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गुण एक एह ॥ च० ॥ बांगड बोलीने धीठं । घणुं निगुणिने निसनेह ॥ च० ॥ सां० ॥|| एह बे पुत्री केहनी कहां रहे, जोउं एहनो रे गेह ॥ च०॥ बल बलकल करी साह; बेतरी, परणुं कन्या रे एह ॥ च०॥ सां०॥१०॥ पबे ए मुकने जोउं वश केम करे, केम धो वारसे पाय ॥ च० ॥ ए तो सही में पारखं पेखयुं, पाऊं खोटी तो हुं राय ॥ च० ॥ सां० ॥ ११ ॥ राजा मानवतीने पूग्ले, क्रोधथी चाल्यो रे जाय ॥ च० ॥ कुवचन होय सहुने अलखामणुं, सुवचन सहूने सुहाय ॥ च० ॥ सां० ॥ १२ ॥ मंदिरे पोहोती नृप दिवो नही, पोढ़ी से जे रे तेह ॥ च० ॥ करि सहिनाणी तांबुल पीकतणी, राये धारयो ते गेह ॥ च ॥ सां० ॥ १३ ॥ चंपक पादप घरने प्रांगणे, कुसुम कुरंज सुत्रास ॥ च० ॥ एह सेंधाणी धारीने वल्यो, श्राव्यो नूप श्रावास ॥ च० ॥ सां० ॥ १४ ॥ सुखजर सेजें नृप जई पोढियो, नांखी बही ए ढाल ॥ च० ॥ मोहन विजय कहे तुमे सांजलो, आगल वात रसाल ॥ च० ॥ सां० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ नयनावे निड्डी, चटपटि नृपने चित्त ॥ क्षण द हियमे सांजरे, मानवतीनुं चरित्त ॥ १ ॥
॥ श्र
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