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(२) अरहो परहो जी त्यां अवलोकिने, पुरपति धोवे पाय ॥ पीधुं पखाली सात वेला तिहां, चरणो दक चित लाय ॥ ह ॥ ६ ॥ कोटमें नाखी जी सुंदर फालीयुं, वृषन सरिखो बनाय ॥ चाबख देई सरवरने तटे, फेरव्यो नारीयें राय ॥ ६ ॥ ७॥ जिहां त्रिय मूके जी पयतणा तलियां, तिहां नृप मांडे जी हाथ ॥ मानवतीयें तिहां वननें विषे, धूत्यो अवंतीनो नाथ ॥ ६ ॥॥ चारें दिशायें चार कलस मीसे, रेणुना तुंग बनाय ॥ तरुवर तणीजी साख करी तिहां, परएयो प्यारीने राय ॥ ह॥ए॥ धिग धिग होजो जी काम विटंबना, कामथी न रहे जी माम ॥ कामथी कामी कामिनी पागले, नर धूताये वे आम ॥ ह ॥ १० ॥ मानवती त्यां मन मांहे हसे, अहो अहो नाहनी बुद्धि ॥ धुंतुं ढुंजी तोहि हजी लगे, पमती नश्री कांई सुछि ॥हा॥ ११ ॥ ए बल सारूं तो श्णे नारीने, निन बी मूकी केण ॥ में तो पाट्या जी मारा बोलमा, हरषे एमहिएण ॥ ह ॥ १५ ॥ नृप कहे केम जी हसो बो प्रिया, उलस्युं केम तुझ हीयुं ॥ सा कहे केम जी हुँ नवि जवसुं, पामी तुम सम पीयुं॥हा॥
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