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________________ (४१) ॥दोहा॥ ॥दिन केता तिहां निगम्या,एकलमां श्रावास ॥ रे विरहिणी व्याकुली, मुख मेले निसास ॥१॥ अंजन मंजन परिहस्यां न करे वलि सिणगार॥म गन रहे वैरागमां, टाले विषयविकार ॥२॥ मान वती चित चिंतवे, बेग न सरे काम ॥ मुखमां पण पेसे कवल, उद्यम कीधे जाम ॥३॥ यामयुगम गश् यामनी, वनिता ऊठी संत ॥ ऊघामी लघुजालिका, मुख काढी निरखंत ॥ ४ ॥ यामिकमां जे वृक्ष बे, तेहने कीधो साद ॥ ते पण जाली देग्ले, आव्यो तजी प्रमाद ॥५॥ ॥ ढाल शोलमी ॥ ॥ गौतम समुज कुमार रे॥ एदेशी ॥ ॥ पोहरायत कहे ताम रे ॥ मानवती जणी ॥ किम बोलाव्यो मुफ जणी ए॥१॥ नृपनें कहेवू जो होय रे ॥ कोय संदेसमो॥ कहो सिर जोरें ते कहूं ऐ॥२॥ केम उघामी जाली रे ॥ बहु प्रयास थी॥ चढिने अटारी ऊपरें ए ॥३॥ के सुं एणे श्रा वास रे ॥ सांजलतुं नथी॥ कहो पडदो खोली करी ए॥४॥ किम जाए दींह रे ॥ एकलमा रह्यां ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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