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(३०) बेगे फरि फरिजी ॥ १६ ॥ पण महिपतिनी वात कोई डाह्या पण जाणे नही जी ॥ एह अग्यारी ढाल, मोहन विजयें नलि ढलकती कही जी ॥१७॥
॥उहा ॥ ॥ मानतुंग महिपति हवे, मंदिरमें मनरंग ॥मा नवती माननी सहित, बेगे धरि उबरंग ॥१॥ मान वती निज मन थकी, हरखे पियुमुख पेख ॥ उमकरय णने न्यायपरें, वहे आश्चर्य विशेष ॥२॥ किहां राजा किहां वणिक धुय, किहांथी मेलो एह ॥ ए साधु के सोहणो, लिखित लेख थयो तेह ॥३॥ पियुने हुँ गुण दाखवी, वश करी राखिस हाथ ॥ एह सलूणी गोठडी, जो मेली बे नाथ ॥ ४॥ एकण वक्रकटाद में, पाडिश प्रेमने पास ॥ वेधावूने वेधतां,वार न ला गे तास ॥५॥एहवी मनास्या धरे, मृगनयणी तेणि वार॥सांजलजो सहुए जना, जे करशे किरतार ॥६॥
॥ ढाल बारमी॥ ॥ हो कोई आणमिलावे साजना॥ए देश।॥
॥नप नयण न मेले नारथी, न करे वलि मना हार हो ॥ थई रह्यो चित्रतणी परे, मुखे न करे वात लिगार हो ॥नृप०॥ १॥ जेम फणिधरने गारडी,खि
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