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(५५) री राखो तुमे, मुझने सही विणदाम ॥२॥ केही खिजमत तुम तणी, मुऊथी कीधी जाय ॥ अविना शी जे आदमी, मुऊथी किम वश थाय ॥३॥ तमे अवधू आवी इहां, गाश् सुरंगी वीण ॥ कोश्क कीधी मोहनी, मुफ ऊपर सुप्रवीण ॥४॥ हबे तुमे जासो किहां, मुऊथी लाइ प्रीत ॥ नेह करी निरवाहियें, तो रहे उत्तम रीत ॥५॥
॥ ढाल एकवीशमी ॥ ॥ आसणरा योगी ॥ ए देशी ॥ ॥ नृप कहे तेहने बे कर जोमी, हवे जा किहां मुक गेमी रे, योगण मन मानी ॥ रहो श्ण मंदिरमां हे सदाई, अमे आपशुं युगते गदाई रे ॥ यो० ॥१॥ लेशु खबर हमेस तुमारी, तुमे जो जो नफरी हमारी रे॥ यो० ॥ अमे अहोनिश उलंगमा रहेशं, तुमे कहेसो ते वहेअ॒रे ॥ यो ॥२॥ राखशुं करीने हाथें लाया, घणी लागी तुमथी माया रे ॥ यो॥ हवे अधदण तुम विण न रहा, तुम विरहो केम सहा रे॥यो॥३॥जो तुमे माहरा राख्यान रहो, तो चेलो करीने निवहो रे॥यो॥ सामण ताहरी सी में बिगा मी, जे एवमी प्रीत लगामी रे॥यो॥धामें मन ताहरे
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