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(५६) पालव बांध्यु, वलि नेहमो करीने सांध्यु रे॥ यो॥ तो हवे ताहरा चरण न मूकुं, ए अवसर किम हुं चूकू रे॥ यो॥५॥ दरसण ताहरो किहांथी फेरी, श्रावी कोकिल पवने प्रेरी रे॥ यो॥ लेख लखित थयो तुम अम मेलो॥हवे महेर करीमन मेलो रे ॥ यो॥६॥ ताहरे मुझसम दास अनेका, पण मादरे सामण तुं एका रे ॥ यो ॥ वाणी सुणीने नृपनी अमोली, तव वलती योगण बोली रे ॥ यो ॥७॥ हम किनहीके राखे न रहे, कोण पेट हमारा नरहे रे॥ यो॥ हम पंनिन किनही के सनेही, मनमें महेर नहि केही रे ॥ यो॥७॥ योगी नोगी केही सगाई॥ हमसे क्यों प्रीत लगाव रे ॥ यो॥ हम परदेसी पाहुण लोगा॥ साधे फिरे योगिका योगारे॥यो॥ए॥ योगी किनके नसुणे मित्ता॥ योगी निस्पृहि अणनित्ता रे॥ यो॥ अवधू योगी कि आस्या कीजे ॥ पण योगीका अंत न लीजे रे ॥ यो ॥१०॥योगीजला जोश रहे नित्य रम ता॥धरे योगीन किनसुं ममतारे॥ यो ॥ मातपिता कों दिया जो बेहा ॥ तो तुऊशुं क्या करे नेहा रे ॥ यो ॥ ११॥ नहि परवाह किसीकी हमकों ॥ फिर बहोत कहा कहुं तुमकों रे ॥ यो ॥ जो तें हमळू
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