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(६०) ॥ १५ ॥ रागने रंगे डबीलो के ॥ योगण श्रावे समयने ताके ॥ सा० ॥ सामणि अवसर कहियें न पामे ॥ जे अवनीशने बोलें दामे॥ सारा॥१३॥ पण जिनधर्म पसाएं रूमो, थासे तेमां नही कां कूमो ॥ सा ॥धर्मथकी मनवांबित थासे ॥ धर्म थकी चिंतित सुख पासे ॥ सा ॥ रा ॥ १४ ॥ हवे आगल अचरजनी वातो॥श्रोता निसुणो तजि व्या घातो ॥ सा ॥ ढाल बावीसमी मन थिर राखी॥ मोहन विजयें रसनायें जाखी ॥ सा॥राण ॥१५॥
॥दोहा॥ ॥ एहवे उजेणीथकी, उन्नरजरवामाट ॥ चाट्यो कोश्क वाणियो, लेई दक्षणवाट ॥१॥ पहोतो तेह वे अनुक्रमे, मुंगीपट्टण ताम ॥ तापे पीमाणो थको, बेगे तरुविश्राम ॥२॥पूठ्यो पुरवासी नणी, इहां कुण राजे राय ॥ पालो तेणे तिणने कडं, हां दल थंजणराय ॥३॥राणी तस गुणमंजरी, सकलक लायें पूर ॥ रतनवती तस पुत्रिका, अगणित गुणें सनूर ॥४॥ हमणा ते नृपपुत्रिका, श्रावसे रमए वसंत ॥ जो जोवानो खप करो, तो रहो यहां एकंत ॥ ५॥ पथिके जाएयु जायसुं, सांके नगरीमांहि ।
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