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(४०) पण किहां गया इण समे जी॥हवे कांई उपायूँ बुझ्छ बेठी मंदिरमुक ॥ आ ॥ नाह नितुर केणीपरे नमे जी ॥ ॥ स्युं हवे विलपवू श्राम, धैर्यतणुं ३ का म ॥आ॥ रोयां राज न पामिये जी, शहां कुण करी सके नीर, जस खे तस पीर ॥ श्रा॥ तप करूं जिम कुःख वामिये जी ॥ ए॥ मांझयो तप बहु नंत नवपद सुलग जपंत ॥आ॥ मन दृढ करी तिण मे हेलमें जी ॥ जेहने धर्म सदाय, श्रापद विलये जाय ॥ श्रा॥ चाहे ते लहे सेहेलमें जी ॥१०॥ जोतां श्ण संसार ॥ अमवमियां श्राधार ॥ श्रा॥ धर्म डे नीरू जागातणो जी ॥ पापी न तरे कोय, करी देखो सहु कोय ॥ आ॥ धर्मथकी जस जय घणो जी ॥ ११॥ प्रतिक्रमणां बिहु टंक, सा करे थई निसंक॥ श्रा० ॥सामायिक व्रत साचवे जीन पने लगामवा पाय, आलोचे आयउपाय ॥आ॥ कौ तुक नवि सुणजो हवेजी ॥ १५ ॥ बेठी सदनमकार, करसे बुझिप्रचार ॥ आ॥ पालसे वचन कह्यां सही जी॥पनरमी ढाल रसाल, करणी मंगलमाल ॥आ॥ मोहनविजयें नदी कही जी॥ १३॥
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