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शीस, ऊपर कीधी सखरी बहडी जी ॥ ७॥ मान वती मनमांदे, हरषे पीयुनां मुखने निरखती जी ॥ धुंघटना पटमांहे, वारंवारें नयणां फेरती जी ॥ ७॥ बेडमा बेहडी बांधी, फेरिया फेरा चारे चोरियां जी॥ आरोग्या कंसार, दंपतीमुखमां दिये कोलियां जी॥॥ जोजनयुगति अशेष, सहुने संतोषी कीधा वरणागिया जी ॥ वरत्या जयजयकार, मानवती ने महिपति पर पिया जी ॥१०॥ अर्थीजनने दान, देई सहुनांमान वधारियां जी ॥ सुंदरी लेई संग,मानतुंग राजा महे ल पधारियां जी ॥ ११ ॥ पुरिजन करे प्रशंस, धन्य धन्य कन्या ए वरने वस्यो जी॥युगतो जोमो एह, किहांथी ब्रह्माएं पेदा कस्यो जी॥ १२ ॥ धनदत्त चिंतवे चित्त, हुई सगाई घणुं मनमां गमीजी ॥ नृपस रिखा यामात, जे हवे माहरे सानी कमीजी ॥ १३ ॥ गिरुग्रहिये जोबांहिं,तो सवि वातो रुडी थश्रहेजी॥ श्रासरे नागरवेलि, पत्र पलासनो नृप कर जश्चढे जी ॥१४॥ नीच सरीसी गोठ, किहां लगें कीधी श्राखर थिररहेजी॥जिम उन्मत्त खरनाद, ऊंचो ऊंचो केतो क निवहे जी॥१५॥मुक पुत्रीनो नाग्य, हुई नृपनी रूमी अंतेउरीजी॥श्म फूले मनमांहे, नक धनदत्त
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