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________________ (५४) मानवती पण तातने, आवीने गृहमाहिं तेहिज वेस बनाव्यो ॥ हो राज ॥ तिमहिज पुरमा संचरी, वली तिमहिज नृपने आगे जश्ने अलख जगाव्यो ॥ हो राज ॥ ११॥ नूपति योगणने पगें, शीसप्रते सो हावे रज तिम शिसे लगावे ॥ हो राज ॥ सामणी अवसर अटकली, वाये वीण सुरंगी कोकिलकंठे गावे ॥ हो राज ॥ १५ ॥ नृपर्नु तन मन वश कह्यु, धूतारी जोगणीय कांश्क जुरकी नाखी॥ हो राज ॥ अतिहि वेश सोहामणो, जोवा सरिखो जाणी जोवे नूपति कांखी ॥ हो राज ॥ १३ ॥ सा योगण चित चिंतवे, पीउने पाय लगाड्यो पूस्यो एक उल्हासो॥ हो राज ॥ चरणोदक पावं हवे, श्रागल जो केम थासे नृपश्री माहरे तमासो ॥ हो राज ॥ १४ ॥ढाल कही ए वीसमी, मोहन विजयें सुपरें मीठे वयणे ब ना॥हो राज ॥ जो जो सवि श्रोता जना, अबलाए पीठं धूतण केहवी बुद्ध उपा॥ हो राज ॥ १५ ॥ ॥ दोहा॥ ॥नरपति योगण आगले,मूकी बेगेमान॥श्रवण देश्ने सांजले, जीणा जीणा तान ॥ ॥१॥ नरपति कहे कर जोमीने, अहो योगण गुणधाम ॥ दास क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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