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(३ए) सदैव ॥या के तिलयंत्रमें जाविया जी॥के कोश्ने करी रोष, दीधा कूडा दोष ॥ आ ॥ के खत खो टा लिखाविया जी ॥२॥ पय पीतां लघु बाल, मा तथी लीधा उदाल ॥आ॥ के कीमी बिल पूरिया जी॥व्रत लेई थव शिष्य, कीधा जद अनद॥आ॥ के कंदादिक चूरियाजी ॥३॥ पापकर्म फल तेह, उदये श्राव्यां एह॥आ॥ कर्म कस्यां बूटे नहीजी॥ ए सवि आपणो वंक, एहमां नहि कांश शंक ॥ ॥ श्रा० ॥ श्म आलोचे रही रही जी॥४॥रे रे सरजणहार, पियुविरहिणी थ नार ॥ आ॥ एह वा किम लिख्या अकरा जी ॥ सी चोरी तुऊ कीध, वालिम विरहो दीध ॥आ॥ ए तुज लखण न सख रांजी ॥५॥ नारितणो अवतार, कां दीधो किरता र ॥आ॥ पीयुडो का एहवो मेलव्यो जी ॥ मात पिता रह्यां दूर, पीयू पण नही हजूर ॥ श्राण ॥ स्यो तुज ग्रास मे नेलव्यो जी ॥६॥ मात पितासु विशेष, राखता गोद हमेस ॥ आप ॥ ते पण मूकी किहां गया जी ॥ अबला एकाकी एह, नाखी एणे गेह ॥ आ ॥ प्रजु तुऊने नावी दया जी ॥७॥ कुलगुरु गोत्रज देव, जेहनी करती सेव ॥ आ० ॥ ते
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