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(३)
॥१३॥ आज कृतारथ हुँ एहवे थई, पण पूख्यो मन खंत ॥ नाग्य ते वाध्यो जी हवे श्हां मुफतणो, मुखनो पोहोतो अंत ॥ ह० ॥ १४ ॥ कर ग्रहीने कहे नृप नारने, चालो डेरे जी हेव ॥ पीयूनो आग्रह घणुं श्म पेखीने, सा बोली ततखेव ॥ ३० ॥ १५ ॥ खामीजी हवणा तुम संगें श्रावतां, मुऊने आवे ने लाज ॥ आवीस तिहांही जी घमी एक अंतरे, जाउँ तुमें महाराज ॥ ह ॥ १६ ॥ हरख्यो नारीनां वयण सुणी तिहां, डेरे श्राव्यो नूपाल ॥मोहन विजयें जी नाषी लहकती, त्रीसमी ढाल रसाल ॥ ६ ॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ मानवती वसनाथने, विदा करीने ताम॥ वस्त्रा दिक फरी वीणमें, संगोप्या अनिराम ॥१॥ थई अवधूतण फेरिने, जस्म चढावी अंग ॥ मूकी वीणा खंधपर, धरती हृदय उमंग ॥ ॥ कोई वाटे पेहेली गश, श्रावी बीजी वाट ॥ योगण दिठी श्रावती, अति हरष्यो नृपराट॥३॥बेसामी सिंहासने, जगति युगति बहु कीध ॥ संतोषी अशनादिके, गीत गान रस पीध ॥ ४ ॥ नृपति विचारे चित्तमां, ह जिय न श्रावी नार ॥ के सुं वनदेवी हती, गई मुऊने विष
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