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________________ (११७) तुमें, एकाकी तजी टेक ॥ पी० ॥ सु०॥३॥ चर णोदक पीधुं तुमें, थई फख्या वृषनसरूप ॥ पी०॥ ते पण खेचरी हुं हती, नूला बो तमे नूप ॥ पी०॥ ॥सु०॥४॥ रतनवतीने तुमे वली, परण्या थई नर तार ॥ पी० ॥ तस गुरुणिये तुमने, एगे खवास्यो कंसार ॥ पी० ॥ सु० ॥५॥ गुरुणियें तमने नोल व्या, राख्या मास मास ॥ पी० ॥ तिहां तुमें मां ड्यो तेहशु, विषयिक जोग विलास॥पी०॥०॥६॥ गुरुणियें गर्न तमारमो, धास्यो हतो सुविचार॥पी० ॥ तस सहिनाणी दीधी तुमें, ए मुजमी ए हार ॥ पी० ॥ सु० ॥७॥ ते पण गुरुणी हुं हती, बीजी न हूंती कोय ॥ पी०॥जे तुमे तिहां दीधी हती, ते सहीनाणी जोय ॥ पी० ॥ ॥ जो खोटें एहमां होवे, तो घालो माहरे गोद ॥ पी०॥ हुँ तेहीज तेहीज तमे, विसरी गया शुं विनोद ॥पी॥सु॥ ॥ए॥ पाख्या में माहरा बोलमा, सांजली खोलो कान ॥ पी० ॥ जो होवे होंस वली किसि, श्रा घो मा श्रा मेदान ॥ पी० ॥ सु०॥ १०॥ नारीने नवि बेमियें, आज पठी महाराज ॥ पी० ॥ जोवो में श्णे मंदिर रह्यां, केहवां कीधां ने काज ॥ पी० ॥ सु० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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