड्यो तिनबरंग ॥ वहिल सुखासन पालखी, सिणगारया शुचि अंग ॥ ५ ॥ ॥ दाल गीयरमी ॥ ॥ करमो तिहां कोटवाल ॥ ए देसी ॥ मानतुग म हीपाल, जान सजीने हो परवस्यां रंगशुं जी ॥ गु हिरा घुरेरे निसा, ताल कंसाल ने जंगल जंगसुं जी ॥ १ ॥ गजलका सोहंत, सोवन सांगत घोडा घूमराजी ॥ गुमियां गया गुजंत, यागल दोडे लवे नंबरांजी ॥२॥ नृपशिर सोहे वत्र, वली शुभपूजित फबतो सेह रो जी ॥ चामर ढले चिहुं और, फरहरतो वागो केह रोजी ॥ ३ ॥ लीधो श्रीफल हाथ, कुंकुमतिलके तंडुल जावियाजी ॥ इणे बरे राय, धनदत्त शेठने मंदिर वियाजी ॥ ४ ॥ तोरण मोतियें वधाव, वरकन्याने चोरियें पधरावियां जी ॥ रति मकरध्वज जेम, रूप उजयनां सहुने सोहाविया जी ॥ ५ ॥ पंचामृतनो होम, द्विज बेठा वेद चर्चा करेजी ॥ वाजे मंगलतूर, गाजे अंबरलोकां गहगहे जी ॥ ६ ॥ सोहला सरले साद, गावे गोरियां करगल बाहमी जी ॥ वर कन्याने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) शीस, ऊपर कीधी सखरी बहडी जी ॥ ७॥ मान वती मनमांदे, हरषे पीयुनां मुखने निरखती जी ॥ धुंघटना पटमांहे, वारंवारें नयणां फेरती जी ॥ ७॥ बेडमा बेहडी बांधी, फेरिया फेरा चारे चोरियां जी॥ आरोग्या कंसार, दंपतीमुखमां दिये कोलियां जी॥॥ जोजनयुगति अशेष, सहुने संतोषी कीधा वरणागिया जी ॥ वरत्या जयजयकार, मानवती ने महिपति पर पिया जी ॥१०॥ अर्थीजनने दान, देई सहुनांमान वधारियां जी ॥ सुंदरी लेई संग,मानतुंग राजा महे ल पधारियां जी ॥ ११ ॥ पुरिजन करे प्रशंस, धन्य धन्य कन्या ए वरने वस्यो जी॥युगतो जोमो एह, किहांथी ब्रह्माएं पेदा कस्यो जी॥ १२ ॥ धनदत्त चिंतवे चित्त, हुई सगाई घणुं मनमां गमीजी ॥ नृपस रिखा यामात, जे हवे माहरे सानी कमीजी ॥ १३ ॥ गिरुग्रहिये जोबांहिं,तो सवि वातो रुडी थश्रहेजी॥ श्रासरे नागरवेलि, पत्र पलासनो नृप कर जश्चढे जी ॥१४॥ नीच सरीसी गोठ, किहां लगें कीधी श्राखर थिररहेजी॥जिम उन्मत्त खरनाद, ऊंचो ऊंचो केतो क निवहे जी॥१५॥मुक पुत्रीनो नाग्य, हुई नृपनी रूमी अंतेउरीजी॥श्म फूले मनमांहे, नक धनदत्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ (३०) बेगे फरि फरिजी ॥ १६ ॥ पण महिपतिनी वात कोई डाह्या पण जाणे नही जी ॥ एह अग्यारी ढाल, मोहन विजयें नलि ढलकती कही जी ॥१७॥ ॥उहा ॥ ॥ मानतुंग महिपति हवे, मंदिरमें मनरंग ॥मा नवती माननी सहित, बेगे धरि उबरंग ॥१॥ मान वती निज मन थकी, हरखे पियुमुख पेख ॥ उमकरय णने न्यायपरें, वहे आश्चर्य विशेष ॥२॥ किहां राजा किहां वणिक धुय, किहांथी मेलो एह ॥ ए साधु के सोहणो, लिखित लेख थयो तेह ॥३॥ पियुने हुँ गुण दाखवी, वश करी राखिस हाथ ॥ एह सलूणी गोठडी, जो मेली बे नाथ ॥ ४॥ एकण वक्रकटाद में, पाडिश प्रेमने पास ॥ वेधावूने वेधतां,वार न ला गे तास ॥५॥एहवी मनास्या धरे, मृगनयणी तेणि वार॥सांजलजो सहुए जना, जे करशे किरतार ॥६॥ ॥ ढाल बारमी॥ ॥ हो कोई आणमिलावे साजना॥ए देश।॥ ॥नप नयण न मेले नारथी, न करे वलि मना हार हो ॥ थई रह्यो चित्रतणी परे, मुखे न करे वात लिगार हो ॥नृप०॥ १॥ जेम फणिधरने गारडी,खि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) से मंत्रप्रनाव हो ॥ जेम रहे बेसी करंगमे, तिम थई रह्यो नरराव हो ॥ नृप ॥ २ ॥ को दृग वां की करी, रमणीथी थयो रूप हो ॥प्रीतम मन चोरी करी ॥ वाली बेगे पूछ हो ॥ नृप० ॥३॥ मान वती चित चिंतवे, कंत न मेले कां मीट हो ॥ रसमां अनरस कां करे, फेरी कां बेठो पीठ हो ॥नृप०॥४॥ शुं कांई मुजमां वालहे, दीगे अवगुण कोय हो ॥ हजी नथी मुझशुं बोलतो, सहि शहां कारण होय हो॥नृपः॥५॥आजथी मांड्यो एहवो, आगल केम निवहाय हो ॥ प्रथम ज कवले मदिका, ते नोजन केम खवाय हो ॥ नृप० ॥ ६ ॥ करजोमी कहे कामिनी, अहो अहो प्राण आधार हो ॥ किम तुमे श्रामणदमणा, दिसोडो केणे प्रकार हो ॥ नृप० ॥७॥ हुं हुं कनमी राउली, मुऊ ऊपर स्यो रोष हो ॥ वाड जखे जो चीनमां, तो केहने दीजे दोष हो॥ नृप॥७॥ वी वलगी हुँ पालवे, ते किम अलगी थाय हो ॥ तेहने ठेली नाखतां, परमेश्वर उहवाय हो ॥ नृप०॥ ॥ ए॥ बोलो नाह मयाकरो, कहुं बुं विबगवी गोद हो ॥ धीरज ढुं न धरी सकू, उपजावो आमोद हो॥ नृप०॥ १० ॥ कटकीसी कीमी ऊपरे, तृण ऊपर स्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) कोठार हो | सांदमुं जूवो रे साहिबा, जो बुद्धि दि किरतार हो ॥ नृप० ॥ ११ ॥ बलानो बल केटलं तुम आगल महाराय हो ॥ पाय पहुं करुं वी ती ॥ पियुने घणुंशुं कदेवाय हो ॥ नृप० ॥ १२ ॥ वचन सुणी वनितातणां ॥ बोलसे हवे महीपाल हो || मोहन विजयें सोहामणी, पजणी बारमी ढाल' हो ॥ नृप० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मानतुंग माननीतणा, वेधाला सुणि वयण ॥ बोल्यो तव हसिने तदा, अरुण करी दो नयण ॥ १ ॥ सांजलने तूं हे प्रिया, आजनी ए नयी रीश ॥ में तुमने कपटे करी, परणी धरी जगीश ॥ २ ॥ हवे चरणोदक पावजे, देजे जूनुं अन्न ॥ ताहरे पाय लगाम जे ॥ करजे जाएयो मन्न ॥ ३ ॥ ब किसी मत राखजे, पूजे सघली हूंस ॥ जो मुकने वश नहि करे, तो तुमने मुऊ सूंस ॥ ४ ॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ प्रितडी न कीजे रे नारी परदेसीयां रे ॥ ए देश ॥ ॥ प्राणजीवनना रे निसुणी बोलमा रे, चमकी चतुरा तेवार ॥ पीउडे निहेजे रे वात ए सी करी रे ॥ है है For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) परजणहार ॥ नाहली निहेजो रे थइ रह्यो नारथी k॥१॥ नवि हु मनाव्यो रे जाय ॥ मनविण माया है किम करीने हवे रे ॥ अबला आकुल थाय ॥ मा०॥२॥रे विधि मुऊने रे कंत कां मेलव्यो रे ॥ निसनेहीने निटोल॥आगल निगमसुरे दिनमा केणी परें रे ॥ पीयुने एहवे रे बोल ॥ ना ॥३॥ सुरत रु जाणी रे बाथ जरी हती रे ॥ पण थई निवड्यो बंबूल ॥ जो जो करमतणी गती माहरी रे ॥ वालो थयो प्रतिकूल ॥ ना ॥४॥ मनमां आश्या रे मेरू जिसी हुँती रे ॥पीयुंथी करीस विलास ॥ दैव अटा रो रे देखी नवि सक्यो रे ॥ पयनी कीधी रे बास ॥ ना ॥ ५ ॥ बयल बिले रे मुझने बेतरी रे ॥ पर णी थईने कठोर ॥ सींचि एणे रे कूपक अन्दरें रे॥ कापवा मांमी रे दोर ॥ना०॥६॥ के शुं वेरण रे किण हिक श्रावीने रे ॥श्म नंनेस्यो कंत॥ एकहुँ केहने रेफुःखनी वातमी रे॥कोश्न दीगे संत ॥ना॥७॥ लाखीणो करीने रे हुँतो लेखती रे ॥ पामी नृप प्राणे श ॥ पण इणे वाले रे पेहेलीज बाजीयें रे॥ देखाड्यो करी वेश ॥ ना ॥ ॥ राजा मित्र न होवे केहना रे ॥ ते सवि साची रे वात ॥ मुझने एह जण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) परणावतां रे ॥ पातरियो मुऊ तात ॥ ना॥ए । जो हुँ धूरथीरे एह गति जाणती रे ॥ तो सारती विण नाह ॥ रहेती कुंआरी रे पण परणत नही रे॥ हवो उस्तर दाह ॥ ना ॥ १० ॥जे युवतीने रे सुख नहि स्वामिनो रे ॥ जीव्यो तस अप्रमाण ॥ राजा मुऊबीरे रूसीने रह्यो रे॥ते हुँ पूर्बु विन्नाणाना॥११॥ कहो कांप्रीतम रे मन मेलो नही रे ॥ एहवो मुफनो स्यो वंक ॥ खोले घालोरे जे गुनहो होवे रे ॥ नाषो थश्ने निःशंक ॥ ना० ॥ १२ ॥ मुझने धुरथी रे पर हरवी हुती रे ॥ तो मुझ परण्या रे केम ॥ हवे तमे एहवा रे मुजने वालहारे, मेणा द्योबो रे एम॥ना॥ ॥ १३ ॥ नाह कहे अमें जूठ न जंपियें रे॥ खोटं केम कहेवाय ॥ वचन संजारो रे तमे कह्यां हतां रे॥ रामतमा रस लाय ॥ ना० ॥ १४ ॥ कयु हतुं वृष नतणी परे नाहने रे ॥ फेरसुंघाली रे नाथ ॥ ते में सघला रे वचन ते सांजल्यां रे ॥ तेहथी थयो हुँनाथ ॥ ना० ॥ १५ ॥ मानवतीना उघड्या कानमा रे ॥ नृपतनी निसुणी रे वाण ॥ अंतरजामी एसाचूं कद्यु रे ॥ सी हवे ताणोताण ॥ ना ॥ १६ ॥ मानवती ना पुण्यतणे बले रे ॥ होसे मंगलमाल ॥ मोहनवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) जयें पनणी प्रेमसुं रे॥ सुंदर तेरमी ढाल ॥ ना॥ १७॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मानवती कहे रायने, अहो जीवनश्राधार ॥ रामत मांहें वयण ए, कह्यां हसे अविचार ॥१॥ एहवे वयणे वाहा, नवि राखीजे रीस ॥ मूक्यो श्रा वाने हवे, खोले ताहरे संसि ॥२॥विश्वासी परणी तुमे, हवे दियो बो बेद ॥ ए पातक किहां बूटसो हृदय विचारो तेह ॥३॥ मुझसुं कां थोडे गुने, नेह विणासो कंत ॥ गोद बिनाइने कहुं, मत लियो अब ला अंत ॥४॥ जिम जिम लागुं बुं पगें, तिमथा उडो वीर ॥ लोहा बलता ऊपरे, किम बांटो बो नीर ॥ ५॥ तेगो राखो मियानमां, करो विचारी काज ॥ नहि चाले नारीथकी, मूठ नली वडराज ॥६॥ ॥ ढाल चौदमी॥ वीडीयानी देशी ॥ हारे लाल ॥ बालाना सुणी बालडा ॥ चमक्यो नूप तेवार रे ॥ लाल ॥ जाणी मूक्यो आकरो॥केणे खंध उपर जेम खार रे ॥लाल॥ महिणुं लहिये थापणुं ॥१॥ एहमा नही मीन ने मेष रे ॥ लाल ॥ जो मन तूं जाणे वृथा ॥ तो तं परगट पेख रे ॥ लाल ॥ ले॥२॥ त्रिवली निलाडे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) आरोपिने॥बोल्यो नृप कमुवा बोल रे॥लाल ॥ को रे कहे नर श्रागले ॥ तरुणी ते केटले तोल रे॥लाल ले॥३॥नरजे चाहे ते करे॥लीये लंका जेहवा कोट रे ॥ ला ॥ सिंह सरिखाने हणे ॥ मयगल ने करे लोटपोट रे ॥ लाल ॥ ले ॥४॥ देवदानवने वश करे ॥ जल उपर बांधे पाज रे ॥ लालागिरिवरने न फेरवे ॥ वलि लांजे अरियण साज रे ॥लाल लेगा ॥५॥ नारी दासी नरतणी ॥ जाणे सहु संसार रे ॥ लाल ॥ जो नर मूके हाथथी॥ तो नारीने कवण आधार रे॥ लाल ॥ ले॥६॥आयउपाय करी घणा ॥नारीनो नर नरे पेटरे ॥ लाल ॥ नारी बिचारी बाप मी ॥ करे घरनो कारज नेट रे ॥ लाल ॥ ले०॥७॥ पियुथी विगानी जे प्रिया ॥ तेदनो मुख केम देखाय रे ॥ लाल ॥ घणु ए नली कंचनरी ॥ पण पेटेन मारी जाय रे ॥ लाल ॥ ले॥७॥ तूं जोरावर जग तमां ॥ थई दीसे वे नारी पेदास रे ॥ लाल ॥ मुख जो ताहाँ बापमी ॥ जे पीयुने करीस तुं दास रे॥ लाल ॥ ले ॥ए ॥ नरसुं न जायो चंडणे ॥ जे राखीस पीयु करी दास रे ॥ लाल ॥ खोटी पाडूं जो तुऊने।तो देजे मुफ साबास रे ॥ लाल ॥ ले ॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) चिंतवे मानवती तदा॥पीयुनी सुणी वातो श्राम रे॥ लाल ॥ पममा पेठी नाचवा ॥ हवे धुंघटनो स्यो का मरे ॥ लाल ॥ ॥ ११ ॥ बोली प्रिया प्रीतमप्रतें ॥श्म निपट न लेडो नार रे ॥ लाल ॥ नारीचरि त्रने दैवनो ॥ किणहि न पायो पार रे ॥ लाल ॥ ॥ ले ॥ १२ ॥ जे काम होवे नारीथी ॥ ते नरथी नवि थाय रे ॥ लाल ॥ नर तो बिगारी मजुरिया ॥ नित नारी पागल कहेय रे ॥ लाल ॥ ॥ १३ ॥ नारी कहे जे मुखथकी॥ते किमही खोटुं केम थायरे ॥ला ॥ मयंगलदंत जे नीसस्या॥ते पागा न समाय रे ॥ लाल ॥ ले ॥ १४ ॥ नारी जाणमुजने तुमे ॥ बोडो डो निपट जदायरे ॥ लाल ॥ पाय लगाकुं तुम जणी॥तो मानजो मुजरो राय रे ॥लाल ॥ले॥१५॥ तो हुँ मानवती खरी॥जो हुं बोल्या पावू बोल रे॥ लाल ॥ उड तुमें मत राखजो ॥ अहो नाह निगुण निटोल रे ॥ लाल ॥ ले ॥ १६ ॥ श्रागल जे होवे वातडी ॥ ते सुणजो बाल गोपाल रे ॥लाल ॥ मोह नविजयें हेजश्री ॥ नाषी अभिनव चौदमी ढालरे॥ साल ॥ ले० ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ॥ दोहा॥ ॥ सुणी वचन वनितातणां, मन चिंते महिपाल । तेमाव्यो तव सचिवने, नाषे वचन विशाल ॥१॥ अधुना ऊघाडो जई, एकथंनो आवास ॥ सजल सरोवर जिहां अजे, तिहां जई करसुं विलास ॥॥ अशन वसन घृत गुमनरो, ततक्षण तिणहिज गेह॥ सचिवे तिमहीज सवि करी, श्राझा सोंपी तेह ॥३॥ मानवतीनो कर ग्रही, नृप पोहोतो तिण गेह ॥ बे सारी तिहां नारीने, गीरा पयंपे एह ॥४॥ इहां रहे जो एकाकिनी, करजो विविध थाहार ॥ प्रतिवरसे खेसुं खबर, म करिस फिकर लिगार ॥ ५॥ पण तूं पाय लगाडजे, मुफने करजे दास ॥ वचन रखे तूं वीसरे, होती रखे उदास ॥६॥ श्म कही ते घरबा रणे, यंत्र समी नूप ॥ पोहोरायत परही तिहां, आव्यो गेह अनूप ॥७॥ ॥ ढाल पन्नरमी ॥ श्राले लालनी देशी ॥ ॥विरहिणी नारी तेह, रहि एकथंने गेह॥श्राला ल ॥ निंदे पुरातन कर्मने जी ॥ पाप आलोवे ताम, त्रिकरण करिने गम ॥ श्रा० ॥ मनमां धरी जिनध मैने जी॥१॥ एकेडियादिक जीव, दुहव्या होसे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) सदैव ॥या के तिलयंत्रमें जाविया जी॥के कोश्ने करी रोष, दीधा कूडा दोष ॥ आ ॥ के खत खो टा लिखाविया जी ॥२॥ पय पीतां लघु बाल, मा तथी लीधा उदाल ॥आ॥ के कीमी बिल पूरिया जी॥व्रत लेई थव शिष्य, कीधा जद अनद॥आ॥ के कंदादिक चूरियाजी ॥३॥ पापकर्म फल तेह, उदये श्राव्यां एह॥आ॥ कर्म कस्यां बूटे नहीजी॥ ए सवि आपणो वंक, एहमां नहि कांश शंक ॥ ॥ श्रा० ॥ श्म आलोचे रही रही जी॥४॥रे रे सरजणहार, पियुविरहिणी थ नार ॥ आ॥ एह वा किम लिख्या अकरा जी ॥ सी चोरी तुऊ कीध, वालिम विरहो दीध ॥आ॥ ए तुज लखण न सख रांजी ॥५॥ नारितणो अवतार, कां दीधो किरता र ॥आ॥ पीयुडो का एहवो मेलव्यो जी ॥ मात पिता रह्यां दूर, पीयू पण नही हजूर ॥ श्राण ॥ स्यो तुज ग्रास मे नेलव्यो जी ॥६॥ मात पितासु विशेष, राखता गोद हमेस ॥ आप ॥ ते पण मूकी किहां गया जी ॥ अबला एकाकी एह, नाखी एणे गेह ॥ आ ॥ प्रजु तुऊने नावी दया जी ॥७॥ कुलगुरु गोत्रज देव, जेहनी करती सेव ॥ आ० ॥ ते Jain Educationa International, For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) पण किहां गया इण समे जी॥हवे कांई उपायूँ बुझ्छ बेठी मंदिरमुक ॥ आ ॥ नाह नितुर केणीपरे नमे जी ॥ ॥ स्युं हवे विलपवू श्राम, धैर्यतणुं ३ का म ॥आ॥ रोयां राज न पामिये जी, शहां कुण करी सके नीर, जस खे तस पीर ॥ श्रा॥ तप करूं जिम कुःख वामिये जी ॥ ए॥ मांझयो तप बहु नंत नवपद सुलग जपंत ॥आ॥ मन दृढ करी तिण मे हेलमें जी ॥ जेहने धर्म सदाय, श्रापद विलये जाय ॥ श्रा॥ चाहे ते लहे सेहेलमें जी ॥१०॥ जोतां श्ण संसार ॥ अमवमियां श्राधार ॥ श्रा॥ धर्म डे नीरू जागातणो जी ॥ पापी न तरे कोय, करी देखो सहु कोय ॥ आ॥ धर्मथकी जस जय घणो जी ॥ ११॥ प्रतिक्रमणां बिहु टंक, सा करे थई निसंक॥ श्रा० ॥सामायिक व्रत साचवे जीन पने लगामवा पाय, आलोचे आयउपाय ॥आ॥ कौ तुक नवि सुणजो हवेजी ॥ १५ ॥ बेठी सदनमकार, करसे बुझिप्रचार ॥ आ॥ पालसे वचन कह्यां सही जी॥पनरमी ढाल रसाल, करणी मंगलमाल ॥आ॥ मोहनविजयें नदी कही जी॥ १३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) ॥दोहा॥ ॥दिन केता तिहां निगम्या,एकलमां श्रावास ॥ रे विरहिणी व्याकुली, मुख मेले निसास ॥१॥ अंजन मंजन परिहस्यां न करे वलि सिणगार॥म गन रहे वैरागमां, टाले विषयविकार ॥२॥ मान वती चित चिंतवे, बेग न सरे काम ॥ मुखमां पण पेसे कवल, उद्यम कीधे जाम ॥३॥ यामयुगम गश् यामनी, वनिता ऊठी संत ॥ ऊघामी लघुजालिका, मुख काढी निरखंत ॥ ४ ॥ यामिकमां जे वृक्ष बे, तेहने कीधो साद ॥ ते पण जाली देग्ले, आव्यो तजी प्रमाद ॥५॥ ॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ गौतम समुज कुमार रे॥ एदेशी ॥ ॥ पोहरायत कहे ताम रे ॥ मानवती जणी ॥ किम बोलाव्यो मुफ जणी ए॥१॥ नृपनें कहेवू जो होय रे ॥ कोय संदेसमो॥ कहो सिर जोरें ते कहूं ऐ॥२॥ केम उघामी जाली रे ॥ बहु प्रयास थी॥ चढिने अटारी ऊपरें ए ॥३॥ के सुं एणे श्रा वास रे ॥ सांजलतुं नथी॥ कहो पडदो खोली करी ए॥४॥ किम जाए दींह रे ॥ एकलमा रह्यां ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) स्यो तें नृपनो बिगामियो ए ॥ ५॥ ए मुख ताहर बेहेनी रे ॥ सही सकतो नथी ॥ पण स्वामीथी जोरो नही ए॥६॥ पुःनर नरवा काज रे॥ हंपण शहां रह्यो ॥ चोकी करवा तुम तणी ए॥७॥ को ली खाइए जेहनो रे ॥ तेहनो धोलियो ॥ बांधियें एह जगरीत ए॥ ॥ दाणांने जे कोई रे॥मुख मांडे जिको ॥ ते मुख मांडे चोकडे ए॥॥ स्वामी हाथे वृत्ति रे ॥ दासतणी अ॥ते जिम कहे तिम ते करे ए ॥ १० ॥ वांक म जाणसो अम्म रे॥वांक ए रायनो ॥ अमे बंदा तस पयतणा ए ॥११॥ मानवती तव बोली रे ॥ गदगद कंठ थी॥रे वीरा सुण वात डी ए ॥ १२ ॥ तुऊ लायक काम रे ॥ जो करे तो कहुं ॥ पाड हुँ मानिस ताहरो ए ॥१३॥ आपुं नवसर हार रे ॥ जा तूं उतावलो॥काज करो मया, करी ए ॥ १४॥ विरह अगाध समुष रे ॥ दे तूंबा हमी ॥ करुणावंत कृपा करीए॥१५॥ श्म कही दी धो हार रे ॥ ते जामिक प्रतें।तेपण लोनवसें पड्यो ए ॥ १६ ॥ अव्ये सुं नवि होय रे ॥ जे जे चिंत वे ॥ मुनिजनसरिखा बोलव्या ए ॥ १७ ॥ कहे अ नुचर कर जोमी रे ॥ कहो ते खामिनी ॥ काज करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) मुजरो करुंए ॥१७॥ राणी कहे मुकतात रे ॥ लगें संदेसमो ॥ कहुं ते जई पोचावजे ए ॥ १५ ॥ नूपें करीने कूम रे ॥ परणी मुझने ॥ खबर पमी नही तु कने ए ॥२०॥ हवे एकथंने आवास रे॥ रेहे, ए कढुं ॥ए जश् कहे जे तातने ए॥१॥पमखो वलीद णमात्र रे॥कागल दीयुं लखी॥ हाथो हाथे सुंपजे ए ॥श्ाांसुमसी पटपत्र रे॥अंगुली लेखणे ॥दीधो खि खी तस जालियें ए ॥२३॥ पत्र लेई सिर चामीरे॥चा त्यो चमवडी ॥ जेम बीजो जाणे नही ए ॥२४॥ पहोतो धनदत्त गेह रे॥अनुचर पाधरो॥शेठे छार उघामियां ए ॥ २५ ॥ दीधो तेणे पत्ररे॥वात कही सवे ॥ जे मुखवचनें कही हती ए ॥ २६ ॥ पत्नणी सोलमी ढाल रे॥अति मन मानती॥ मोहनविजयें सहु को सुणो ए ॥२७॥ ॥दोहा॥ ॥ धनदत्त चित्त विस्मय थयो, देखी चीवर लेख ॥ खोल्यो ततदण वांचवा, मन आश्चर्यविशेष ॥१॥ दीग आंसु अक्षरा, शेठ थयो दिलगीर ॥ गुप्त वात मवि प्रीउवा, वांचे थई सधीर ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) ॥ ढाल सत्तरमी॥ ॥jबखडांनी देशी ॥ अहँ जिनपदपंकजे रे॥चि त्ततरु प्रहितंलेख ॥ सनेही सांजलो ॥ मानवत्यातनु मही पते रे ॥ कैश्तवर्जित एष ॥स॥१॥ नवतां पादप्रसादान्मे रे ॥ सौख्यं वर्त्तते चात्र ॥ स ॥ पर मेकेयं विज्ञप्ति रे॥ अवधार्या गुणपात्रं ॥ स ॥२॥ नूपतीनां करपीमनं रे ॥ मम सोत्सवतो विधाय ॥ स०॥ विरहं दत्तं तेन मे रे ॥ कार्यं तस्य उपाय सम्॥३॥ जवदागारादारल्यमें रे ॥ गृहयावन्यो तात ॥ स नित्वा नूमि विधातव्यं रे ॥ मार्ग खलु विख्यात ॥ स ॥४॥ येन मया आगम्यते रे ॥ उपनवतो हि सदैव ॥ स ॥ तात करिष्यामि तदा रे ॥ वार्ता पुषजं चैव ॥ स॥ ५॥ एकाकिन्या वा सो मे रे ॥ सुरंगगेहे पूज्य ॥ स॥ कि बहुनेयं विज्ञ ति रे ॥ स्तोकाने यं गुह्य ॥ स ॥ ६ ॥ एह समा चार वांचिने रे ॥धनदत्त धूज्यो अतीव स॥पालो पत्रसेवक नणी रे ॥ दीधो लिखीने तदीव ॥स०॥७॥ सेवके मानवती जणी रे॥जई उपजावी प्रीत ॥सणा धनदत्त करे विचारणा रे॥शी हवे करवी रीतास ॥७॥ एहवे प्रातसमय थयो रे ॥ तेमाव्या गृहकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) ॥स०॥ एकांते सघलो कह्यो रे ॥ सेठे रहस्यविचार ॥ स ॥ ए ॥ बाहिर वात म काढसो रे ॥ तमने करसुंप्रसन्न ॥ स ॥ कारीगर तत्पर थया रे ॥ज्य नुं जाणी मन्न ॥ स ॥१०॥केतेक मासे पाधरी रे॥ सुरंग विनाश तत्र ॥ स०॥ मानवती एकाकिनी रे॥ नित्य निवसे डे यत्र ॥ स ॥१॥ गूढ उघाड्यो बार | रे ॥ एकथंने आवास ॥ स ॥ छार निहाली वियोगणी रे ॥पामी अतिहि उदास ॥ स॥१२॥ कारीगरे जईवीनव्यु रे ॥साहनणी तेणीवार॥स॥ वचन निवाहो राउला रे ॥ सुरंग कीध तश्यार ॥ स ॥ १३ ॥ बहुधन आपी तेहने रे ॥ शेठे कीध विदाय॥स ॥ नारी थकी तुमें जोय जो रे ॥ स्यो कीधो बे उपाय ॥ स ॥ १४ ॥ मानवती गृह तातने रे ॥ श्रावी थश्ने सुरंग ॥ स ॥ प्रणम्या मात पिताजणी रे ॥ हियडे धरी उबरंग ॥ स ॥ १५ ॥ चतुरा चरित्र निहालजो रे ॥ सहुको बाल गोपाल ॥स०॥ मोहन विजयें कही नली रे ॥ एतो सत्तरमी ढाल ॥ स ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ मातपिताने पागले, मानवतीयें ताम ॥ नृप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) वृत्तांत कह्यो सकल ॥ मन खोली अनिराम ॥१॥ पितर पयंपेधुअजणी॥ स्यो हवे कीजे सोच ॥ पी पाणी घर पूq ॥ ते किम आवे टोच ॥२॥ पुत्री कहे ए नृपतिने ॥ पाधरो करुं प्रवीण ॥ आणी आपो तातजी ॥ जो मुझने एक वीण ॥३॥ धनदत्ते पुर मांदेथी ॥ विणा अणावी एक ॥ सुपी मानवती नणी ॥ वारू करिय विवेक ॥४॥ योगणीरूप धयुं नढुं॥ मानवतीयें ताम ॥ हवे श्रोता जन सांजलो ॥ त्रिकरण राखी गम ॥५॥ ॥ढाल अढारमी ॥सनेही पास जिणंदा बे॥ए देशी॥ ॥मानवती नृप धूतवा माटे, रूप रच्युं अदनूत ॥ ढलती मुकी सिरथी जटा, वली अंगलगाय जन्नत ॥ सनेही योगण रूडी बे, अरे हां हां नीतर कूडी बे ॥१॥ ए टेक ॥ केम थकी कस्यो वज्रकडोटो, पापु कां पहेरी पाय ॥ माला गले रुखानी, करी अरु णनयण चितलाय ॥ सने ॥२॥ पीतांबर ऊढ्यो पडो, ते ऊपर योगपट्ट ॥ थापी कंधरे सोहती तिण वीणा घाटसुघट्ट ॥ सने ॥३॥ रूप रच्यो अनिनव वारु, कहेतां नावे पार ॥ जाणे युगनी योगणी, प्रगटी श्णे संसार ॥ सने ॥४॥ मातपि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) तानी सीखमी मागी, मानवती सोढांहि ॥ संचरी वेसे एहवे, ते तो नयर उज्जेणिमां हि ॥ सने० ॥ ५ ॥ सेरीये सेरीये दीये फेरी, गाये मधुरा गीत ॥ गुहिरां कोकिलकंठथी, जे सुतां उपजे प्रीत ॥ सने० ॥ ६ ॥ अंगे गौरी ने गुपनी उरी, रंजे पुरिजन तेह ॥ नर नारी लारे फिरे, घणुं नादे विधाणा जेह ॥ सने० ॥ ॥ ७ ॥ तृणचर पण ते नाद सुणीने, सोंपे मृगलां प्राण ॥ श्रनचरनो कहे किस्युं, जे वेध्या चतुरसुजाण ॥ सने० ॥ ८ ॥ जे कोई नादे नर नवि रीज्यो जीव्युं तस प्रमाण ॥ नररूपे ते रोजमा, नरे पेट थई जा ॥ सने० ॥ ए ॥ योगगिने गुण जे नर रीज्या, ते करे घणी मनोहार ॥ सापण निसनेही थ, करे वीणता ऊणकार ॥ सने० ॥ १० ॥ नादे जेहने नारद हास्यो, खेच्यो देव विमान ॥ फणिधर फण मांडी रहे, ए तो योगणनां सुणी तान ॥ सने० ॥ ११ ॥ रूमो रूप ने गाये वारू, ते केहने न सुहा य ॥ पुरमे प्रसंसा थइ घणी, जे योगण रूडं गाय ॥ सने० ॥ १२ ॥ इम दिवसे दिये पुरमां फेरी, घेरी सघला लोक ॥ हेरे सह मुख सांमुहो, जिम इंदूने हेरे कोक ॥ सने० ॥ १३ ॥ संध्यासमये तातने For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) मंदिर, श्रावी करे आसास ॥ सयनसमय जाई सुवे, जिहांएक थंजो आवास ॥ सने ॥ १४ ॥ वति तिम प्राते सुरंगे थईने, खेश् तेहिज वेस ॥वलि तिमहिज सहुलोकने कहे,मुखथी आदेस आदेस॥सने॥१५॥ श्रोता जन सांजलजो सहको, आगल वात रसाल। मोहनविजयें कही जली, ए तो रूमी अढारमी ढाल ॥ सने ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ लोकमुखे सोजा घणी, निसुणी श्रवण नरेस ॥ जे योगण गाये जली, पुरमें बाले वेस ॥१॥अति उबक थयो निरखवा ॥ योगण केलं रूप ॥ मूक्यो सचिवने तेमवा ॥ पुरमाहें तणे नूप ॥२॥ सचिव नमी सामणी प्रते ॥ नाखे वयण उदार ॥ नृपति अतिश्रातुर अडे ॥ देखण तुम दीदार ॥३॥ तेमा टे करुणा करी ॥ नृपने करी सनाथ ॥ चलो पधा रो अलेखणी॥ द्यो वीणा मुफ हाथ ॥ ४ ॥ मन थी हरषी योगणी ॥ ऊठी लेश्वीण ॥ चलो सिताव श्म उच्चरे। आगल थ सुप्रवीण ॥५॥ खमा खम कहेतो सचिव ॥ पहोतो राजवार ॥ सामणि दिन श्रावती ॥ नृप साचवे श्राचार ॥ ६ ॥ दोडीन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (MR) लागो पगे, आदर दीधो नूर || बेसामी सिंहासने, सामण जी सनूर ॥ ७ ॥ ॥ ढाल अंगणी शमी ॥ ॥ बावा किसनपुरी ॥ ए देशी ॥ ॥ पणे नूपति वायक तांम ॥ करी अवधूत ने परणाम | सामणि साच कहो ॥ यया किहांथी कि हां जी रहो ॥ सा० ॥ निसुण्या जेहवा गुण आवाज ॥ ते दवा तुमने दीवा याज ॥ साम० ॥ १ ॥ जले पधा स्या नगर मकार ॥ जे में पतितें पाम्यो दीदार ॥ सा० ॥ तुम बलिहारी जे थइने निग्रंथ ॥ पालो जी शुद्ध निरंजन पंथ ॥ सा० ॥ २ ॥ ग्यान ध्यानमां रहो बो मगन्न॥मन वचथी तुमने धन्य धन्य ॥ सा० ॥ कहो तुमे वे बाले वेश | किम योगेंद्रनो धरयो नेष ॥ सा० ॥ ३ ॥ बोली मानवती ततकाल ॥ सुन बे दीवाने तुं भूपाल ॥ सा० ॥ हम हे गेबी जीव तीत ॥ बु के को हमारी रीत ॥ सा० ॥ ४ ॥ रहे रमता राम हमेश || जेटे तीरथ देश विदेश ॥ सा० ॥ आए रखण नयर उद्धेन ॥ खेलत पावत हे सुख चेन ॥ सा० ॥ ५ ॥ कौन कीसी के वे जाय ॥ दाना पानी लेत बुलाय ॥ सा० ॥ जजे जगवान जगावे ॥ नि For Personal and Private Use Only ४ Jain Educationa International Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) श्रलेख ॥ ए सब कूमी पुनीयां देख ॥ सा ॥६॥ कि सके माता किसके बाप ॥ जीव एकिला श्रापोआप ॥ सा ॥ योगकी युगति न जाने कोय, अगम अगोचर नेद है सोय ॥ सा ॥ ७॥ अतिआनंदमें जो दिन जाय, सो जीवितका सफल कहाय ॥ क्या ले श्राया क्या ले जाय, सब स्वार्थके बनेहि श्राय ॥ सा॥७॥रीऊयो महिपति निसुणी वाण, बोल्यो तिम वलि जोमी पाण ॥ सा॥ वीण वजामी गार्ड गीत, विनति मानो करिने प्रीत ॥ सा ॥ ए॥ नृप अति आतुर जाणी तेण, गाया गीत त्यां मधुर खरेण ॥ सा ॥ वली तिम मधुरी वजा वीण, नूपा दिक सहु थया लयलीन ॥ सा ॥ १० ॥ पण यो गिण लिखी चिंते नूप, दीसे मानवतीरे सरूप ॥ सा॥ कीधो रखे होए एह उपाय ॥ मुझने एणे लगामवा पाय ॥ सा ॥ ११॥ पण बहुजतने राखी तास, श्रावी न सके तजि आवास ॥ सा ॥ तिहां जई जोऊ करी गृहस्पर्श, करकंकणने शो श्रादर्श ॥ सा ॥१२॥ योगणे चलचित्त दीगो राव, जो जो केहवो खेले जे दाव ॥ सा ॥ नृप जोशे जई तेहि ज धाम, तेमाटे उठयानुं काम ॥ सा ॥ १३ ॥ यंत्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) लेइ ऊवी धूतण तेह, भूपतिनी लेइ शीख सनेह ॥ ॥ सा० ॥ पोहोती तात तणे श्रागार, गइ एकथंने सुरं ग मकार ॥ सा० ॥ १४ ॥ उतारयो धसमसी योगण वेष, मूलवस्त्र पहिया सुविशेष ॥ सा० ॥ पोढी हींगोले खाट तिवार, हवे नृप पण आव्यो वार ॥ सा० ॥ १५ ॥ यंत्र खोली नृप गेह मजार, श्राव्यो दीवी पोढी नार ॥ सा० ॥ अचरज मनमां पामे नूप, रूप कला देखीने अनूप ॥ सा० ॥ १६ ॥ ए तो बिचारी अबला बाल, सूर्ति दिसे वे सेज विचाल ॥ सा० ॥ एहने उकले किहांथी उपाय, जे मुऊने ए लगाडे पाय ॥ सा० ॥ १७ ॥ जोलो राय न जाणे नेद, मानवती जे पूरशे उमेद ॥ सा० ॥ ए उगणीशमी रूमी ढाल, मोहन विजयें कही रसाल ॥ सा० ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ भूपें मानवती जणी, जई जगामी जाम ॥ ऊ वी जबकी सेजथी, कर जोमी रहि ताम ॥ १ ॥ उलं जो अवनीशने, नारी कहे धरि नेह ॥ खामी केम करुणा करी, मुऊ बलाने गेह ॥ २ ॥ शुं तमें मूला श्राविया, धसमसि मंदिरमां हि ॥ माहारा सम साचुं कहो, एम कहि काली बांहि ॥ ३॥ नाह कहे ताहरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) खबर, जोवा श्राव्यो श्राज ॥ जो कां जोतुं होय ॥ ते कहो सारुं काज ॥ ४ ॥ प्रिया कड़े माहरी ख बर, शुं पियु थोमी लीध ॥ जे लेवा आव्या हजी, मया घणी घणी की ॥ ५ ॥ या मंदिरमां एकली, तुम विण राखे कोण ॥ ए किमदी नहि वीसरे, पियु तुम गुणना गूण ॥ ६ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ जीणा मारुजीनी करदलकी ॥ करहलडी केसर रो कूपो म्हाने आलोहो राज ॥ ए देशी ॥ ॥ भूपति कहे सु जामिनी, एकलमां मंदिरमें नि गमियें कम करी दीदा ॥ हो राज॥ वांक न जाणीश माहरो, धुरथी कां नवि राखी पाधरी ताहरी जीहा ॥ हो राज ॥ १ ॥ अमृत विष इण जीनमें, अनरस पण इणी जीजें बहुली प्रीत लगाडे ॥ होराज ॥ को कि लवाणी सहु सुणे, वायसनी सुणी वाणी पथर नाखी उमाडे ॥ हो राज ॥ २ ॥ ति विचारयो न जाषिये, जो कालवे तें जाख्युं तो ए फल तुं पामी ॥ हो राज ॥ याज पढे पण एहवी, वदेती वर्हेती वातो करसो मा जिरामी ॥ हो राज ॥ ३ ॥ बोली मान वती तदा, पीउमा में घटतां वायक कां‍ नयी For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) जाख्यां॥ हो राज॥ पालीस सघला बोलमा, रामतमां सहियोनेरमतांजे में दाख्यां॥हो राज॥॥तो मुजरो मुक मानजो, लोटिंगण जो खेतालागो माहरे पाये ॥ हो राज ॥ एहमां फुल न जाणसो, देजो तव साबासी दीयुं देणुं सवा॥हो राज ॥५॥ तमे तो तमारी तर फथी, करवं हतुं ते कीउन किसी नवि राखी ॥ हो राज॥ मुफ अबलानी साहेबा, सुखछुःखनो इणि वेला सरजणहार डे साखी ॥ हो राज ॥६॥ नूपें वचन सुण्या श्स्या, कोप्यो अतिवनिताथी कीधां नेत्र विकराला ॥ हो राज ॥ घृत सिंच्याथी जेहवी, वाधे वायुसंयोगें ऊंची पावककाला ॥ हो रा॥७॥ रे रे निगुणी कामनी, लाज वली नही तुऊने तेहवी ह जी तुंदीसे ॥ हो राज॥ टेक हजी नथी मूकती, अस मंजस अमदावो लुमी तुं कां पीसे हो राज ॥ ७॥ बोल बोले डे एहवां तो तुं रहि के अलाधि एहवा मंदिरमाहे ॥ हो राज ॥ हजीअलगणसुं बापमी॥मु ऊने पाय लगाडे चितथी साचुं जाणे ॥ हो राज ॥ ॥ए ॥ रीस चढावी राजवी, उठ्यो अति वनिताने मंदिरमाहे मेहेली॥हो राज॥ यंत्रादिक तिम पूरिया, थाव्यो नृप दरबारें करीने रीत नवेली॥हो राज॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) मानवती पण तातने, आवीने गृहमाहिं तेहिज वेस बनाव्यो ॥ हो राज ॥ तिमहिज पुरमा संचरी, वली तिमहिज नृपने आगे जश्ने अलख जगाव्यो ॥ हो राज ॥ ११॥ नूपति योगणने पगें, शीसप्रते सो हावे रज तिम शिसे लगावे ॥ हो राज ॥ सामणी अवसर अटकली, वाये वीण सुरंगी कोकिलकंठे गावे ॥ हो राज ॥ १५ ॥ नृपर्नु तन मन वश कह्यु, धूतारी जोगणीय कांश्क जुरकी नाखी॥ हो राज ॥ अतिहि वेश सोहामणो, जोवा सरिखो जाणी जोवे नूपति कांखी ॥ हो राज ॥ १३ ॥ सा योगण चित चिंतवे, पीउने पाय लगाड्यो पूस्यो एक उल्हासो॥ हो राज ॥ चरणोदक पावं हवे, श्रागल जो केम थासे नृपश्री माहरे तमासो ॥ हो राज ॥ १४ ॥ढाल कही ए वीसमी, मोहन विजयें सुपरें मीठे वयणे ब ना॥हो राज ॥ जो जो सवि श्रोता जना, अबलाए पीठं धूतण केहवी बुद्ध उपा॥ हो राज ॥ १५ ॥ ॥ दोहा॥ ॥नरपति योगण आगले,मूकी बेगेमान॥श्रवण देश्ने सांजले, जीणा जीणा तान ॥ ॥१॥ नरपति कहे कर जोमीने, अहो योगण गुणधाम ॥ दास क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) री राखो तुमे, मुझने सही विणदाम ॥२॥ केही खिजमत तुम तणी, मुऊथी कीधी जाय ॥ अविना शी जे आदमी, मुऊथी किम वश थाय ॥३॥ तमे अवधू आवी इहां, गाश् सुरंगी वीण ॥ कोश्क कीधी मोहनी, मुफ ऊपर सुप्रवीण ॥४॥ हबे तुमे जासो किहां, मुऊथी लाइ प्रीत ॥ नेह करी निरवाहियें, तो रहे उत्तम रीत ॥५॥ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ ॥ आसणरा योगी ॥ ए देशी ॥ ॥ नृप कहे तेहने बे कर जोमी, हवे जा किहां मुक गेमी रे, योगण मन मानी ॥ रहो श्ण मंदिरमां हे सदाई, अमे आपशुं युगते गदाई रे ॥ यो० ॥१॥ लेशु खबर हमेस तुमारी, तुमे जो जो नफरी हमारी रे॥ यो० ॥ अमे अहोनिश उलंगमा रहेशं, तुमे कहेसो ते वहेअ॒रे ॥ यो ॥२॥ राखशुं करीने हाथें लाया, घणी लागी तुमथी माया रे ॥ यो॥ हवे अधदण तुम विण न रहा, तुम विरहो केम सहा रे॥यो॥३॥जो तुमे माहरा राख्यान रहो, तो चेलो करीने निवहो रे॥यो॥ सामण ताहरी सी में बिगा मी, जे एवमी प्रीत लगामी रे॥यो॥धामें मन ताहरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) पालव बांध्यु, वलि नेहमो करीने सांध्यु रे॥ यो॥ तो हवे ताहरा चरण न मूकुं, ए अवसर किम हुं चूकू रे॥ यो॥५॥ दरसण ताहरो किहांथी फेरी, श्रावी कोकिल पवने प्रेरी रे॥ यो॥ लेख लखित थयो तुम अम मेलो॥हवे महेर करीमन मेलो रे ॥ यो॥६॥ ताहरे मुझसम दास अनेका, पण मादरे सामण तुं एका रे ॥ यो ॥ वाणी सुणीने नृपनी अमोली, तव वलती योगण बोली रे ॥ यो ॥७॥ हम किनहीके राखे न रहे, कोण पेट हमारा नरहे रे॥ यो॥ हम पंनिन किनही के सनेही, मनमें महेर नहि केही रे ॥ यो॥७॥ योगी नोगी केही सगाई॥ हमसे क्यों प्रीत लगाव रे ॥ यो॥ हम परदेसी पाहुण लोगा॥ साधे फिरे योगिका योगारे॥यो॥ए॥ योगी किनके नसुणे मित्ता॥ योगी निस्पृहि अणनित्ता रे॥ यो॥ अवधू योगी कि आस्या कीजे ॥ पण योगीका अंत न लीजे रे ॥ यो ॥१०॥योगीजला जोश रहे नित्य रम ता॥धरे योगीन किनसुं ममतारे॥ यो ॥ मातपिता कों दिया जो बेहा ॥ तो तुऊशुं क्या करे नेहा रे ॥ यो ॥ ११॥ नहि परवाह किसीकी हमकों ॥ फिर बहोत कहा कहुं तुमकों रे ॥ यो ॥ जो तें हमळू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) राखण केरी॥ मन चाह धरे अनि नेरी रे॥ यो॥ ॥ १२ ॥ तो तूं कह्या एक मान हमारा ॥ तो रहे वे तुज दरबारा रे॥ यो ॥ कहे नृप तेहने देश दिला सो ॥ मुफ सरिखो काम प्रकासो रे ॥ यो॥१३॥ तुम वचनथी न रहुं अलगो ॥ हुं तो ताहरे पालव वलगो रे ॥ यो ॥ एहवो नाग्य किहांथी अमारो ॥जे कह्यो करिये तमारो रे ॥ यो ॥ १४ ॥ नृपनो अतिहि आग्रह जाणी॥हवे बोलसे योगण वाणी रे ॥ यो० ॥ एम एकवीसमी ढाल ए नाखी ॥ मोहन विजयें मन थिर राखी रे ॥ यो ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ तो रडं में तेरे निकट, जो तुं न जावे दूर ॥ लाख लाख गाली सहे, तोही रहे हजूर ॥१॥ जब तूं मुजकुं बोरके, रहे दूर बिन एक ॥ ऊ चलूंगी में तबे, या है मेरी टेक ॥२॥ तूं जो इतनी करसके, तो मोको शहां राख ॥ नहि तो अबहिं कर विदा, पीडा उत्तर नाख ॥३॥ नृप पय लागीने कहे, अहो योग ण महाराय ॥ निवहीस ए सघj कह्यु, हुकमे रहिश सदाय ॥४॥ गाली गणीस तुमारडी, करिने घीनी नोल ॥ साखी प्रजु ए वातनो, आपन बिहूं विचाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () ॥५॥ अति श्राग्रह जाणी करी, रही योगण नृप पास ॥ जो जो धूतण धूतसे, देई देई विसास ॥६॥ ॥ ढाल बावीशमी॥ मोतीमानी देशी ॥ योगण नृपनां बिहूं दिल मलि या ॥ जाणे पयमें पतासा जलिया, सामण चरि ताली धूताली ॥ राजकाज नृपें मूकी दीधुं ॥१॥ जाणे योगणिये कांई कामण कीg ॥ सामण चरिता ली धूताली, रामकी मतवाली ॥ ॥ए टेक ॥ नूप ति नोलो नेद न लेखे, धोलुं सघनु पय करी पेखे ॥ सा ॥ ते अवधूतण नृप मन नावी, जाणे अंगण गंगा आवी॥सा॥रा॥२॥दणमांसा एक आंखें हसाडे, दणमां नृपने पाय लगाडे ॥ सा ॥ दूध ने मांगनो न्याय देखाडे, वलि दणमें नूपतिने मारे ॥सा ॥रा॥३॥ क्षणमां नृपने तमाचे मारे, दणमां बाल परे बुचकारे ॥ सा ॥ जेम योगण लत्ता निर थाटे, तिमतिम पुरपति तलियां चाटे ॥ सा ॥ रा० ॥४॥ नरपति जाणे रखे मुहवाती, पंखणीनी परे उमि जाती ॥ साद्यं खमे धूतारीनो राजा, जिम खमे मंका घायने वाजा ॥ सा ॥ राम् ॥ ५ ॥ जे गुणिजन गुणिने वश पडिया, ते तो नंग जेम हीरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) जमियां ॥ सा ॥ रसनी रीजने सुगुणनी वातो, अमियसमाणी ते विख्यातो ॥सा ॥राण ॥६॥ गुणवंतने सहुँ आदर आपे, गुणथी कूपक घट जल थापे ॥सा॥ गुणियणने सेवे नर अमरा, जिम गुण लीणा पंकजनमरा ॥ सा ॥ रा ॥ ७ ॥ एक गुणे अवगुण बहु ढंके, जेम फणिपति मणि पोहोतो मंके ॥ सा ॥ जे गुणियणनो गुण नवि जाणे, तो तेह नुं जीवित अप्रमाणे ॥ सा ॥ रा॥७॥ तिम गुण जाणीसामणि अनिरामी, त्रिकरण रंजव्यो उजे णी स्वामी ॥ सा ॥ नृप पागल मधुरे खरें गावे, वली तिम मधुरी वीण वजावे ॥ सा ॥रा ॥ ए॥ वली योगण पुरमा दिये फेरी, हरखें खेले अबधूचे री॥ सा ॥ वली तिम तात तणे घर आवे ॥ सु रंग थर एकथंने जावे ॥ सा० ॥ रा० ॥१०॥ यामिकथी पण मांडे वातो ॥ मानवती एम खेले घातो ॥ सा० ॥ नृप यो गिण विण अधदण न रहे। तलफे म परे तेणे विरहें । सा० ॥राण ॥ ११ ॥ नृप यदि जोवा अनुचर मूके ॥ योगणि आवे सम य न चूके ॥ सा॥श्म करतां निगम्या दिन केता॥ तनमनथी थयो वश नृप तेता ॥ सा ॥ रा० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) ॥ १५ ॥ रागने रंगे डबीलो के ॥ योगण श्रावे समयने ताके ॥ सा० ॥ सामणि अवसर कहियें न पामे ॥ जे अवनीशने बोलें दामे॥ सारा॥१३॥ पण जिनधर्म पसाएं रूमो, थासे तेमां नही कां कूमो ॥ सा ॥धर्मथकी मनवांबित थासे ॥ धर्म थकी चिंतित सुख पासे ॥ सा ॥ रा ॥ १४ ॥ हवे आगल अचरजनी वातो॥श्रोता निसुणो तजि व्या घातो ॥ सा ॥ ढाल बावीसमी मन थिर राखी॥ मोहन विजयें रसनायें जाखी ॥ सा॥राण ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ एहवे उजेणीथकी, उन्नरजरवामाट ॥ चाट्यो कोश्क वाणियो, लेई दक्षणवाट ॥१॥ पहोतो तेह वे अनुक्रमे, मुंगीपट्टण ताम ॥ तापे पीमाणो थको, बेगे तरुविश्राम ॥२॥पूठ्यो पुरवासी नणी, इहां कुण राजे राय ॥ पालो तेणे तिणने कडं, हां दल थंजणराय ॥३॥राणी तस गुणमंजरी, सकलक लायें पूर ॥ रतनवती तस पुत्रिका, अगणित गुणें सनूर ॥४॥ हमणा ते नृपपुत्रिका, श्रावसे रमए वसंत ॥ जो जोवानो खप करो, तो रहो यहां एकंत ॥ ५॥ पथिके जाएयु जायसुं, सांके नगरीमांहि । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) जीव्यां में जोयुं जQ, श्म, धरि रह्यो तरुांहि ॥६॥ ॥ ढाल त्रेवीसमी॥ सखीरी आयो वसंत अटारमो॥ ए देसी ॥ सखीरी एहवे आवी क्रीमवा ॥ कीमवा ॥ रतन वती वनमांहि,॥चतुर नर सजिलो॥स॥ खेले संग साहेलियां ॥ साहे ॥ गालीने गलबांहि ॥ चतु ॥१॥ स ॥ ताली देई केश्क लिपे ॥ के ॥ वेली सदनमकार ॥ च० ॥ स ॥ ढुंढी काढे तिहांथकी ॥तिहांथकी॥ रतनवती तिणिवार ॥ च ॥२॥ स॥ केश कदंबना गुबमें ॥ गु०॥ रहे लघुगात्र बिपाय ॥ ॥च० ॥ स ॥श्रमसीकर लेश मुखे ॥ ले०॥ मुग तासम रह्या आय ॥ च ॥३॥ स ॥ नाखे गेंछुक कुसुमनां ॥ कु०॥आमासांहमा केश ॥ च॥स॥ बुटी कबरीये बालिका ॥ बा० ॥ दोडे मलीने सवेश ॥ च ॥४॥ स० ॥ जाणीयें उरवसी ऊतरी॥3॥ इंजपुरीथीनर ॥ चणास॥ सोनायें वनगही ॥व नगा ॥ तुनृप तो रह्यो दूर ॥ च० ॥५॥ स०॥ ते पंथी नृपपुत्रिने ॥ नृ॥निरखे त्री नेण चणास॥ चोरपरे गनो रह्यो ॥ बा ॥ मुखथी न जंपे वेण ॥ च॥६॥ स॥ते नर वासी उणनो ॥ ज० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) रतनवतीयें दीठ ॥ च० ॥ स० ॥ मूकी तेहने तेमवा ॥ ते० ॥ बाला एक विशिष्ठ ॥ च० ॥ ७ ॥ स० ॥ रे पर देसी प्राहुणा || प्रा० ॥ केम बपी रह्यो रे अबूज ॥ च० ॥ स० ॥ ऊ खमारी खामिनी ॥ खा० ॥ तेडे बे अहो तुऊ ॥ च० ॥ ८ ॥ स० ॥ आव्यो वटा वाणियो ॥ वा० ॥ रतनवतीने पास ॥ च० ॥ स० करी प्रणि पत ऊजो रह्यो । ऊ० ॥ सा पूढे सुविलास ॥ च० ॥ ॥ ए ॥ स० ॥ श्राव्या किहांथी किहां जसो, जाषो स त्यवचन ॥ च०॥ स०॥ नर कहे श्राव्यो उजेणथी ॥ उ० ॥ जे बे नूतले धन्य ॥ च० ॥ १० ॥ स० ॥ मान तुंग राजा तिहां ॥ राजा० ॥ राजे वधते वांन ॥ च० ॥ स० ॥ रूपकलागुणें आगलो || गु० ॥ नही कोई तेह समान ॥ च० ॥ ११ ॥ स० ॥ जेहना सुजस निसा ना ॥ नि० ॥ दह दिस सुणियें श्रवाज ॥ च० ॥ स० ॥ जेहथी करतो गगनमें ॥ ग० ॥ नासी रह्यो सुरराज ॥ च० ॥ १२ ॥ स० ॥ गतणी चकचोधमे ॥ च० ॥ पाम्यो हार अनंग ॥ च० ॥ स० ॥ वहे श्रहो निसि जस अंगणे ॥ ० ॥ दान गंगाना तरंग ॥ च० ॥ १३ ॥ स० ॥ ते नृप जेणें दी वो नही ॥ दी ० ॥ जीव्युं तस या ॥ च० ॥ स० ॥ दीगंहिज श्रावे बनी ॥ श्र० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) केता करियें वखाण ॥ च ॥ १४ ॥ स० ॥ जे कन्या ते वर वरे॥व०॥ तेहनुपूरण नाग॥च०॥स ॥पथि कनां वचन सुणी श्स्या॥सु॥रतनवती धस्यो राग ॥च ॥ १५ ॥ स॥ आतुर हुश् परणवा ॥ प० ॥ उणीधणी तेह ॥ च ॥ स० ॥ गुण निसुणी पर गमी गया॥प०॥ रोमारोमे तेह॥च०॥१६॥स॥ ॥ वन हंती श्रावी घरे ॥ श्रा॥ रतनवती ततका ल ॥ च० ॥ स०॥ मोहन विजयें लहकती ॥ ल॥ कहि त्रेवीसमी ढाल ॥ च० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ चेटीने नृप धुव कहे, गतिशैशव मुरु देव ॥ यौवन आगत तनुविषे, अनुमाने अहमेव ॥१॥ वर वरवा छा थई, मुऊने हवे सुविलास ॥ तेमाटे तुमने कडं, श्वा पूर उल्हास ॥२॥ वर वरवो उजो णपति, नहि तो पावकसंग॥तूं जा कहे मुज मातने, कर करुणा तो रंग ॥३॥ चेटी दोनी ततदणे, राणी निकट पह्रत ॥ रतनवतीनी वातडी, कहि मधु राई युत्त ॥ ४॥ गुणमंजरियें रायने, पजणी सकम प्रवृत्त ॥ मानतुंग नृप परणवा, पुत्री थश् उनत्तल ॥५॥ दलथंनण निजनारिने, कहे त्रिय म करिश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) खेद ॥ पुत्रीने परणावसुं, ए पूरी शुं उमेद ॥ ६ ॥ माता एं पुत्री जणी, जइ दीधी आसास ॥ इछावर परणा वशुं, पूरुं तुक मन यास ॥ ७ ॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ ॥ धारा ढोला ॥ ए देशी ॥ ॥ दलथंजण निज मंत्री ने रे, मी कहे एकंत ॥ गुणना लोजी, तुंजा नयरी उणीयें रे ॥ मानतुंग जिहां संत ॥ गुं० ॥ मानो मानो सुगुण कह्यो मा नो, तुमे ए महारी अरदास ॥ गु० ॥ ए यांकणी ॥ ॥ १ ॥ कहेजे लागीने पगे रे, माहरो संदेसो तास ॥ गु० ॥ रतनवतीने परणवा रे, वेहेला यावो यावास ॥ गु० ॥ २ ॥ थाशे जे मुऊ चाकरी रे, तेह करीश महाराय ॥ गु० ॥ रहेसुं दास थई सदा रे, इम जई कहेंजे जाय ॥ गु० ॥ ३ ॥ वहे जे पंथ उतावलो रे, विलंब न करजे क्यांहि ॥ गु० ॥ वहिलो वलजे नृप जणी रे, तेमी आवजे हिं ॥ गु० ॥ ४ ॥ मंत्री नृप आदेशथी रे, चाल्यो चडीने तुरंग ॥ गु० ॥ साथे लीधो संबलो रे, जट लीधा वलि संग ॥ गु० ॥ ॥ ५ ॥ पंथे वदेतां पाधरो रे, जोतो धरा गिरि नेए ॥ ० ॥ अनुक्रमें केते दिने रे, आव्यो पुर उजे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) गु० ॥ ६ ॥ दक्षिणपतिने मंत्रियें रे, भेट्यो नृप मान तुंग ॥ गु० ॥ नेट थयो चित नेटणुं रे, हरख्यो घणुं पुरपुंग ॥ गु० ॥ ७ ॥ दलथंजणराजातणो रे, जा यो व्यो सचिव | गु० ॥ दीधो तस दरबारमें रे, सखर उतारो तदीव ॥ गु० ॥ ८ ॥ मंत्री उतस्यो तिहां जइ रे, जोजन कीधां सार ॥ गु० ॥ पहेरी वसन संध्यासमे रे, श्राव्यो ते दरबार ॥ गु० ॥ ए ॥ एकांते बेसी करी रे, मांगी जूपथी वात ॥ ० ॥ राजलगें व्यो अबुं रे, मूक्यो नृपनो विख्यात ॥ ० ॥ १० ॥ मुऊ नृपनी जे पुत्रिका रे, तेणे प्रतिज्ञा कीध ॥ गु० ॥ वरवो उद्रेणीधणी रे ॥ नही तो मे व्रत लीध ॥ गु० ॥ ११ ॥ ते माटे पण पूरवा रे, तिहां लगें वो खाम ॥ गु० ॥ दल थं प्रेयो अबे रे, मुऊने एणे काम ॥ ० ॥ १२ ॥ हवे सज यई स्वामी तमे रे, कीजे प्रयाणो आज ॥ गु० ॥ पाणी न खमे पातली रे, लाजे विणसे काज ॥ गु० ॥ १३ ॥ मानतुंग निसुणी रह्यो रे, तेह सचिवनां वयण ॥ गु० ॥ उत्तर देइ नवि सक्यो रे, नीचा करी रह्यो नेण ॥ ० ॥ १४ ॥ कड़े मंत्री केम साहिबा रे, अबोल्या रह्या आम ॥ गु० ॥ पाडो उत्तर आ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) पतां रे, सुं कांइ बेसे वे दाम ॥ गु० ॥ १५ ॥ नृप कहे माहरी ना नथी रे, घ्यावीस शिरने जोर ॥ गु० ॥ लगो नथी तुम वचनथी रे, पिए वे एक मरोर ॥ गु० ॥ १६ ॥ उत्तर एहवो मंत्रिने रे, दीघो तव नू पाल ॥ गु० ॥ मोहन विजयें एकही रे ॥ सुजग चोवीसमी ढाल ॥ गु० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नूप विचारे चित्त थकी, जावुं प्रति हि दूर ॥ यो गए डुहवासे खरी, जो हूं न रहूं हजूर ॥ १ ॥ एक समे बेहु क्रिया, किम सचवाणी जाय ॥ नृप चित्ते वी मल्यो, वाघ नदीनो न्याय ॥ २ ॥ जो नवि जाऊं परणवा, तो रीसासे नूप ॥ ए बेहुनां मन राखवा, सी बुद्ध करूं अनूप ॥ ३ ॥ एहवे फिरती योगिणी, यावी जिहां बे राय ॥ नृप ते मंत्री देख तां, दोमी लागो पाय ॥ ४ ॥ बेठी सामण बेसणे, वीण वजावे सार ॥ पण नृपनो जांखो वदन, फिर फिर जोए निहार ॥ ५॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ राग बंगालो, राजा नही नमे ॥ ए देशी ॥ ॥ बोले योगी नृपथी वाण, याज एसे क्यों दिसो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) सयाण ॥ मन मानले ॥ क्या कुछ फिकर हे हृदय मकार, कहे चिंता युं दियुं बिडार ॥ म० ॥१॥ कहे तो तेरे आगे इंद, जकरपकर कर ल्याऊं बंद ॥ म॥कहे तो बकरीसें हराजं गजराज, कहे तो चिमी पें उमा बाज ॥ म॥२॥ कहे तो शशिकला सुर जमेर, तेरे आगे करुं ढमढेर॥तेरेमनमें होवे चाह, तो शशि पास गहा, राह ॥ म० ॥३॥ कहे तो लराजं हरिसे कुरंग, कहे तो ऊलट बहाउं गंगाम॥ कहे तो करुं सूरको चंद,कहे तो चंदको करिव्युं दिणं द ॥ म ॥४॥ इत्यादिक विद्या मुऊ पास, कहे तो करी दिखाऊं तमास ॥ म ॥ जो एक हूं में तेरी जीर, तो तूं होत हे क्यों दिलगीर ॥ म ॥ ५ ॥ दिलकी बात कहो धरी हूंस, जो न कहे तो तुक कू सूंस ॥ म ॥ तब योगणने कहे नूमीस, तो कडं जो न चढावो रीस ॥ म ॥६॥ कहेवा जीव धरे ने ईह, पण कहेतां नवि चाले जीह ॥ म॥ सामणि कहे तूं सुण बे राय, जैसी होए तैसी दे बताय ॥ म ॥ ७॥ नृप कहे मुंगीपट्टण गाम, राजा तिहां दलथंजण नाम ॥ म॥ पुत्री रतनवती नामे ए, मुऊ ऊपर पण की, तेण ॥ म ॥ ७॥ ते माटे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) तेणें राजान, मुछने तेडवा मूक्यो प्रधान ॥ म ॥ तिहां जश् पर| कन्या तेह, वाततणुं जे कारण एह ॥ म ॥ ए॥ योगण त्रटकी बोली वाण, रे रे अध म क्या बोट्या वाण ॥ म०॥ क्या तें दियाथा कोल संजार, दिन थोरे में क्यों दिया बिसार ॥ म॥ ॥ १० ॥ न सक्या तू तो वचन निवाह, तो हमकुं तें राखे कांह ॥ म ॥ देश बचन युं चूके पुमान, ताको जीयो अजीयो जान ॥ मम् ॥ ११ ॥ जानी बे तेरी कूमी प्रीत, अब तेरे पर क्या परतीत ॥ म॥ तुऊसे तो नीका मंमलीक, जो पोतेसें रहत नजीक ॥ म ॥ १२ ॥ धिग धिग धिग तेरा अवतार, किस सुले घड्या तोहें किरतार ॥ म ॥ तुमसे तो नले हम योगीस, वचने तुझपे रहे निशदीस ॥ म॥ ॥ १३॥ हम नि चलेंगे तीरथ काज, क्या योगीकुं संजारना साज ॥ म॥ एक दर मुंदे खुले दर लाख, ए योगी मुखकी हे नाख ॥ १४ ॥ तोसें क्या देणी हे राय, यो कलु दियो होय तो बताय ॥ म ॥ अहि अरि योगी न किनके मित्त, तूं राजा तो हम हे अतीत ॥ म० ॥ १५ ॥ तूं तेरे घर करे नित राज, अब हमसे क्या तेरा काज ॥ म ॥ श्म योगणना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) निसुणी वचन्न, नृप ढाली रह्यो नीचा कन्न ॥ म॥ ॥ १६ ॥ सामणने पाये ततकाल, लागी मनावे हवे नूपाल ॥ म ॥ पजणी ए पचवीसमी ढाल, मोहन विजयनां वचन रसाल ॥ म० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥अहो अहो सुनगे सामणि, हुं अपराधी शीश॥ ए गुनहो बगसो मुने, रखे चमावो रीश ॥१॥चा कर चूके चाकरी, पण खामि न चूके वाच ॥ अवगु ण ऊपर गुण करे, ते मणि बीजा काच ॥२॥ कृ सागर बाल्यो थको, सांदमुं दिये सुवास ॥ कोस जो नाखीयें नीरमां, तो पण जल दिये तास ॥३॥ के सरने घसतां थकां, बिमणो दाखे रंग॥सोनाने पर जालिये,अतिहि दीपावे अंग॥४॥ श्छु पिले जो यंत्र मां, तो पण रस देअंत ॥ तेम निहेजा ऊपरे, कदी हि न कोपे कंत ॥५॥ तिमहं चूको सामिनी, पण तुमे चूको केम ॥ बेहू सरिखा होवतां, किम रस वाधे एम ॥६॥ ॥ ढाल बीशमी ॥ __ कपूर होवे अति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ नृप कहे बेकर जोमीने रे,अहो अहो आतमराम ॥वीणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) मूको कंधथी रे, रीस चढावो का आम रे ॥योगण ॥ बटकी न दीजे बेह ॥ हुंडं पगनी रेह रे ॥ योगण ॥ मानो वीनति एह रे ॥ योगण ॥बटकी न दीजे बेह ॥१॥ ए टेक ॥ सरम नजर मेला तणी रे, श्रावती सुं नथी चित्त ॥ ह न द्यो तुमे मुफ नणी रे, हुं श्म जाणतो नित्त रे ॥ यो ॥ ॥२॥ माहरा हृदय मांहे वसी रे, मन हरी जाबो एम ॥ किहां रह्यु तुम योगीपणुं रे, ए पातिक बूटसो केम रे ॥ यो॥ ब॥३॥ जासो जो गोद बिगावतां रे, तो अम बल स्यो साम ॥ करि केम रहे कांने ग्रह्यो रे, तेम तुमे अनिराम रे॥ यो ॥ बन॥४॥ माया लगामी कारमीरे, मुऊथी तमे महाराय ॥ पण कदीही योगी सरां रे, आपणना नवि थाय रे ॥ यो॥ ॥५॥ परदेशीथी प्रीतमी रे, करवी तेहिज कूम ॥ नेह नि वाहि नवि सकेरे, जाए विहंग परे ऊम रे ॥ यो॥ उ॥६॥ते में नयणे पारख्युं रे, तुमथी दीगो आज ॥ जो हुं एहवं जाणतो रे, तो न करत नेह समाज रे ॥ यो ॥ ॥ ७॥ पण ते हवे सुं सोचवु रे, होए होवणहार ॥ दौरकरम कीधा पडे रे. पूजे सुं तिथी वार रे ॥ यो ॥ ॥॥ जे जीने तुमें कह्यो हतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) रे, रहिसुं सदा इ ठगेर ॥ तिहि जीनें जायसो रे, कतां किम वड़े सोर रे ॥ यो० ॥ ० ॥ ॥ नेहसुरडुम पालिने रे, नांखो कांई उच्छेद ॥ करुणा नीरें सिंचियें, पूरो एह उमेद रे ॥ यो० ॥ ० ॥ १० ॥ ढुं नही सही सकुं तुम तो रे, विरहो अधक्षणमात्र ॥ द्वाख ज्युं वेल्ली विबुटियें रे, जूरी कृश करे गात्र रे ॥ यो० ॥ ० ॥ ११ ॥ तनु कोमल मधुरी गिरा रे, दीसे वे प्रगट प्रसिद्ध ॥ तो कठणाई एवडी रे, हि यडे कहांथी लीध रे ॥ यो० ॥ ० ॥ १२ ॥ मनप करीने कुंलुं रे, मानो मुऊ मनोहार ॥ कोईकना मुख साहमुं रे, जुड़े जीवन आधार रे ॥ यो० ॥ ४० ॥ ॥ १३ ॥ यति तायो केम पूरवे रे, नेह थयो जिहां एम ॥ नाखी विरहयो धिमा रे, नासी जासो केम रे ॥ यो० ॥ ० ॥ १४ ॥ कूमो खाल चडावीने रे, जासो तुमे महाराय ॥ दाढी हाट्यानो किस्यो रे, मांड्यो मुजयी न्याय रे || यो० ॥ ० ॥ १५ ॥ हुकम करो तो परणवा रे, जाऊं करुणागार ॥ कहो तो न जाऊं इहां रहुं रे, कहो ते करिये विचार रे || यो० ॥ ० ॥ ॥ १६ ॥ केम चाले तुम हव्यां रे, वीनवे इम नूपा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) ल ॥ मोहन विजयें वरणवी रे, एह वीसमी ढाल रे॥ यो ॥ 3 ॥ १७ ॥ ॥दोहा ॥ ॥ नृप आतुर जाणी करि, सामणि बोली ताम ॥ रे बंदे नारान्यके, क्यों कलपत हे श्राम ॥ १॥ दे खन तेरा पारखा, इतना किया विलास धन्य धन्य तेरी मातकुं, तोकुं हे साबास ॥२॥ दलथंजनकी पुत्रीसें, कर विवाह मनरंग॥कहे तो में साथे चढुं, वीणा लेई संग ॥३॥ तूं ददणकुं ऊठ चले, हम रहे इहां कुणकाज ॥ जित तूं तित हमही चले, म कर फिकर महाराज ॥४॥ राजा अतिहर्षित थयो. सामणनो लहि हेज॥ जिम हरखे निझाबुर्ज, पामी सुंदर सेज ॥ ५॥ हारेल जेम वाहन मले, नूख्याने जिम अन्न ॥ तिम योगण वचनें थयो, नवपल्लव नृप मन्न॥६॥योगिणनुं मन थिर थयु, देखीने नूपाल ॥ दलनणना सचिवने, तेमाव्यो ततकाल ॥ ७॥ ॥ ढाल सत्तावीशमी ॥ ॥ जगजीवन जगवालहो ॥ ए देशी॥ ॥ तेह सचिव कहे रायने, ढील किसी करे राय ॥ लाल रे ॥ चालो जी पंथ डे वेगलो, आवे जो तुमचे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) दाय॥लाल रे॥चतुर सनेहि सांजलो॥॥तिहां नृप वाट जोतो हसे, हु तुमे तश्यार॥ला॥धरम करम गति शास्त्रनी, तरित कही सुविचार ॥ ला ॥ च ॥२॥ नप पण तेहना कहेणथी. सजी चतरंगी सैन्य ॥ ला ॥ निसाने मंका थया, नादें पूस्यो गयण ॥ ला० ॥ च ॥३॥ योगणियें निजयंत्रमां, राख्या नूषण खास ॥ ला ॥ ांना राख्या गोपवी, नृपति न जाणे तास ला॥ च०॥४॥ चाल्यो नृप दक्षिण दिशे, सचिवने आगल कीध ॥ ला ॥ योगिण पण साथें चली, रथमें बेसारी लीध ॥ ला ॥०॥५॥ वाटें दल सबलो वहे, जाणे ऊंमह्यो मेद ॥ ला ॥ के उबलियो कबोलथी, दीरोदधि ने एह ॥ ला॥ च०॥६॥ एक एकने ऊपरें, हय चाले हीसंत ॥ ला॥ मदकरता मयगल चले, अ॒मादंम धरंताला॥ च॥ ७॥ पायक प्रौढा परवस्या, हवा सानिध बरू ॥ ला० ॥ मुबाला महरायता, तिरकसी चले धरि कंध ॥ ला० च ॥७॥श्म सेन्याये परवस्यो, मंजल सर थयो राय ॥ ला ॥ दण दण नृप सा मणतणी, खबर लिये चित्त लाय॥ला॥चाणाक्षण क्षण बिडं एक वाहने, बेग करे गुणगान ॥ ला॥ गीत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) सुणे तस मुखथकी, नूधर देई कान॥ला॥च॥१०॥ इम वहेतां दिनपांचमे, पाम्या एक उद्यान ॥ ला॥ सदल सरल महीरुह घणा, ऊंचा लगे असमान॥ला॥ च ॥ ११॥ गया सघन देखी जिहां, रवि पण न करे जोर ।। ला ॥ उमगुडे बेग थका, मधुरां टहुंके मो र ॥ ला ॥ च ॥ १५ ॥ सजल सरोवर जिहां तिहां, अति रमणीयक वन्न ॥ ला ॥ देखी मही पतिनुं थयुं, घणुं आणं दित मन्न ॥ ला ॥ च०॥ ॥ १३॥ योगणिने पूरी करी, डेरा दीधा तत्र ॥ ला ॥ खेदाक्रांत थया नटा, ऊतरिया सर्वत्र॥१४॥ धूतासे योगण थकी, ए वनमें नूपाल ॥ ला ॥ मोहनविजयें जली कही, सत्तावीसमी ढाल ॥ ला॥ च० ॥ १५॥ ॥दोहा ॥ ॥ डेरा दीधा देखिने, सामणचिंते चाव॥ एकान नमे कंतने, धूत्यानो ने दाव ॥१॥ ढील न करवी कामिनी, ऊखाणो कहें लोय ॥ जिम जिम जीजे कंबली,तिम तिम जारी होय॥॥श्म चिंती ऊठी तुरत, वीणा कर धरि तेह ॥ मानतुंग महीपति नणी, श्म नाषे धरि नेह ॥ ३ ॥ सुण बे तूं उजेणपति, कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (JU) तो इण उद्यान ॥ हम खेले जइ सरवरे, कर यावे असमान ॥ ४ ॥ बिनुकमें फिर आउंगी, करिके मुनि आचार ॥ तव नरपति कहे खामिनी, वन वे ति विस्तार ॥ ५ ॥ वाघ सिंघ गुंजे घणा, तुमे बो स्त्री जात ॥ कहो तो या वोलाववा, सा बोली सुणि वात ॥ ६ ॥ कौन वोलावे सिंहकों, इम कहि ऊठी तेह ॥ वीणा लेई वन्नमां, यावी धरिने नेह ॥ ७ ॥ ॥ ढाल अावीशमी ॥ ॥ के तट यमुनानो रे अति रवियामणो रे ॥ ए देशी ॥ के तट सरोवरनो रे अति रलियामणो रे, चि हूं दिशि जरियो गुहीर गंजीर ॥ मढकलपनां रे पूंब अ बाटती रे, उबले जल सरतीर ॥ तट सरो० ॥ १ ॥ हंस चकोर रे बग ने सारसी रे, जेणे तट करता बहु लि केलि ॥ केक उमता रे केश्क बेसता रे, के‍ रह्या ज लथी चंचू नेलि ॥ तट० ॥ २ ॥ जंबु लिंबु रे ब कदंबना रे, तिहां रह्या लुंबित जुंबित काम || जलरा खण रे जनने कारणे रे, जाणियें कीधी एहनी वाड ॥ तट ||३|| यति रमणिक रे थानक जोइने रे, यो गण पामी मन आणंद || सांजलजो सहु कोइ रे, नृपने धूतवा रे, जे इहां रचसे रामा फंद ॥ तट० ॥ ४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) मूकी वीणा रे अलगी कंधथी रे, तरुवर कोटरमांहि विपावी ॥ पेठी धीगी रे ऊमा नीरमां रे, की, मंजन युगति बनावी ॥ तट ॥ मंजन करिने रे जलने बाहिरे रे, श्रावी केस निचोवे नार ॥ टप टप टबके रे जलनां बिंवा रे, जाणे तूटो मोतीहार ॥ तट ॥ ॥६॥ सुंदर अंबर पीतांबरतणा रे, काढ्या वीणा मांथी ताम ॥ पहिया जिलता रे वसन ते अंगथी रे ॥ जेणे बबि मोहे सुरमनिराम ॥ तट ॥७॥ कऊलरेखा रे सारी नेणथी रे, जाणे समास्यो मनमथ बाण ॥ कीधी राती रे कुंकम बिंका रे, जाणे उग्यो शैशव नाण ॥ तट०॥॥ अंगो अंगे रे नूषण नावि या रे, नेउर घमके चरणे जोर ॥ जाणियें पियुनेरे एणिपरें जीपवा रे, धसमसी दीधी नगारे गेर ॥ तट ॥ ए॥ अपरसरि रे रूप बनावियुं रे, हींचे वम साखारहिवां हि ॥ गाए मधुरां रे गीत आलापीने रे, ऊंचे स्वरथी तिणे वनमांहि ॥ तट ॥ १० ॥ श्म तिहां करतां रे पहोरज थ गयो रे, पागल नरपति जोवे वाट॥हजिय नावी रे योगण सुंथयुं रे, पमी हसे नूली विषमे घाट ॥ तट ॥११॥ रखे होए एह ने रे जीवें पराजवी रे, रखे होसे बडी सरोवर मां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) हि ॥के रखे मुझने रे वाही गइ हसे रे, में पण मूकी एहने कांहि ॥ तट० ॥ १५ ॥ हजिय न आवी रे वेला बहुथ रे, किहां गश् योगण मूकी नेह ॥जोश काढुं रे जश्ने वन्नमां रे, जिहां तिहां होशे हमणों एह ॥ तट ॥ १३ ॥ नूपति जव्यो रे एकलो आप सुं रे, सेवक कोश्न लीधो संग ॥ धीरज हुश् रे राय जणी तदा रे, फरक्यो ज्यारे जमणो अंग॥ तट ॥१४॥ चमवमी चाख्यो रे खडग संबाहने रे, वनमां जोवे तव नूपाल ॥ मोहन विजयें रे नाषी रंगयी रे, अहावी समी ढाल रसाल ॥ तट० ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ लतायुब ढंढोलतो, तस जोवे नृप राट ॥ जमे जिम मयगल विफस्यो, फिरे करे गललाट ॥१॥ यूथ ज्रष्ट जिम हरणलो, फिरे प्रचारे फाल॥तिम नेहे वेध्यो थको, वनमां फरेनूपाल ॥२॥ पण योगण लाने नही, जोवे पगनूपीठ ॥ मानवतीये कंतने, वनमां नमतो दीठ॥३॥ जाएयुं श्राव्यो वबहो, मुझने जोवा काज दिन धोले घूत्या तणो, अवसर मलियो आज ॥४॥ नाहनणी आकर्षवा, गाए गीत रसाल ॥ जाणे टहु की कोकिला, बेठी आंबामाल ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥ ढाल उगणत्रीशमी॥ ॥ चांदाने चाषणे हो, हंजा मारु गुमियां उमा वे ॥ कां गुमियांरी दोरी प्यारी हो लागे, नोली नणदीरो वीरो ॥ कमधज कह्यो न माने, कह्यो न माने हो॥वाला मारा कह्यो न माने गए देशी॥राजाने देखीने हो.कामणी कमी बकि जपावे ॥साद करी करी नाहने तेडे, अहो लाल विदेसी मित्ता, माहरे क्षण सरवरियें पधारो॥ हीचोले हिंचीने हो, पंथी माहरा अरज करुं बुं ॥ तार पड़ी तुमे वेह जोहो पाणी ॥ ॥१॥पंथीमा पंथने हो, पंथी मारा रखे रे वता॥ दीसो बो कोश् प्रेम पियारा ॥ अ॥ वाटमली वोली ने हो ॥ पंथी० ॥ मुफ पधारो ॥ श्रादू ने अवलू कांश विचारो ॥ अ॥२॥ आगले जाता हो ॥ श्री० ॥ इहां हिज आवो ॥ पगले बे चारे पगसुंहोसे मेला ॥ ॥ श्म किम वनमें हो ॥ पंथी॥जुल मा जमो बो ॥ किणे कामणिये कस्या श्म गहिला ॥ अ॥३॥ वातमीयें वेधाण हो ॥ पंथी० ॥ नृप चित चिंतें, मुझने साद करे कुण नारी ॥१०॥साम णिना सरिखो हो ॥ पंथी० ॥ स्वर ते न दीसे ॥ ए तो असेंधो साद डे नारी॥ ०॥॥ वाणिने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) अनुसारे हो ॥पंथी॥ नृप तिहांश्राव्यो, दीवी नारी हींचती माले॥०॥ नामाने जरोंसे हो ॥ पंथी॥ अपबर दीसे, राजा फरि फरि तास निहाले ॥ अ॥ ॥५॥ शोनाने देखीने हो ॥ पंथी० ॥ नृप जो रहियो, चरणे नमीने तास हींचोले ॥ ॥ वेध डीये वेधाणो हो ॥ पंथी० ॥ विकट कटादे, नारी जणी नूपति तव बोले ॥ अ० ॥६॥ किहांथी आ वी हो, जामनि नोली ॥ किहां तुं रहे , इहां एकाकी केम तुं हींचे ॥ १० ॥ नाह लिये निहे जे हो ॥ ना ॥ दुहवी दीसे डे, किंवा कोयथी प्रीतमी सिंचे ॥ अ० ॥ ॥ नानमीयें वर्षे हो ॥ ॥ ना ॥ बिहती नथी गुं, कहे मुने साच हृदय तुं खोली॥ ॥राजाना मुखथी हो ॥ ना ॥ वचन सुणीने, ततक्षिण धूतण मधुरं बोली ॥ अ० ॥७॥ कह कहाणी हो ॥ पंथी० ॥ तुजपे कहुं बु, बाल पणे पण कीधो अटारो ॥ अ० ॥ पयतल धोश्ने हो ॥ पंथी० ॥ जे जल पीवे, तो हुँ तेहने करं प्रीतम प्यारो ॥०॥ ए॥ पटकाने पलवटें हो ॥ पंथी॥ प्रीतम नाथु, वृषलतण। परे यहां तिहां फेरुं ॥१०॥ एहवो तो नाहलियो हो ॥ पंथी० ॥ नवि मल्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) कोइ, पण न रडुं को मुफ पण केरुं ॥ अ०॥ १०॥ खेचरनो खामी हो ॥ पंथी० ॥ जनक अमारो, तेणे मुज पणनी वातमी जाणी ॥ अ॥ तातडीयें रीसडली हो ॥ पंथी० ॥ मुऊ जणी कीधी, वर पर णाववा घणुं ए ताणी ॥१०॥११॥पीयरथी रीसा वी हो ॥ पंथी० ॥णे वन आवी, पण पूख्या विण किम परणाय ॥ अ० ॥ आज मुने दीहमला हो ॥ पंथी० ॥ चार व्यतीता, चार ते चार युग सरिखा गणीएं ॥ अ० ॥ १२ ॥ कामिणिनी केलवणी हो ॥ ॥ पंथी ॥ सही करी मानी, नृप जाणे एणे साची दाखी ॥ १० ॥ मोहन विजयें हो ॥ पंथी० ॥ सुपरे बनावी, उंगणत्रीशमी ढाल ए जाखी ॥१०॥ १३॥ ॥दोहा॥ नरपति रमणी निरखिने, थयो घणूं लयलीन ॥ जिमश्रामिष पेखी करी, उलसे जलचर मीन ॥१॥नूप विचारे एहने, परणुं वन्नहमकार ॥ उर्जन विस्मय कार णे, सफल करुं अवतार॥२॥ नृप जाषे नारी जणी, अहो रतिने अवतार ॥ जे तुऊ चरणोदक पिये, ता स करे जरतार ॥३॥ हुँ तुज चरणोदक पिऊं, थर फरूं वृषन सरूप ॥ जो मुझने परणो तुमे, तो पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) पूरुं अनूप॥४॥सा नाषे रे पंथिया,तो बे केहनी ढील हुँ एहिज ढुं अर्बु, त्यो मनमथनी मील ॥५॥ अंधहि वां आंखने, पंगू वांडे पाव ॥ तेम हुं वांबूं बूं पीयु, वरं पण पूरे राव ॥६॥ योगण तो जूली गयो, विकल थयो महिपाल ॥ दंनफंदमाहे पड्या जरीय न सके फाल ॥७॥ ॥ ढाल त्रीशमी॥ ॥ मुजरो व्यो ने जालिम जाटणी ॥ ए देशी ॥ ॥आतुर हुई जी परणवा, नूपति वन्न मकार ॥ सा कडे लावो जी निर्मल नीरने, त्यो चरणोदक सार, हवे सहु जोजो कौतुकवातमी ॥१॥ कामि नी कपटनंमार, नवि लहे कोई तास चरित्रनो, ब्रह्मादिक पण पार ॥ हवे ॥२॥ नृप तव दोड्यो जी नीरने कारणे, पेठगे सरोवर मांहे ॥ पात्र निपा व्यो जी पोयण पत्रनो, नस्यो जल तेहमां उबांहे॥ हवे॥३॥ जल लेई श्राव्यो जी नारी पागले, कहे श्म बे कर जोग ॥ पाउं कहो तो जी हुं घोई पीयुं, परो मनतणा कोम॥ हवे ॥४॥ नारियें दीधो पद नृपहाथमां, मूकीने कहे धोय ॥ व्यो करो थाचंबन तोयनु, माहेरी वांबना होय॥ हवे॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) अरहो परहो जी त्यां अवलोकिने, पुरपति धोवे पाय ॥ पीधुं पखाली सात वेला तिहां, चरणो दक चित लाय ॥ ह ॥ ६ ॥ कोटमें नाखी जी सुंदर फालीयुं, वृषन सरिखो बनाय ॥ चाबख देई सरवरने तटे, फेरव्यो नारीयें राय ॥ ६ ॥ ७॥ जिहां त्रिय मूके जी पयतणा तलियां, तिहां नृप मांडे जी हाथ ॥ मानवतीयें तिहां वननें विषे, धूत्यो अवंतीनो नाथ ॥ ६ ॥॥ चारें दिशायें चार कलस मीसे, रेणुना तुंग बनाय ॥ तरुवर तणीजी साख करी तिहां, परएयो प्यारीने राय ॥ ह॥ए॥ धिग धिग होजो जी काम विटंबना, कामथी न रहे जी माम ॥ कामथी कामी कामिनी पागले, नर धूताये वे आम ॥ ह ॥ १० ॥ मानवती त्यां मन मांहे हसे, अहो अहो नाहनी बुद्धि ॥ धुंतुं ढुंजी तोहि हजी लगे, पमती नश्री कांई सुछि ॥हा॥ ११ ॥ ए बल सारूं तो श्णे नारीने, निन बी मूकी केण ॥ में तो पाट्या जी मारा बोलमा, हरषे एमहिएण ॥ ह ॥ १५ ॥ नृप कहे केम जी हसो बो प्रिया, उलस्युं केम तुझ हीयुं ॥ सा कहे केम जी हुँ नवि जवसुं, पामी तुम सम पीयुं॥हा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ॥१३॥ आज कृतारथ हुँ एहवे थई, पण पूख्यो मन खंत ॥ नाग्य ते वाध्यो जी हवे श्हां मुफतणो, मुखनो पोहोतो अंत ॥ ह० ॥ १४ ॥ कर ग्रहीने कहे नृप नारने, चालो डेरे जी हेव ॥ पीयूनो आग्रह घणुं श्म पेखीने, सा बोली ततखेव ॥ ३० ॥ १५ ॥ खामीजी हवणा तुम संगें श्रावतां, मुऊने आवे ने लाज ॥ आवीस तिहांही जी घमी एक अंतरे, जाउँ तुमें महाराज ॥ ह ॥ १६ ॥ हरख्यो नारीनां वयण सुणी तिहां, डेरे श्राव्यो नूपाल ॥मोहन विजयें जी नाषी लहकती, त्रीसमी ढाल रसाल ॥ ६ ॥१७॥ ॥दोहा॥ ॥ मानवती वसनाथने, विदा करीने ताम॥ वस्त्रा दिक फरी वीणमें, संगोप्या अनिराम ॥१॥ थई अवधूतण फेरिने, जस्म चढावी अंग ॥ मूकी वीणा खंधपर, धरती हृदय उमंग ॥ ॥ कोई वाटे पेहेली गश, श्रावी बीजी वाट ॥ योगण दिठी श्रावती, अति हरष्यो नृपराट॥३॥बेसामी सिंहासने, जगति युगति बहु कीध ॥ संतोषी अशनादिके, गीत गान रस पीध ॥ ४ ॥ नृपति विचारे चित्तमां, ह जिय न श्रावी नार ॥ के सुं वनदेवी हती, गई मुऊने विष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) तार ॥ ५॥ के गणि कोई ठगी गई, इस्यो थयो प्रकार ॥ मुखमां आव्यो कोलियो, गयो हवे किस्यो विचार ॥६॥ जो ए योगण जाणशे, तो होसे निस नेह ॥ गश्तो आगी जाण दे,गया तणी शी हि ॥७॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी॥ ॥ मानो मानो सजन मुफरो मानो ॥ ए देशी ॥ ___॥ नृपना मनमा खेचरी रे ॥ सूरिजन ॥ खटके थश्ने साल ॥कामनी धूतारी॥जोलेवे सुरनरकोमी ॥ माननी मतवारी॥ माने नृप उजालनो रे॥ सू०॥ कोश्क थर गयो ख्याल ॥ का ॥१॥ पण नृप न कहे कोयने रे ॥ सू० ॥ वृषन थयो ते वात ॥ मा०॥ कोठीमा मुख घालिने रे ॥ सू० ॥ रोवे ज्यु तस्कर मात ॥ का० २॥ योगण पण अण जाण ती रे ॥ सू० ॥ थ बेठी नृपपास ॥ मा० ॥ एक एकथी राखे बुपी रे ॥ सू० ॥ वातडली सुविलास ॥ का० ॥३॥ डेरा उपाड्या वनढूंतीरे ॥ सू० ॥ चाल्यो तिमहिंज सेन ॥ मा० ॥ तिमहीं सामण गोठडी रे ॥ सू० ॥ मांडे पती उऊोण ॥ का० ॥४॥ अनुक्रमें श्राव्या चालता रे ॥ सू० ॥ मुंगीपट्टण तेणीवार ॥ का ॥ सामिण कहे महारायने रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) ॥सू०॥ सुण एक मेरा विचार का ॥५॥ में योगी तें जोगियारे ॥ सू० ॥ चहेरा करे कलु लोग ॥ मा०॥ तेरे संगें सहेरमे रे ॥ सू ॥ केसे श्रावनका योग ॥ का॥६॥ में रहूंगीण बागमें रे॥सू०॥ तुं जा नगर मकार ॥ मा योगी सोही जाणियें रे।। सू०॥ राखे लोकाचार ॥ का० ॥७॥ व्याहके रतनवती त्रिया रे ॥ सू० ॥ तूं इत आए वेग ॥ मा० ॥ राखे जैसा हे तिसा रे ॥ सू० ॥ तेरे मेरे नेग ॥ का॥॥ फेर उऊोणि श्राजंगी रे ॥ सू० ॥रे नृप तेरे संग ॥ मा० ॥ योगणनी वाणी सुणी रे ॥ सू० ॥ पाम्यो नूपति रंग ॥ का॥ ए॥ योगण रहि ते वाडी रे ॥सू॥ नृप आयो पुरमांहि ॥माण ॥दलथंजण पण सांमुहो रे ॥ सू॥श्राव्यो धरि उबांहि ॥ का०१॥ मानतुंग अतिहेजसुं रे ॥ सू० ॥ पुरमें कीध प्रवेश ॥ मा० ॥ दीधो उतारो महेलमां रे ॥ सू० ॥ उत यो दल सुविशेष ॥ का ॥ ११॥ मानतुंग महि पालने रे ॥ सू० ॥ दलथंजण करे सेव ॥मा जोज न जगति नली करी रे ॥ सू० ॥ माने करीने देव ॥ का० ॥१२॥ रतनवतीने परणवा रे ॥ सू० ॥ सुंदर मुहुरत लीध ॥ माम् ॥ दक्षिणपति पुत्रीतणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६) रे ॥ सू ॥ मनह मनोरथ सिद्ध ॥ का० ॥ १३ ॥ रतनवती गणे माहरो रे ॥ सू० ॥ सफल थशे अव तार ॥ मा ॥ परणशे मुझने चोरिये रे ॥ सू० ॥ मालवपती सिरदार ॥ का ॥ १४ ॥ योगणनी जो जो कला रे ॥ सू० ॥ करशे खेल रसाल ॥ मा० ॥ मोहनविजयें वरणवी रे ॥ सू० ॥ ए एकत्रीशमी ढाल ॥ का ॥ १५॥ ॥दोहा॥ ॥ योगणवेश उतारीने, पेहेख्यो अदभुत वेश ॥ वीण जपावी बागमां, आवी नयर निवेश ॥१॥रत नवती पासे गश्, मली घणे मनोहार ॥ रतनवती जा णे हिये, ए कुण सुंदर नार ॥२॥ पूढे आव्या कि हां थकी, कवण तुमारो नाम ॥ मानतुंगराजा तणी हुँ नु वडारण नाम ॥३॥ श्रावी गोणी थकी, मानवती मुक नाम ॥ रूपें अमो तमसारखी, नवि निरखी कोय वाम ॥४॥ मुझने नूपें मुकी अबे, तुमने जोवा काज ॥ तेमाटे श्रावी अखें, तुज मंदि रमां श्राज ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) ॥ ढाल बत्रीशमी॥ ॥ चित्रोमा राणारे ॥ ए देशी ॥ ॥ दलथंजण कन्या रे, हरषे थइ धन्या रे, मान वती सम अन्या तेणें दिठी नही रे॥जननीने जणा वी रे, वातगढ़। बनावं। रेआपणने घर आव वमारण गहगही रे ॥१॥ तस रूप सरिखं रे, हूं तो नवि पर रे, कहो तो श्राकरघुतुम अंदिरे |जननी कहे जावो रे,श्हां तास बोलावो रे,किसि वार म लावो तेमो मंदिरे रे॥२॥ रतनवती लेइ चेडी रे, फरी आवी नेमी रे॥ वमारण तेडी माताने मेलवी रे, कही पुत्रीयें जे हवी रे ॥ अगें दीठी तेहवी रे, मानवतीयें कला के हवी केलवी रे ॥३॥ नित वेस बनावे रे, गुण आप जणावे रे, गाई गीत सुणावे सहुने वश करे रे ॥ हली मली सवि संगे रे, चरिताली सुचंगे रे, हवे जो जो रंगें नृप वनिता वरे रे ॥४॥ दलथंजण राजा रे, व जडावे वाजा रे॥ताजा अतिसाजा मेरा बांधिया रे, चोरी रची सारी रे॥मुहरत निरधारी रे, उत्सव कस्या नारी सुरनि सुगंधिया रे ॥५॥ कन्या सिणगारी रे,प हिस्या जरतारी रे॥मोतिमें समारी रतनवतीजणी रे, सरणार वाजे रे ॥ नटनाटिक साजे रे, गुंजाला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) वाजे गाजे मृदंग विधे घणा रे ॥६॥ वनिता मली वादे रे, कौतुकने उमादे रे॥ मानवती शुनसादें गाए सोहलारे, वमारण करीथाणे रे॥कोइनेदन जाणे रे, सहु कोश्वखाणे लोक नली जली रे ॥७॥ मानतुंगम हीशे रे, सजी जान विशेषे रे, निसाणे नरेशे पर ति ओरियें रे॥ रतनवर्ती करी संगे रे, जोरावर जंगे रे,आवी बिहु रंगे बेगं चोरिये रे ॥ ७॥ मानवती थश् माजी रे, करे हलफल काजी रे, सहुकोने मन बाकी वमारण तो खरी रे ॥ वरकन्या वरिया रे, चिहुँ फेरा फरिया रे, आनंदे नरिया नृपे नारी वरी रे ॥ ए ॥ मानतुंग महीधरियोरे, पुरुषं परवरियो रे॥ श्रावीने उतरियो डेरे मूलगे रे ॥ रयणी थई जाणी रे, पुत्रीजणी राणी रे, सुणो रे सयाणी मूके उमगें रे॥ १०॥ मानवती तव बोली रे, कपटालय खोली रे, राणी अहो नोली सुण मुक वीनती रे ॥ कुल देवी अमारी रे, अतिहि अटारी रे, विलससे नही नारी अम नृप तेवती रे॥११॥ उडोणी जाई रे, कुलदेवी मनाई रे, रतनवती चित लाई विलससे तदा रे ॥ सवि नेदहुँ लडं बुं रे, ते माटे कहुं बुं रे, नृप नेली रहुँ डं तिणे जाणुं सदा रे ॥ १५ ॥ खोटुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (नए) न कहुंडं रे, मत मानजो उखें रे, कहो तो जश् पूढे मारा रायने रे ॥ बत्रीसमी ढालें रे, कहि मंगल मालें रे, मोहनें सुविशालें कंठे गाश्ने रे ॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ ॥राणी मानवतीजणी, कहे जई पूडो राय ॥ जेहवी दीये आगना, तेहवी सूंपो श्राय ॥१॥मान वती ऊठी तदा, नूषण सजी विशाल ॥ लेई चाली हाथमें, नरि कंसारें थाल ॥२॥ मानवती रमऊम करती, श्रावीप्रीतम पास ॥ पीउडे तो नवि उलखी, अहो अहो दंन विलास ॥३॥ प्रणिपति करी उनी रही, पागल मूकी थाल|मानतुंग मधुरे खरें, बोल्यो तास निहाल ॥४॥ कहे कुण तूं कामिनी, किम आवी जररात ॥ नरि कंसारे थालिका, शी ने कहो मुऊ वात ॥५॥ ॥ ढाल तेंत्रीशमी॥ नांहनो नाहलो रे ॥ ए देशी ॥ ___ बोली मानवती सती रे, करी बूंघटपट लाज ॥ राजन सांजलो रे ॥ गुरुणी बुं रत्नवती तणी रे, मान वती मुऊ नाम ॥ राण ॥१॥ कंसार जे लावी अर्बु रे, तेदनो निसुणो विवेक ॥ रा०॥ अम घर एहवी रीत रे, अतिहि अपूरव एक ॥रा॥२॥जे अम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) नृपनी पुत्रिका रे, परणे जो कोई वसुधार ॥ रा॥ ते तो एगे माहरो रे, चाखे एह कंसार ॥रा॥३॥ चाखो एह कंसारने रे, होसे कोम कल्याण ॥रा॥ नही तो वरकन्या नणी रे, उपजे कोई विन्नाण ॥ रा० ॥४॥ जो सुख वांडो राजनो रे, तो जिमो फु हुँ एह ॥ रा ॥ नामायें जोलव्यो नर्तुने रे, नारी कपटनो गेह ॥ रा०॥५॥ नृपें जाएयुं साचुं कां रे, ए तो सुंदर नार ॥ रा॥ रीत हसे श्हां एहवी रे, तो सुं करीयें पचार ॥ रा ॥६॥ कहे नृप एपीने दी रे, जिम चालुं कंसार ॥ राण ॥ तेणें दीधुं फुवं करी रे, न कस्यो कोश् विचार ॥ रा॥ ७॥ नृपें आरोग्यो कोलियो रे, करिने तेह कंसार ॥रा॥ नृप सुं करे केहने कहे रे, धूते निजघर नार ॥॥ श्रा चमन जलथी कर। रे, बोल्यो नूप तेवार ॥ रा॥ वलि जे विध होय ते कहो रे, करिये सयल आचार॥ रा॥ ए ॥ पण मुक किम परणी त्रिया रे ॥ हजि य न वी आवास ॥ रा० ॥ किम तेमी नाव्यां तुम्हे रे, कारण स्यो डे तास ॥ रा०॥१०॥ मानव ती बोली तदा रे, सुणो उजेणीधीस ॥ रा॥ मलशे षटमासें पड़े रे, सा तुम विश्वावीस ॥ रा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए१ ) ॥ ११ ॥ गुरुगोत्रज पूज्या नथी रे, पुजतां होए ब मास ॥ रा० ॥ तुमने चालवा नही दीये रे, राखसे एह आवास ॥ रा० ॥ १२ ॥ मत ए कोईने जणावजो रे, समजी रहेजो चित्त ॥रा० ॥ वातकी करवा तुम थकी रे, इहां हुं यावीश नित्त ॥ रा० ॥ १३ ॥ धूती ने एम नूपने रे, यावी राणी पास ॥ रा० ॥ कहे नृप कोई व्रत मां मियो रे, रहेशे इहां बमास ॥रा० ॥ १४ ॥ त्यार पढे तुम पुत्री नेरे, विलसे जइ उजेए ॥ रा० ॥ कोई कहेता रखे रे, ढांनी वात बे तेण ॥ राव ॥ १५ ॥ षट मासनो श्यो आसरो रे, दिन जातां सी वार ॥रा०॥राणी यें सह जाएयुं खरुं रे, जूठ न बोले ए नार ॥ रा० ॥ १६ ॥ बाजीगरीना गोटकारे, केह वा रमाडे बे बाल ॥ रा० ॥ मोहन विजयें वरणवी रे, रूमी तेत्रीसमी ढाल || रा० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मानवती बीजी रयण, यवी प्रीतमपास ॥ नृ पत्रिय गुरुणी जाणीने, आदर दीधो तास ॥ १ ॥ जोवे वक्रकटाक्ष जरी, सा टाली अंदोह ॥ श्राकृति देखी तेहनी, नृप पाम्यो व्यामोह ॥ २ ॥ मूगत राजा थयो, व्याप्यो विषय विकार ॥ तिम तिमसा दाखे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घणा, हाव नावअधिकार ॥३॥ नृपें लटपट मांगी घणी, विलसे वातें नार ॥ पण नवि जाणे राजवी, जे ईणे कीध प्रकार ॥४॥ ॥ ढाल चोत्रीशमी॥ ___ मेंदीरंग लागो ॥ए देशी ॥ नृप कहे मानवतीन णी रे लाल ॥ हुँ रंज्यो तुज देख ॥ विषयी वसुधाता ॥ तुं पण करुणा नेहथी रे लाल ॥ हसि करी साह मुं पेख ॥ वि० ॥१॥ वाणी सुणी श्म रायनी रे लाल ॥ मानवती कहे ताम॥विणारे मालवपति मु ऊने रे लाल ॥ वचन कहो कां श्राम ॥ वि॥२॥ रतनवती परणी त्रिया रे लाल ॥ परणे न पोहोती यास ॥ वि० ॥ जे मुऊने प्रार्थो अब रे लाल ॥ धि गधिग मदन विलास ॥ वि०॥३॥वाहर जोईये जि हां थकी रे लाल ॥तिहाथी क्युं श्रावे धाम॥वि०॥मू की द्यो नोलामणी रे लाल ॥ रहेवा द्यो ए लाम ॥ वि०॥४॥ परणी घरणी जे हुवे रे लाल ॥ तेहने कहियें एम ॥ वि०॥ परनारीने एहवी ॥ लाल ॥ वा तो कहियें केम ॥ वि०॥५॥ श्म निबी रायने रे लाल ॥ कहीने कमुवां वेण ॥ वि० ॥ तो पण मान वती थकी रे लाल ॥ चोरे नही नृप नेण ॥ वि० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ॥ ६ ॥ कामातुर हुई घणुं रे लाल ॥ फिरफिर चाहे संग ॥ वि० ॥ मानवती तव कंतने रे लाल ॥ जाषे धरी उबरंग ॥ वि० ॥ ७ ॥ श्रहो हो एवडुं याक ला रे लाल || किम हुवो बो महाराज ॥ वि० ॥ हुं हुं दासी राजली रे लाल || जाति नथी कांई जाज ॥ वि० ॥ ८ ॥ वचन सुणी वनितातणां रे लाल ॥ हरष्यो तव महीपाल ॥ वि० ॥ कामविषय सुख जोग व्यां रे लाल ॥ थई जनुक उजमाल ॥ वि० ॥ ए॥ इमानुदिन सुख जोगवे रे लाल ॥ मानवतीथी राय ॥ वि० ॥ गर्भ धरयो तव अनुक्रमें रे लाल ॥ पूरवपुण्य पसाय ॥ ० ॥ १० ॥ एक दिन मानवती कहे रे लाल ॥ सांजल प्राणाधार ॥ वि० ॥ गर्न धरयो में ताह रो रे लाल ॥ स्यो तस करवो उपाय | वि० ॥ ११ ॥ पुत्रजनम यासे जिसे रे लाल ॥ त्यारें तुमे महाराय ॥ वि ० ॥ उझेणीजणी चालसो रे लाल || मुकने अत्र विहाय ॥ वि० ॥ १२ ॥ अंगजने के परे रे लाल ॥ पालीस हुं कहो नाद ॥ वि० ॥ केम सहि स हुं हो निसे रे लाल || लोकमां हि अपवाद ॥वि० ॥ १३ ॥ थानारो तो थयो हवे रे लाल ॥ सोच कस्यां सुं होय ॥ वि० ॥ तेमाटे मुकने तुमे रे लाल ॥ दियो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए४) सहिनाणी कोय ॥ वि० ॥ १४ ॥ जिम तुमे अंगज उलखो रे लाल ॥ आवे तुमचे पास ॥ वि०॥ ते कार ण मांगु अबु रे लाल ॥सहिनाणी सुविलास ॥ वि०॥ ॥ १५ ॥ वचन सुणी वनितातणां रे लाल ॥ दिये सहि नाणी सार ॥ वि० ॥ निजनामांकित मुण्डी रे लाल ॥ वलि मुगताफलहार ॥ वि० ॥ १६ ॥ बेहु सहिनाणी लेश्ने रे लाल ॥ सा हरषी मनमांहि ॥ वि० ॥ ढाल कही चोत्रीसमी रे लाल ॥मोहन विज यें उगंहि ॥ वि० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ हार उदार ने मुडमी, कबज करीने ताम ॥ ऊपी मानवती तदा, पियुने करी प्रणाम ॥१॥ कहो तो जई आवं प्रजु, रतनवतीने पास ॥ हमणा पानी फरी तुरत, आवीस एवं आवास ॥२॥ नृपति नेद जाणे नही, दीधी शीख तिवार ॥ मानवती पण पय नमी, श्रावी मंदिरबार ॥३॥ तारानर रयणी समे, आवी बागमकार॥ वेष उतारी वीणमे,संगोप्यो तिणि वार ॥४॥ योगणवेश फरी सज्यो, चिंते चित्तमका र॥बोल सुबोल थयो माहरो, धूत्यो प्राणाधार ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) ॥ ढाल पांत्रीशमी ॥ मुरलीनी देशी ॥ ॥ तथा ॥ नाह अबोला लेई रह्या ॥ए देशी पण ॥ ॥ हवे पीज पहेली पाधरी, जाऊं नगरी उोण ॥ यहां रह्ये श्यो फायदो, पोहोचुं तात पएण नारी धूता रीकहियें, पीयुने कीधो पाधरो नेत्र॥ त्रियाथी अलगा रहियें ॥१॥ ए टेक ॥ मातपिता तिहां माहरां जोतां होसे वाट ॥ ऊंखर फुरी थयां हसे, माहरो करिय उचाट ॥ ना ॥२॥ काम सरे न विलंबिये, माह्यां एहिज काम ॥ मानवती वीणा ले ॥रयणि ये चाली ताम ॥ ना॥३॥ एकाकी निर्नय थकी, कग्नि करीने मन्न ॥श्म अनुक्रमें दिन केटले, श्रावी तेणे वन्न ॥ ना ॥ ४ ॥ तेणे सरोवरे ऊनी रही, जिहां पीयु (कियो) वृषन स्वरुप ॥ ना० ॥ ते पण दीठी जायगा ॥ वलि श्रागल चाली चूंप ॥ ना ॥ ॥ ५ ॥ वोली विषमी वाटमी, श्रावी मालवदेश ॥ ना ॥ दिन केते निजनयरमां, आवी कीध प्रवेश ॥ ना ॥ ६॥ मातपिताने जई मली, कोई न जाणे तेम ॥ ना ॥ पाम्या हर्ष सहु रीजता, हेज न होवे केम ॥ ना० ॥७॥ वहन जे विड्या हुवे, तस फरी मेलो होय ॥ ना० ॥ ते सुख जाणे केवली, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) के जाणे दिल दोय ॥ ना० ॥ ॥ मातपिता आग ल कही, पीयु धूत्यो ते वात ॥ ना० ॥ सांजलीने सहु को हस्या, पुत्रीनो अवदात ॥ ना० ॥ ए॥ वेश योगणनोपरहरी, श्रादस्योमूलगो वेश॥ ना०॥अन्ना दिक आरोगियां, हर्ष धरी सुविशेष ॥ ना० ॥१०॥ रातें सुरंगे होश्ने, गश् एकथंने श्रावास॥ना॥पाही रायतने जगामिया, वातो करे सुविलास ॥ ना ॥ ॥ ११॥ यामिक कहे दिन एटला, जगव्या नहि अम केम ॥ ना ॥ सुं कांश पोढी रह्यां हतां, तव सा बोली एम ॥ ना० ॥ १२ ॥ मौनव्रत श्रादस्यो हतो ॥ वीरा एता दीह ॥ ना० ॥ ते व्रत आज पूरो थयो, तारे खोली जीह ॥ ना ॥ १३ ॥ श्म करतां पगडो थयो, साचव्यो ग्रही आचार॥ना० ॥ आंबिल तप मांड्यो फरी, पाले समकितसार ॥ ना० ॥ १४ ॥ निज वालमने धूततां, जे कां लागो पाप ॥ ना॥ ॥ १५ ॥ मन वच काया शुद्धश्री, आलोचे ते श्राप प्रतिक्रमण बिडं टंकनां, करे अहनिश मन शुद्ध ॥ ॥ ना ॥ जे होवे नवि प्राणियो, तेहने हुवे ए बुङ ॥ ना ॥ १६ ॥ जिनधर्मना महिमाथकी, पाम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) मंगलमाल ॥ ना० ॥ मोहन विजयें वर्णवी, ए पांत्री शमी ढाल ॥ ना० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥मानतुंग हवे गुरुणिनी, जोवे अहनिश वाट ॥ चिंते किम नथी आवती, गर्न धस्या पनि माट ॥१॥ नृपतो तिहां रह्यो फुलतो, ए तो आवी गेह ॥ हवे सहु को सांजलो, निपट धरीने नेह ॥२॥ मानवती यामिकजणी, कहे निसुणो एक वात॥अंतःपुरमा जई कहो, मुझ गर्जतणो अवदात ॥३॥ यामिक चम क्या सांजली, गर्न धस्यो एणे केम ॥ पुरुषप्रवेश नही हां, तो कां बोले एम ॥४॥ जिम मबी ज लथी थक्ष, गिरथी जिम हरिनार ॥ तिम सुं एहने पण गरज, थयो हसे निरधार ॥ ५॥ पोहोरायत दोड्या थका, श्राव्या पुर दरबार ॥ नृप पटराणी आ गले, कह्यो गर्न अधिकार ॥ ६ ॥ ताली देश सहुको हसी, निसुणी कौतुक एह ॥ पिड विण गर्न ए किम धस्यो, रहि एकथंने गेह ॥७॥ ॥ ढाल बत्रीशमी ॥ बिंदलीनी देशी ॥ ॥ सोले नरपति नारी, तेणे मलीने बुझि विचारी हो ॥ धणधणनी वेषी ॥ पियुने पत्र लिखीजे, एणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) कामे ढील न कीजे हो ॥ ध०॥१॥ कागल लिखवा सारु, पटराणी बेठी ते वारु हो ॥ ध॥ कुशल देम परिपाटी, लिखि करीने लपि करणाटी हो ॥ध ॥ ॥२॥ अपरं समाचार एक, तुमे प्रिजो पीउ सु विवेक होगधणातुमे दक्षिण देशे मोह्या,रही रतनवती संगृसोह्या हो ॥ ध०॥३॥ पण घरनी खबर नथी लेता, कोश् साथे शुद्ध नथी केता हो ॥ ध ॥ ते वारु नथी करता, परदेशें रहो बो फिरता हो ॥ध०॥ ॥४॥ वहेला वलजो कंता, रखे रहो तिहां थई निचिंता हो॥ध॥ मानवती तुम त्रीय, ते तो आपन स सत्वा हुई हो॥ध॥५॥वांचजो तेहनी वधाइ, खोटुं मत मानजो कांहो॥ध०॥ यदी अमने खबर पठाइ, अमे वेंची पान मिगई हो॥ध०॥६॥जेहनी होए अतिही पुण्याइ, तस घर हुए एहवी बाई हो ॥ध०॥ पियुविण पुत्र जे श्रावे, एहवी नारी कुण पावे हो ॥ ॥ध ॥ ७॥ तुम घर ए त्रिय राजे, करो पटराणी तो बाजे हो ॥ध॥ देवी होये जेहवी, पातरी तस पोहोचे तेहवी हो ॥ध ॥ ७ ॥ तमे तिहां मगन बो हसवे, प्रेमदा श्हां बालिक प्रसवे हो ॥धा तो घरे शाने आवो, जव बेह लान कमावो हो॥ध०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) ॥ ए.॥ सीमंत उपर वहेला, श्रावजो मत थाजो गहेला हो ॥ध०॥ लेख लिखीने सीधो, कर प्रेदने वाली दीधो हो ॥ ध० ॥१०॥ पत्र ए नृप कर देजे, मुख वचनें प्रणिपति कहेजे हो ॥ध ॥ चाल्यो ते कागल लेश, हरषे हवे नारी सवेश हो॥ध ॥११॥ माहोमांहे करे वातो, सहु बेठी दिवस ने रातो हो ॥ध॥ आपण जोतां ए हिलसे, पियु मानवतीने मल से हो ॥ध ॥ १५ ॥पणापण वमवखती, थर आप णा मननी रुखती हो ॥ध ॥ कागल वांचसे प्यारो, तव रहेशे एहथी न्यारो हो ॥ धम् ॥ १३ ॥ विरु सोक्य सगाई, जोती रहे बिछ सदाइ हो ॥ध०॥ सोक्य सुलीथी लुमी, सोक्य खटके नाली जमी हो ॥ध ॥ १४॥ ते नरने उख नारी, होए जस मंदिर बे नारी हो ॥ध ॥ दंत कलहे दिन जाए, एक एकथी वढवा धाए हो ॥ध ॥ १५ ॥ शुंडो बोलेने विखोडे, सामो सामा कटका मोडे हो ॥ ध० ॥ नारी कहे दीन होश्ने, प्रनु शोक्य म देजो कोश्ने हो ॥ध॥ ॥ १६ ॥ नामे बहिन कहिजे, पण वेरण थश्ने बिजे हो ॥ ध० ॥ ढाल मोहनें कही हरषी, षटत्रिशमी साकर सरिखी हो ॥ ध० ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) ॥ दोहा॥ ॥ पोहोतो प्रेष्य अनुक्रमे, मानतुंग नृपपास ॥ करी प्रणाम कागल तुरत, दीधो धरि उदास ॥१॥ वाच्यो कागल खोलिने, प्रियो सवि वरतंत ॥ मानव तीकेरी कथा, वांचत चमक्यो चित्त ॥५॥ युवती यें ए शी लिखी, मानवतीनी वात ॥ में तो मानवती घरे, यंत्र जड्या ने सात ॥३॥ एतो कौतुक वातमी, ए किम मानी जाय ॥ किणहिक शोकें वेधथी, होसे लिख्यो बनाय ॥४॥ जिहां कीमी नवि संचरे, जिहां नही पवन प्रगटन ॥ तेहवे गेहे रहे थके, गोरी किम धरे गर्न ॥५॥ एहवे वलि बीजो तिमज, कागल श्राव्यो जत्त॥मानवतीनी वात तव, चोकस बेठी चित्त ॥६॥ ॥ ढाल सामंत्रीशमी ॥ ॥ दक्षिण दोहिलो हो राज, दक्षिण ॥ दक्षिण दोहिलो रे, बुजापाणी लागणो ॥ ए देशी ॥ ॥ नृपति विचारे हो लाल, ए सवि साचुं राज ॥ कागल कूडो रे राणी मांने नालिखे ॥ १॥ में तो ए नारी हो लाल, असती न जाणी राज ॥ खीच मी वखाणी रे ए तो लागी दांतडे ॥२॥ धिग धिग एहने हो लाल, एह सुं कीg राज ॥ कीg एणे रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) लोकमांहे लजामणुं ॥३॥ फिट कुलहीणी हो लाल, लाज न आवी राज ॥ ते नवि जाएयु रे लुमो गनो नां रहे ॥४॥ वली नृप जाणे हो लाल, वांक न एह नो राज ॥ वांक ए माहारो रे नारी मूकी एकली ॥५॥ यौवन आवे हो लाल, विरह जगावे राज ॥ रहे केम नारी रे जोहेलें एहवें एकली॥६॥ हुं पण यहांथी हो लाल, सीपरे चालुं राज ॥ दजिय न परणे रे हुया महिना षट थया ॥ ७॥ गोत्रज पूज्या हो लाल, विण षटमासें राज ॥ दक्षिण राजा रे मुने न दिये सीखमी ॥ ॥ सी परें कीजें हो लाल, नृप न दे जावा राज ॥ मंदिरे एहवा रे नारीकेरा सूलडा ॥ ए॥ मुखे करी ग्रासी हो लाल, अहिये बुबुंदरी राज ॥ तेहने न्यायें रे राजा सोचे सोचना ॥ १० ॥ कागल पालो हो लाल, नृपें लखि दीधो राज ॥ चाट्यो सीधो रे बेई प्रेष्य उतावलो ॥ ११॥ अवंती आवी हो लाल, राणीने कागल राज ॥ आगल दीधो रे जश्ने नाखी वातमी ॥ १२ ॥ राणीचं रंजी हो लाल, कागल वांची राज ॥ पिउडो वहेलो रे हवे घरे श्रावसे ॥ १३ ॥ सोकडली ने साही हो लाल, पिन मो बांधसे राज ॥ कूटसे गाढी रे घोमाकेरे चाबखे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) ॥ १४ ॥ आपणे हससुं हो लाल, देई देई ताली राज ॥ श्म करे नारी रे खुणे बेठी वातडी ॥ १५ ॥ एहवे महिना हो लाल, षट थया जाण। राज॥ मान तुंग राजा रे दक्षिणरायने वीनवे॥१६॥ हवे तो गोत्र ज हो लाल, रह्या हसो पूजी राज ॥ ते माटे आपो रे हवे मुने सीखमी ॥ १७ ॥ ससरो नाखे हो लाल, गोत्रज केही राज ॥ पूजवू डे केहने रे ए तो आज में सांजदयुं ॥ १७ ॥ साहमुं तमारे हो लाल, जईने उोणी राज ॥ पूजवी ने गोत्रज रेबठे मासे साहि बा ॥ १५ ॥ अमे तो सुं जाणुं हो लाल, तुम घर वातो राज ॥ राउली वमारणरे आवी मांने कही गई ॥२०॥ ढील तो अमारी हो लाल, कोई नथी जाणो राज ॥ ढील तुमारी रे हूंती एता दीहनी ॥२१॥ मानतुंग राजा हो लाल, ससराने जंपे राज ॥ गोत्रज को रे अमारे नयी पूजवी ॥ २२॥ गुरणी तुमारी हो लाल, परण्या तिणे दिन राज ॥ एवं खवा मी रे मुने एहवं कहि ग॥ २३ ॥महीने हो लाल, घरणी मिलसे राज ॥ ससरो हांथी रे थाने जावा नही दीए ॥ २४ ॥ तेहना कह्याथी हो लाल, श्हां अमें रहिया राज ॥ माहरे वमारण रे संगे आ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) णीको नथी ॥२५॥ दलथंजण राजा हो लाल, जमा ईने जंपे राज॥गुरुणी अमारी रे एहवी को डे नही॥ २६ ॥ तमने अमने हो लाल, को ग धूती राज ॥ढाल सामंत्रीसमी रेसारी जाखी मोहनें॥२॥ ॥दोहा॥ __॥ सना सह खमखम हसी, बिहु नृपनी सुणि वात ॥ सढुको कहे कोश् धूतणी, धूती गश् करि घात ॥१॥ मानतुंग राजा हवे, मागी शीख तिवार ॥ दलथंजण निज पुत्रिने, संप्रेडे सुविचार ॥२॥ दीधो बहुलो दायजो, हय गय रथ धन कोमी ॥ पुत्रीय निज मातथी, करी शीख कर जोमी ॥३॥ रतनवती उहोणपति, चाल्यो लेई शीख ॥ बंदी जन कहे जोग ए, रहेजो कोमी वरीष ॥४॥ दलथंजण नृप पुत्रीने, संप्रेडी वलियांद ॥ मानतुंग नृपनारि ले, मालव देस खमियांह ॥५॥ जव ते वामी आगले, नीस री नूपत ॥ तदा सुरंगी योगणी, चढी नृपतिने चित्त ॥६॥ योगण जोई बागमां, नरपति आपोआप ॥ पण क्यांही दीवी नही, तव करे नृप विलाप ॥७॥ ॥ ढाल अडत्रीशमी ॥ ॥चांदलिया संदेसो रे कहे जे मारा कंतने रे ॥ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) देशी ॥ किहां रे गुणवंती मारी योगणी रे, गई मुफ ने इहां बोम रे ॥ कोई उपगारी वालो सांश्नो रे, मुझने मेलवे दोमरे ॥ किहां ॥१॥नेहमलोकरीने बेह देई गई रे, ए मुख केम खमाय रे ॥वाहलानो विडोहो अधदणमात्रनो रे, धीरपणे न सहाय रे॥ कि० ॥२॥ बानी पीने रही होय जिहां रे, तो दे दरिसण आय रे ॥ वीणाना फणकारा तारा सांजरे रे, तुक विरहो न सहाय रे ॥ कि० ॥३॥णे वाट डिये तुऊ थकी वातमी रे, करतो हुँ आव्यो एम रे॥ तिणहीज वाटमिये तुऊ विण चालता रे, मुझने सांग लसे केमरे॥ कि ॥॥ तारी तो हुँ करतो अहनिश चा करी रे, लोपतो नही तुफ कार रे ॥ हाथनी हाथेली परे राखतो रे, उहवतो नहि कोई वार रे ॥ कि० ॥ ॥५॥ तो किम एहवं तुजने ऊकट्युं रे, जे गई देई बेह रे॥ उमी तुं मननी मिलति गश्नही रे, प्रीब्यो ताहरो नेह रे ॥ कि० ॥६॥वाडीमां वसुधाता पूछे रुखने रे, सामिणि दीठी केण रे ॥ वाटलमी वतावो जिहां ते गई हुवे रे, श्म कहे नृप उजेण रे ॥ किन ॥७॥ज्यारेते मोले पवनथी रुखमा रे, त्यारे, जाणे नूपाल रे, ॥ कहे जे शिरधुणी अमें दीठी नही रे, अ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५) हो हो विरह जंजाल रे ॥ कि० ॥ ८ ॥ केकीने पू बे तिमहिज नूघणी रे, किहां किहां बोले वाण रे ॥ राजा तव जाणे एक रीसथी रे, किहां बे योग इ रे ॥ कि० ॥ ॥ वामी मांडे फिरतो राजा वि योगियो रे, सुजट करे अरदास रे ॥ खामी शी चिंता करो एवडी रे, गांथी न गयो बे ग्रास रे ॥कि०॥१०॥ योगणीयें जो त्रोमी तुमश्री प्रीतमी रे, तो जावा यो तास रे ॥ पायमी बहोतेरी मिलसे यायने रे, सिर जो बो कांइ एम खास रे ॥ ११ ॥ यावी केश मिल से एवी तुमने रे, म करो खोटो विखास रे ॥ विलप्यां इहां तुमने यावी नही मिले रे, चालो ज्युं पोहोचो श्रा वास रे ॥ कि० ॥ १२ ॥ योगणनो स्वामी वांक स्यो काढियें रे, तुमने पण लागा षटमास रे ॥ पुरमाहें प खरिने शुद्ध करी नही रे, मलवो इबो बो हवे तास रे ॥ कि० ॥ १३ ॥ यादरना मूख्या योगी साहिबा रे, वि दर रहे केम रे ॥ सुजदें इम दीधी नृपने धा रणारे, चाल्या आागल तेम रे ॥ कि० ॥ १४ ॥ द ण क्षणमां संजारे योगणने सदा रे, मानतुंग महीपा ल रे ॥ जाखी ए मोहन विजयें हेजयी रे, ए अडत्री समी ढाल रे ॥ कि० ॥ १५ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) ॥ दोहा ॥ ॥ एम अनुक्रमे चालतां, पाम्या कानन तेह || आव याद नरेशने, छापर परणी जेह ॥ १ ॥ चरणोदक पीधुं जिहां, तेपि दीठी नूम ॥ सामिए परने विरह, अवनीपति रह्यो घूम ॥ २ ॥ एहवे श्राव्यो दोमतो, दलथंजणनो दूत ॥ लांबी जंघा धर पीनो, याराधर अवधूत ॥ ३ ॥ मानतुंग नृपने कहे, तेह दूत तिथिवार || मुंगीपट्टन सांमुहा, पाठा फेरो तुषार ॥ ४ ॥ नृप कहे दूतजणी इस्युं, पाठा वाले केम ॥ चोरीने आव्या नथी, कांइ ससरानुं हेम ॥ उलंघी धी धरा, वोल्यो विषमो घाट | कार ए कहो तो इहांथ की, पाठी लीजे वाट ॥ ६ ॥ ॥ ढाल जंगलचालीशमी ॥ * ॥ उदयापुर मांवो रे, गढ बुंदीनी जांन महा राजा ॥ केसरीया वर रूको लागे हो राज ॥ ए देशी ॥ ॥ दूत कहे कर जो मिने रे, कारण सु कहुं देव ॥ महाराजा ॥ खेद बुरो जगमां अबे हो लाल ॥ चंदेरी नगरी धणी रे, जितशत्रु नामे देव || मा० ॥ खे० ॥ ॥ १ ॥ तेहने रतनवती जणी रे, विवाहनो कीधो था प || मा० ॥ पिण तेहने देवा ती रे पानी न हूं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ती बाप ॥ मा ॥ खे॥२॥ रतनवतीयें एहवे रे, पण तुम ऊपर कीध ॥ मा ॥ तुमे पिण परण्या श्रावीने रे, सकल मनोरथ सिफ॥माणाखे ॥३॥रत नवतीलेश करी रे, चाल्या तमे जव साम ॥मा॥ तव जितशत्रु नूपति रे, मेली सेन्या ताम ॥ मा०॥ खेद ॥४॥ श्राव्यो मुंगीपट्टणे रे, करवा अतिहि विरोध ॥ मा० ॥ कहे बे द्यो ते कन्यका रे, नही तो करसुं युद्ध ॥ मा० ॥ खे॥५॥ दलथंनण राजा कने रे, तेहवो नथी कांश सेन ॥ मा० ॥ अणि बां धी सांहमी रे, नीडे जितशत्रुथी जेण ॥ मा०॥६॥ तेमाटे तुम तेडवा रे, मूक्यो बुं कारण तेण ॥ मा० ॥ मानतुंगें सवि सांजली रे, दतनी वात रसेण ॥मा॥ खे० ॥ ७॥ नृप मूळे वल घालिने रे, जुजबल तोली कृपाण ॥ मा० ॥ सुजटने कीधा साबता रे, पाठा खे ड्या केकाण ॥ मा० ॥ खे०॥ ॥ रतनवती रमणी जणी रे, वोलावी उजेण ॥ मा० ॥ नृप दक्षिण दिश सांमुहो रे, मूक्यो उपामी सेन ॥ मा० ॥ खे॥॥ मुंगीपट्टण श्राविया रे, वहेता केते दीस ॥ मा ॥ निसाणे मंका दीया रे हयवरनी हुश्हींस ॥ मा० ॥ खे० ॥ १०॥ दलथंजण राजा जणी रे, खबर थई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) तिणिवार ॥ मा० ॥ श्राव्योउजेणीनो धणी रे, कुम ख ले परिवार ॥ मा ॥ खे० ॥ ११॥ ससरो ज मा बिहुँ मल्या रे, थरक्यो जितशत्रुराय ॥ मा॥ चित चिंते ए बिडं थकी रे, जीती केम ज वाय ॥ मा० ॥ खे ॥ १२ ॥ जो जाउं चंदेरीयें रे, युद्ध कस्याविण दोन ॥ मा॥ तो सहुको हासी करे रे, अने वली नीडु केणे मोड ॥ मा० ॥ खे०॥ १३॥ लिखित हसे ते थायसे रे, दत्री वट डोडे कोय ॥ माण्॥ मोटाथी हास्या जला रे, साहमुं शोना होय॥ मा॥ खे॥ १४ ॥ सैन्य लेश हुं श्रावियो रे, किण मुख जाजं फेर ॥ मा० ॥ पालो फिरे लाजे पिता रे, हमणा करीश बेहु जेर ॥ मा० ॥ खे ॥ १५ ॥ का यर ह्या न बूटियें रे, वेरी वस पमियांह ॥ मा० ॥ योगमाया ने जो पाधरी रे, करसे तो बाहनी बांह ॥ मा०॥खे॥१६॥श्म करे बेगेवालोचना रे, जितशत्रु नूपाल ॥ मा०॥ मोहन विजयें कही जली रे, जंगण चालिशमी ढाल ॥ मा० ॥ खे० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दक्षिणपति उऊोणपति, ए बिहुँ एकण पास ॥ चंदेरीपति एकलो, नीर न कोई तास ॥ १॥ फोज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५) मिली तव चिहुं दिसे, कूदे चपल तुरंग ॥ पाखरियां तल पोजरे, वनना जेम कुरंग ॥ २ ॥ सज्या बत्री से श्रायुधें, जरदाला फुंकार ॥ तंग कसी ताजीतणा, उपर हुवा सवार ||३|| बिहुँ सेन्या अणियें थमी, पमी नगारे गेर ॥ जाणे गयणे गाजतो, ऊन हियो घन घोर ॥४॥ ॥ ढाल चालीशमी ॥ राग सिंधु कमखानी देशी ॥ ॥ सेन बिहुं उलटी मुही सामुही, गुणियऐं राग सिंधु बजाया ॥ रज चमी अंबरे अश्व पमतालथी, तरणीना किरणने तेण बाया ॥ १ ॥ वडा योध जूटा घटा मांहे बूटे पटा, लटपटा लाल शिरथी लपेटा ॥ अटपटा ऊटपटा ऊपट करता जटा, खटपटा ते हुवा नेट नेटा ॥ वमा० ॥ २ ॥ हांक करी ताकने माक मांहे ग्रहे, जाक खगवाहीयें राक फेरे ॥ वाणीने बाण रिप्राण उपर दीये, कसम से धसमसे घालि घेरे ॥ वडा० ॥ ३ ॥ धड हडे धरणिनें नालि पिए गरुगडे, anas योध रणमांहि फिरता ॥ खमखडे ढाल का रितुंड केई रमवडे, ऊरुपडे कुंतनी आगि खिरता ॥ वमा० ॥४॥ धमधमे धिंग तिहां कायरां कमकमे, चम चमे घाव व शोधारा ॥ सुनट संग्राममां विकट थ‍ चाफले, विकट जट थाट रोषें अटारा वडा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) ॥५॥ हारिया सुजट जितशत्रु नृप रायना, दंत तृण ले ऊना विचारा ॥ रण रह्यो हाथ उणपतिने तदा, जीतनां दीध मोटां नगारां ॥ वमा ॥६॥ नयरी चंदेरीपति प्राण ऊगारवा, लेइ निज सैन्य ना गे बिचारो॥मानतुंग महीपने सुसर कर जोडी कहे, आजनो दीह मुफ गृहे पधारो॥वमा॥७॥ स्वामी उजेणनो सुसरने आग्रहें, नयरमां ावी दीधा उतारा ॥ अशन आरोगिया खेद उतारिया, सांसता कीध मोटा तुखारा ॥ वमा ॥ ७॥ एहवे अवसरे गगन घन उनह्यो, चपल चपला घटा मांहि चमके॥ गममगडमाट करी गाजतो दह दिसें, घमम तरु गिरि धरा धमकी धमके ॥ वमा ॥ ए ॥ बांधी काल जिसि जिहां तिहां कोरणी,धोरणीबगतणी शुन्तजावें॥ नीर दाउरमिसें काज बकने चड्या मानीय विरही नर ने बिहावे ॥ वडा ॥ १० ॥ फटकरी प्रबटें विकट घट प्रवटा प्रगट, जलधारें प्रगटे पपोटा ॥ जाणीयें नीर नूषण धस्यो धरणिये, तेहनां जगमगे रत्न मोटां ॥ वडा ॥ ११॥ दणकमांहे करी नीरमयी मेदिनी, विहंग पण नवि उडे नीम बंमी ॥ पंथिके पंथकर खेदपण परहस्यो, मेह ऊड एहवी जोर मंमी ॥ वडा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१११) ॥१५॥ मानतुंगे तव मार्ग विषमा लखि, श्वशुरकुल मांही रहियो चोमासो ॥ ढाल चालीशमी मोहनें ए जणी, मानवतीनो सुणो हवे तमासो॥वमा ॥१३॥ ॥ दोहा ॥ ॥मानवती हरखें रहे, जिहां एकथंजो धाम ॥ गर्न स्थितिपूरण थई, प्रसव्यों बालक ताम ॥१॥ पोहोरायतें जर वीनव्यु, पट राणीने समाज ॥ मान वती एकथं नियें, बालक प्रसव्यो आज ॥२॥ एह हकीगत नूपने, लिखजो विस्तर रीत ॥ जिम नृप बालक जोश्ने, पामे मनमां प्रीत ॥३॥ राणीयो नेली मली, मूक्यो तिमहिज लेख ॥ केते दिवसें प्रे दकें नृपने दीधो देख ॥४॥ कागल वांची चित्तमां, नृप पाम्यो विश्लेष ॥ बालक केम प्रसव्यो झणे, को श्क कारण एष ॥५॥ सीख लही ससुराकने, का गल वांचत खेव ॥ नृप चिंते बालकजणी, ज जोड खयमेव ॥६॥बडे प्रयाणे चालतो, धरतो योगण चित्त ॥ पाम्यो उजायणी पुरी, मानतुंग महिपत्त ॥७॥ ॥ ढाल एकतालीशमी ॥ ॥ करेलणां घम दे रे ॥ए देशी॥ ॥ पुरमा पेसारो कस्यो, नूपें निज परिवार ॥ पुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५) कन्याये मोतियें, वधाव्यो वसुधार ॥ सुगुणिजन सां जलो रे ॥१॥ नृपने लोक पगें पगें, प्रणमे धरिने नेह ॥ण आनंबरें आवियो, मानतुंग निजगेह ॥ सु० ॥२॥ सुलट सवे कीधा विदा, सनमानी सो बाहि ॥ एकाकी नृप आवियो, निज अंतेउरमां हि ॥ सु० ॥३॥ रतनवती श्रादें प्रिया, पियुना प्र णमी पाय ॥ लाज करी ऊनी सहू, आसने बेडगे राय ॥ सु० ॥ ४ ॥ पूढे नृपप्रेमदा जणी, मानवती विरतंत ॥अंगज केम जायोणे,कहोमुकागल तंत ॥सु॥५॥ खमखमखम सहु को हसी, कंत नणी कहे एम ॥ स्वामी मानवती तणी, कूडी कथा हुए केम ॥ सु०॥६॥ ए गुणवंती गोरमी, तनुज रमाडे वि शाल ॥ अमथी तो पिउमा विना, नवि प्रसवाए बाल ॥सु ॥ ॥ नाग्यवंत पियुमा तुमे, जे ए पाम्या नार ॥ तो सुतनो स्यो आसरो, धन्य धन्य तुम अवतार ॥ सु ॥ ७॥ एहना पुत्रने आपजो, पाट तुमारो नाह॥ए तुमने अजुवालशे, राखजो एह वो चाह ॥ सु ॥॥ जुर्म मुख तुम पुत्रनो, जश् ए कथंने गेह ॥श्हां सुं श्राव्या पाधरा, चूक्या अव सर एह ॥ सु०॥ १० ॥ तुमथी मानवती सती, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९३) रीताशे महाराज ॥ तेमाटे जाई वहि, म करो अ मारी लाज ॥ सु०॥ ११॥ श्म सघली हासी करे, पियुनी वारंवार ॥ राजाएं निज मंत्रिने, वेडाव्यो तिणिवार ॥सु॥१२॥ कहे रे केम अंगज इणे,प्र सव्यो केही रीत ॥ सचिव कहे जाणुं नही, जे थ एह अनीत ॥ सु० ॥ १३ ॥ मुझने पण कह्यो राणि ये, नजरें निरख्यो नांहि ॥ साच फुग्नो पारिखो, चालो जोश्ये दणमांहि ॥ सु० ॥ १४ ॥ जो जो धर्म प्रनावथी, होसे मंगलमाल ॥ मोहनविजयें वरणवी, एकतालीशमी ढाल ॥ सु ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ऊठ्या अंतेउरथकी, मंत्री ने महाराज ॥ श्रा व्या एकथंने गृहे, बालक जोवा काज ॥१॥ सहि नाणी घरनी सकल, अचल धरापति दीठ ॥ तिम तिम हृदये नूपने, विस्मय अतिहि पश्च ॥२॥ जाणे नृप निजचित्तमां, सहिनाणी मुझ तेह॥प्रसव्यो केम बालक श्णे, दैवगति कोई एह ॥३॥ यंत्र उ घाड्यां घरतणा, पेगे नृप धसि मांहि ॥दीठी तनुज हुलरावती, मानवती सोबांहि ॥ ४ ॥ मानवतीयें कंतने,दीगे नयणे जाम ॥ सेजयकी ऊनी करी,लजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) करी रहि ताम ॥५॥ पियु बेठो पर्यंकपर, दातुं बालक रूप ॥ कोपें हग वांकी करी, जाखें त्रियने नूप ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बेतालीशमी ॥ मारगडामां जोजं जी ॥ वे प्यारो कान्ह ॥ ए देशी ॥ ॥ पियु पदमिनेि पूबे जी, बोलो मधुरी वाण ॥ हाथ लगामी मूबेजी ॥ बो० ॥ कहे साधुं इहां तुं बे जी ॥ बो० ॥ सुतनुं कारण सुं बे जी ॥ बो० ॥ हुं परदेश गयो हतो मुग्धे, किम प्रसव्यो तें बाल ॥ पियु० ॥ बो० ॥ १ ॥ पुरुष प्रवेश विशेषें जी ॥ बो० ॥ सुहणेपी नवि दिसे जी ॥ बो० ॥ गृह तल बांध्योशी से जी ॥ बो० ॥ किम धस्यो गर्न जगी शे जी ॥ बो० ॥ के इहां रहि कोई देव आराध्यो, पियु वि यो जे पुत्र ॥ पी० ॥ बो० ॥ २ ॥ जैनधर्मी कहवाइ जी ॥ बो० ॥ करणी जली कमाइ जी ॥ बो० ॥ कुलने लाज लगाइ जी ॥ बो० ॥ हुं धन्य जे तुऊ पाइ जी ॥ बो० ॥ मुऊने तें चरणें न लगाड्यो, बोली हती कि मुख ॥ पी० ॥ बो० ॥ ३ ॥ तात कवण बे एहनो जी ॥ बो० ॥ ए अंगज बे केहनो जी ॥ ॥ बो० ॥ सोंपो होवे जेहनो जी ॥ बो० ॥ गृहपण सेवो तेहनो जी ॥ बो० ॥ पूरो तमारो श्रमश्री न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) पडे, बो तुमे देवीसरूप ॥ पी० ॥ बो० ॥४॥ क्रोधे करी राय घास्यो जी ॥ बो॥ ऊंचे शब्द पुकास्यो जी ॥ बो० ॥ नृप कहे श्म अविचास्यो जी ॥ बो० ॥ तूं जीती हुँ हास्यो जी ॥ बो॥ फिट कुलहिणी निर्लज निगोमी, उत्नी सुं मुख आय पी॥ बो० ॥ ॥५॥हूं पण चूको पहेली जी ॥ बो ॥ जे योगण गई मेली जी ॥ बो० ॥ तस सोंपत करी चेली जी ॥ बो॥ होत तदा तुं सेली जी ॥ बो० ॥ पण यो गणना पेटमा उन्नी, होत तुं नारी निदान ॥ पी॥ बो० ॥ ६ ॥ बोली नाहगुं नारी जी ॥ बो ॥ श्म. कां कहो अविचारी जी ॥ बो० ॥ जाऊं तुम बलि हारी जी ॥ बो० ॥ म कहो वहतुं नारी जी ॥ बो॥ ए अंगज ने स्वामी तुमारो, मत आणो वि श्लेष ॥पी० ॥ बो० ॥ ७॥ हुँ बुं राउली दासी जी ॥ बो० ॥ बुं तुम तननी विलसी जी ॥ बो॥ तुम करुणा अन्यासी जी ॥ बो ॥ थयो सुत ए सुविलासी जी ॥ बोम् ॥ आपण किहां मिल्या हता स्वामी, जुलं उघामी नेण ॥ पी० ॥ बो॥ ॥॥ तुमे चूको कां कामी जी ॥ बो० ॥ हुँ किम चुकुं स्वामी जी ॥ बो० ॥ मुफमां नहि कांई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) खामी जी ॥ बो ॥ सहि जाणो गुणधामी जी॥ बो० ॥ कहो तो तुमारी दियुं सहिनाणी, तारे मानसो साच ॥ पी० ॥बो॥ए॥नाखे नूप जरामो जी ॥ बो ॥ त्रिय मत बोलो आमो जी ॥ बो॥ मुक सहिनाणी सरामो जी ॥ बो० ॥ होए तो कोई देखामो जी ॥ बो॥ तव तिणें हार नामांकितमु अडी, दीधी पिजमाने हाथ ॥ पी० ॥ बो॥ १० ॥ तव नृप विस्मय ग्रहियो जी ॥ बो॥ नीचो जोश्ने रहियो जी ॥ बो ॥ पालो फरी न कहीयो जी ॥ बो॥ कांईक नेद ते लहियो जी ॥ बो० ॥ सा कहे जीवन ऊंचो जूवो, लाजो कां महाराज ॥पी० ॥ बो ॥ १९॥ जुठ मुघमी सारी जी ॥बो॥ नरखो हार निहारी जी ॥ बो ॥ होवे सहि नाणी तमारी जी ॥ बो ॥ बोलो जाऊं हुँ वारी जी ॥ बो० ॥ नृप चिंते एंधाणी माहरी, इहां किम एहने पास ॥ पी० ॥ बो॥ १२ ॥ एहने मुखी न दीधी जी ॥ बो॥ तो एणे किहांथी लीधी जी ॥ बो ॥णे कोई बुद्धि कीधी जी ॥ बो ॥ रही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७ ) नयी दीसती सीधी जी ॥ बो० ॥ मोहन विजयें सुंदर भाषी, बेतालीसमी ढाल ॥ पी० ॥ बो० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मानतुंग कड़े नारीने, प्रिया जाषो निरधार ॥ तारे पासे किहां थकी, मुऊ मुंद्री ने हार ॥ १ ॥ तुक मुऊ मेलो सुहणे, पण न थयो एकवार ॥ तो सहि नाणी माहरी, किम पामी तूं नार ॥ २ ॥ ए तो कौ तुक बातमी, तें कीधी सुजगीश ॥ कहे साधुं मुफ लें, गुनह कस्यो बगशीस ॥ ३ ॥ तव सा मान वती सती, करी घुंघट पटलाज ॥ कर जोमी पिउने कहे, वात सुणो महाराज ॥ ४ ॥ ॥ ढाल तेंतालीशमी ॥ ॥ चंदनकी कटकी जली ॥ ए देशी ॥ ॥ जे योगण मली हत्ती, तुमने ए पुरमांद ॥ पिठमा हो राज, तस चरणे तुमें लागता, करीने तिहि उष्ठा ॥ पी० ॥ सुगुण सनेहा सुणो वातकी ॥ १ ॥ तुमने जे टुंबे मारती, पगपग देती गाल ॥ पी० ॥ ते योगण मत जाणजो, ते हुं हूंती मही पाल ॥ पी० ॥ सु० ॥ २ ॥ अने वलि दक्षिणपंथमां, श्राव्यं हतुं सर एक ॥ पी० ॥ खेचरी तिहां परण्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) तुमें, एकाकी तजी टेक ॥ पी० ॥ सु०॥३॥ चर णोदक पीधुं तुमें, थई फख्या वृषनसरूप ॥ पी०॥ ते पण खेचरी हुं हती, नूला बो तमे नूप ॥ पी०॥ ॥सु०॥४॥ रतनवतीने तुमे वली, परण्या थई नर तार ॥ पी० ॥ तस गुरुणिये तुमने, एगे खवास्यो कंसार ॥ पी० ॥ सु० ॥५॥ गुरुणियें तमने नोल व्या, राख्या मास मास ॥ पी० ॥ तिहां तुमें मां ड्यो तेहशु, विषयिक जोग विलास॥पी०॥०॥६॥ गुरुणियें गर्न तमारमो, धास्यो हतो सुविचार॥पी० ॥ तस सहिनाणी दीधी तुमें, ए मुजमी ए हार ॥ पी० ॥ सु० ॥७॥ ते पण गुरुणी हुं हती, बीजी न हूंती कोय ॥ पी०॥जे तुमे तिहां दीधी हती, ते सहीनाणी जोय ॥ पी० ॥ ॥ जो खोटें एहमां होवे, तो घालो माहरे गोद ॥ पी०॥ हुँ तेहीज तेहीज तमे, विसरी गया शुं विनोद ॥पी॥सु॥ ॥ए॥ पाख्या में माहरा बोलमा, सांजली खोलो कान ॥ पी० ॥ जो होवे होंस वली किसि, श्रा घो मा श्रा मेदान ॥ पी० ॥ सु०॥ १०॥ नारीने नवि बेमियें, आज पठी महाराज ॥ पी० ॥ जोवो में श्णे मंदिर रह्यां, केहवां कीधां ने काज ॥ पी० ॥ सु० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ॥ ११॥ए अंगज राउलो, खोले ली साम॥पी॥ हवे संदेह म आणजो, जे ए जुडी वाम ॥पी० सु०॥१२॥ हुँ ढुं पगनी मोजड़ी, तमे बो शिरना मोम ॥ पी० ॥ हुँ कंटाली बावली, तुमें डो सुरतरु डोम ॥पी० ॥ सु० ॥ १३ ॥ हुं बुं रात्री जेहवी, तुमें बो दीपक साफ ॥ पी० ॥ जे अविनय कीधो हुवे, ते करजो पीयु माफ ॥ पी० ॥ १४ ॥ एक वचनने आमले, तुमथी में खेडी जोर ॥ पी० ॥ चाहो ते मुझने करो, हुंडं राउली चोर ॥ पी० ॥ सु ॥ १५ ॥ तुमे तो जाण्यो ए कामनी, केम बेत रसे मोय ॥ पी० ॥ होतां तो होये प्रनु, मत कर जो अंदोय ॥ पी० ॥ १६ ॥ मानवतीनां बोलमां, सांनलिया नूपाल ॥ पी० ॥ मोहन विजयें ए कही, तेंतालीसमी ढाल ॥ पी० ॥ सु० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ कंतें निज कांतातणी, सुणी वात सुविचार ॥ मुखमें घाली अंगुली, धूणे शिर तेणिवार ॥१॥ महि पति चिंते चित्तमां,अहो अहो नारिचरित्त॥मुजने णे धूत्यो खरो, कग्नि करीने चित्त ॥२॥ हवे नवि डेडं एहने, घर सरखी नहि जात ॥ जो हवे डेडं एहने, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) तो वलि खेले घात ॥३॥जो जो बुद्धि सी केलवी, मुझने लगाव्यो पाय ॥ सुतपण सहेजें सांपड्यो, थ यो शहां धर्म सखाय ॥४॥ श्म चिंती ऊव्यो' नृप ति, श्राव्यो तव दरबार ॥ हयगयरथ सणगारिया, सुजटादिक तेणिवार ॥५॥ श्म आमंबर करी घणो, मूक्यो सचिव तिणे गेह ॥ तेमी श्रावो अंतेउरे, मानवती धरि नेह ॥६॥ हर्ष महोदव बहु कस्यो, राजायें तिणिवार ॥ विरह टल्या दंपति मित्या, हुई जयजयकार ॥७॥ ॥ ढाल चुमालीशमी । मोनांजी ॥ ए देशी ॥ ॥मानतुंग ने मानवतीने, रंगरली थर सारी॥ माहोमाह वातो मार्डी, कते कपट निवार। ॥१॥ अलगा रहो ने, हारे मुने शाने बोलावो ॥ अ॥ हारे सा मानवती श्म नाषे ॥ अ॥ ए टेक ॥ प हिला लाम समावी मुऊने, हवे का बोलावो वाहा लां ॥ एकथंना घरनां जे मुखमां, शाले ने थइ ना लां ॥ अ० ॥२॥जत माहेरी शोक्यो माहें, सी पियुमा तमे राखी ॥ काढी नाखी हूंति अलगी, जेम घृतमांथी माखी ॥१०॥३॥ हसी करी तव पीउ मो बोले, गुहीरे सादे गाढे ॥ हजी लगण तुं वांक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) अमारो, बेठी बेठी काढे ॥ अ॥४॥ एकवार तो मान मूकाव्यो, वलि कहो बो दावे ॥ कहे तो परगट पाए लागुं ॥ पण कां निपट कहावे ॥ अ॥५॥ मानवती तव पियुनें पाए, लागी हसीने ताम ॥ दो गंमुक सुरनी परें बेहु, विलसे सुख अनिराम ॥ ॥६॥ हसे रमे गाए करे क्रीडा, वन उपवन जई खेले ॥ एक एकनें नयणथी अलगां, को कोईनें न मेले ॥ ॥ ७॥ नित नित नौतन वेस बनावे, शोक्यो सवि श्रवटाये ॥ पण कोनुं बल नवि चाले, अणख करे सुं थाये ॥ अ० ॥॥ राजा मानव तीने नेहें, अहनिश रहे लपटाणो ॥ जिम पंकजनें फूलें लीनो, नमर रहें लोजाणो ॥ अ० ॥ ए॥ बाल कनुं पण नाम समप्युं, मदनन्रम सुखकारी ॥ अनु क्रमे सुतने नणवा मूक्यो, सिख्यो कला अतिसारी ॥अ० ॥१०॥ मानवती जिनमंदिर सुंदर, खरचे दाम सुनावे ॥ जिनजाषित समकित आराधे, नावें नावना नावे ॥ १० ॥ ११॥ श्म दंपती विषयावें रमतां, केई दिवस गमाया ॥ एहवे धर्मघोष गुरु फिरता, पुरने परिसर आया ॥०॥ १२ ॥ मानतुंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ने मानवती बेहु, पाम्या मंगलमाल ॥ मोहन विजयें रूमी नाखी, चोमालीसमी ढाल ॥ १० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पुरजनऋषिनें वांदवा, पोहोता वन्नमकार ॥ नूपें कारण पूलिं, तेह कहे सुविचार॥१॥स्वामी तुम वनमें सुनग, श्रीधर्मघोष ऋषिराय ॥ तस पदपंकज प्रणमवा, नागरिक तिहां जाय ॥२॥नृप पण मा नवती प्रमुख, लेई निज परिवार ॥ बहु आमंबरेवांद वा, आव्यो तिहां वसुधार ॥३॥ पंचालिगम साचवी प्रणम्या ऋषिने ताम ॥ राजा मानवती प्रनृति, बेग नचिते गम ॥४॥ धर्माशीष देश करी, प्रारंने उपदे श॥ नाविक तरे संसार जिम, ते उपदेश विशेष॥॥ ॥ ढाल पिस्तालीशमी॥ ॥लामुलोलेंके नहिरे मुने महि विलोवा दे॥एदेशी॥ ॥ नविजन धर्म करो रे, नविजन धर्म करो ॥ पापें कां पिंड जरो रे, ए हित शीख धरो रे ॥ जेम शिवनार वरो रे, नविजन धर्म करो रे॥धर्म करो॥ ए आंकणी ॥ कूडी माया कूमी बाया ॥ कूमा बांधव लोक, कूमी जेदवी वादल बाया ॥ अंते होए फोक रे, नविजन धर्म करो ॥१॥ पंखीनी परे मेलो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२३ ) मलि मतां केही वार ॥ तेम सगाइ खारथ केरी, मटतां स्यो विचार रे ॥ ज० ॥ २ ॥ तात कहे कोइ मात कहे को, दास कहे को खाम ॥ थोडे थोडे वे हेंची लीधो, यतमने सुख श्राम रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ प्रीत करो को वैर करो को, साच करो को कूम ॥ यातुं सहुने ते आखर, धूल जेली ए धूल रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ प्राणथी वालो जाणियें जेहने, राखीये नेह निग्रंथ ॥ ते पण पूब्वा न रहे ऊजो, जातां लांबे पंथ रे ॥ ज० ॥५॥ केइ गयाने केई जासे, केई जाव णहार ॥ एणी वाटे पुण्य विणा ॥ मानवीया अपार रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ नूपती पण रांकतणी पण, आखर एकज वाट, सार्थे यावे सुकृत कीधुं ॥ उतरतां जव घाट रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ काचा कुंतणो स्यो न सो, धननो केहो मद ॥ संध्याराग तणीपरें देखत, उवटी जाय सदरे ॥ ज० ॥ ८ ॥ दस दृष्टांतें मा नवकेरो, पाम्यो जनम कदाय ॥ ए अवतार करी फणी दुर्लन, चमराकरनें न्याय रे ॥ ज० ॥ ए ॥ दा न शीयल तप जाव प्रकाश्यो, चारे नेदें धर्म ॥ तेहने आदरे जे जवि प्राणी, तोडे सघलां कर्म रे ॥ ज० ॥ ॥ १० ॥ पापनें तुंबे तरसो, इहां नहि कोइ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) सखा ॥ पाप करोतो जोश ने करजो, ते अधिकार कहा रे ॥ ज०॥ ११॥ श्म उपदेश सुणीने राजा, प्रतिबोध पाम्यो तिवार॥कर जोडी शषिनें श्म जाखे, वीनतमी अवधार रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ मानवतीयें मुझनें स्वामी, पाय लगाड्यो केम ॥ पाल्या बोल शणे मुझसेंति, कारण कहो तस तेम रे॥ ज० ॥१३॥ माहरूं चूक्युं का न चाल्यो, ते शा माटे स्वामी ॥ ऐह कथानो आस यो मुझने, कहुं बुं हुं शिरनामी रे ॥ न० ॥१४॥ गुरु कहे तुम बिहुनो पूरवनव, सांजल कहुँ नूपाल ॥ मोदन विजयें नाषी रूडी, पिसतालीसमी ढाल रे ॥ न० ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ कहे गुरु जंबुद्धीपमां, देत्र नरत कहेवाय ॥ पृथ्वीनूषण पुर तिहां, तिलकसेन तिहां राय ॥१॥ धनदत्तसेठ वसे तिहां, तुमे अंगज तस बाल ॥ वम बंधव जिनदत्तजी, न्हानो ते जिनपाल ॥२॥ अनु क्रमें जिनपालने, सशुरु मिल्या सुजाण ॥ लीधो ते हना मुखथकी, मृषावाद पञ्चखाण ॥३॥ कूम न बोले वणजतां, हसतां न कहे कूड ॥ जाणे श्म जिनपाल मन, जिहां कूम तिहां धूम ॥४॥ सत्य वदे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) व्यापारमां, लाल उपावे नांहि ॥ बानो धर्म करे सदा, मगन रहे मन मांहि ॥५॥ वमबांधव जिन दत्त जई, बेगे नामा जोट ॥ अधिक लान देखे नहि, देखे साहमी खोट ॥ ६ ॥ तेमीने जिनपालने, पूजे जिनदत्त एम ॥ लान अधिक दूरे रह्यो, खोट गई पण केम ॥७॥ ॥ ढाल बैंतालीशमी ॥ ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ ॥जिनदत्त नाखे रे एम जिनपालने, रे रे मुरख जाई रे॥ व्यापार एहवो रे किहां तूं शीखियो, किहां सिख्यो एद कमाई रे ॥ जि०॥१॥ए व्यापारें रे पूरं पामवं, करसो केम करी वीर रे॥ के सुं लुब्ध्यो रे परदाराथकी, ईणे गुणे थासो फकीर रे ॥ जि०॥ ॥२॥ साचुं कहे तूं रे धन किहां वावगुं, तब बो त्यो जिनपाल रे॥अव्य कुगमे रे में नथी वावगुं, खोटी करे तूं चकचाल रे ॥ जि० ॥३॥ धननी तृला रे जो जे तुऊने, तो तुमे करो रोजगार रे॥क रसो सुं तुमे घर सोवनतणा, लेई जासो साथे ए जार रे ॥ जि०॥४॥ धन ते रहेसे रे व्यापीने धरा. संगे कोई नही आवे रे ॥ आवसे साथें रे अघ ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) अनर्थ ए, खूणे जेहवो कण वावे रे ॥ जि॥५॥ में तो दीगे रे सघलो कारमो, रे बांधव गुणवंत रे ॥ परने मुसवो रे मुजश्री नवी होए, कहुं बुं तमनें एकंत रे ॥ जि०॥६॥श्म बांधव जनपालनां बोलडा, जिनदत्त सांजली कोप्यो रे ॥ नाईने माटे रे कहिये कोईने, तामस अतिघणो व्याप्यो रे ॥ जि॥७॥ पांचसेरी जिनपालनणी तदा, पापी जिनदत्ते नांखी रे ॥ लागी तेहरे कोय कुगमनी, लघु बांधव रह्यो सांखी रे॥जि॥॥काल कस्यो जिनपाले प्रहारथी, कीधो लघुनव एक रे॥बीजे नवेंते जीव चवी थयो, मानवती सुविवेक रे ॥ जि ॥ ए॥ हवे जिनदत्त रे बांधव विरहथी, केते काले विपन्न रे ॥ उपनो जीव ते राजपणे श्हां, नृप तूंहीज उत्पन्न रे ॥ जि ॥ ॥१०॥ पूरव जन्मने वैर वसे करी, तें एहने मुख दीधो रे ॥णे पण पूर्व रे सत्यवचन थकी, बोल सुबोल ते कीधो रे ॥ जि ॥ ११॥ नृप कहे कूम वचन विरम्यातणो, एहवो ने फल खामी रे, तो एता दिन फोगट हुँ रहियो, नूलो जम्यो जव कामी रे ॥ जि० ॥ १२ ॥ इषि तव नाखे रे एहवा व्रत अडे, पंच जलाने बार रे॥अधिक अधिक फल तेह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२७) तणा अडे, द्वितीय एह व्रत सार रे ॥ जि० ॥ १३ ॥ बीजा व्रतथी रे पण केश तस्या, पाम्या मुगतीनोगम रे॥ गुरुना मुखथकी वचन सुणी इस्या, वीनवे नर पति ताम रे ॥ जि० ॥ १४ ॥ स्वामी तारो रे मुजने वैरागरंगनी, बेतालीशमी ढालरे ॥ जि ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥राज्य समी पुत्रने, मानतुंग महिपाल ॥ सुंदरी साथे संचरी, थयो दीदा उजमाल ॥१॥ मानवती नृपतिसहित, परिहरे राज्य तिवार ॥ चरण ग्रहे मुनिवरकने, जाणी अथिर संसार ॥ २॥ पंच महाबत परगमा, पाले निरतीचार॥ विनयादिक सवि अन्यसे, करता उग्रविहार ॥३॥ मानतुंग मुनिवर थयो, छादशअंगी जाण ॥ मानवती साधवी नली, संयम वहे सुजाण ॥४॥ पंचमहावतने उन्नय, नवि ह लगाडे दोष ॥ शत्रु मित्र सरखा गणे, धरे सदा संतोष ॥ ५॥ पागंतरे ॥ सत्तर नेद संयमतणा ॥ पाले विरती चोख ॥ शत्रु मित्र सरिखा गणे, धरे दास संतोष ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) ॥ ढाल समतालीशमी ॥ वाथाना जावननीदेशी ॥ ॥ शम दम खंति ता गुण पूरा, संयमरंगे रंगा या हे ॥ ससनेहा जविजन, बीजुं व्रत चित्तलाइयें ॥ एकणी ॥ तप जपनो खप करता विचरे, पाले गुरुनी आा हे ॥ १ ॥ स० ॥ राजरुद्धि गृहवा स तणा सुख, ते सुहणे न विचारे हे ॥ स० ॥ जिम हिकंचुकी विरमी लगी, तिम फरीने न निहारे हे ॥ स० ॥ २ ॥ मानतुंग कृषि मानवती तिम, मोहादिकने रोहे हे ॥ स० ॥ करे विहार नलो जिनकल्पी, जवियणने परिबोदे हे ॥ स० ॥ ३ ॥ अनुक्रमें मासतणी संलेषण, करिने बिहुं गढ़ग हता हे ॥ स० ॥ यर तेंत्रीसने आयु समूहे, सवसिद्धे पोहोता हे ॥ स० ॥ ४ ॥ तिहांथी पण ते बेढुं चवसे, महाविदेहे अवतरसे हे ॥ स० ॥ मनुष्य जन्म लहेसे ते रूहुं, उत्तम करण । करसे हे ॥ स० ॥ ५ ॥ लेसे दीक्षा वरसे केवल, रचसे सुर पति कमला हे ॥ ते मुगति लेसे बिहुंए, जे बे शास्त्रमां विमला हे ॥ स० ॥ ६ ॥ जुर्ज मानवती यें पिउने, इनवे पाय लगाव्यो दे ॥ स० ॥ एके व चन वृथा नवि दुर्ज, ते शिवपद पाव्यो हे ॥ स० For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ॥७॥ इहलोके परलोकें सुखनो, दायक व्रत बेबी जो हे ॥स०॥ सत्यवचन जे बोले प्राणी, ते उपर मत खीजो हे॥ स० ॥ ७॥ सत्यवचननां एहवां फल , मन मानो ते चाखो हे ॥स॥ मृषावाद परहरवा केरी, प्रज्ञा सहुको राखो हे ॥ स ॥ ए॥ मानतुंगने मानवतीनो; रास रच्यो में रूमो हे॥सण॥ खेजो कविजन एह सुधारी, होये जे अक्षर कूमो हे॥ स० ॥ १०॥ में तो करी बालक क्रीमा, हुं सुं जाणुं जोडी हे ॥ स० ॥ हासो कोइ म करसो को विद, मत को नाखो विखोमी हे॥ स ॥११॥ चनविद संघना आग्रहथकी में, कीधो रास रसिलो हे॥स ॥ जे कोइ नणसे सुणसे प्राणी, ते लहेसे शिवचेलो हे ॥ स० ॥ १२ ॥ पूरण काय ६ मुनि ७चंड १ सुवर्षे ॥ १७६० ॥ वृद्धिमास शुरूपदें हे ॥ स० ॥ अष्टमी कर्मवाटी उदयिक, सौम्यवार सु प्रत्यदें हे ॥ स ॥ १३ ॥ श्रीविजयसेनसूरिपय सेवक, कीर्ति विजय उवजाया हे ॥ स ॥ तास शीस संयम गुणलीना, मान विजय बुझ राया हे ॥ स० ॥ १४ ॥ तास शिष्य पंमित मुकुटमणि, रूप विजय कविराया हे ॥ स ॥ तास चरण करुणाथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (130) करीने, अदर गुण में गाया हे // सः // 15 // श्र णहिबपुर पाटणमा रहिने, मानवती गुण गाया हे // स॥ दुर्ग दास राठोडने राजे, आणंद अधिक उपाया हे // स // 16 // सडतालीशे ढालें करीने, कीधो रास रसाला हे // स० // मोहनविजय कहे नित होजो, घरघर मंगल माला हे // ससनेहा नविजन, बीजुं व्रत चित्त लायें // 17 // // इतिमृषावादपरिहारेश्री मानतुंग मानवती रास संपूर्ण // // // // // इतिश्री मानतुंग मानवतीनो रास समाप्त // - - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only