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राखण केरी॥ मन चाह धरे अनि नेरी रे॥ यो॥ ॥ १२ ॥ तो तूं कह्या एक मान हमारा ॥ तो रहे वे तुज दरबारा रे॥ यो ॥ कहे नृप तेहने देश दिला सो ॥ मुफ सरिखो काम प्रकासो रे ॥ यो॥१३॥ तुम वचनथी न रहुं अलगो ॥ हुं तो ताहरे पालव वलगो रे ॥ यो ॥ एहवो नाग्य किहांथी अमारो ॥जे कह्यो करिये तमारो रे ॥ यो ॥ १४ ॥ नृपनो अतिहि आग्रह जाणी॥हवे बोलसे योगण वाणी रे ॥ यो० ॥ एम एकवीसमी ढाल ए नाखी ॥ मोहन विजयें मन थिर राखी रे ॥ यो ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ तो रडं में तेरे निकट, जो तुं न जावे दूर ॥ लाख लाख गाली सहे, तोही रहे हजूर ॥१॥ जब तूं मुजकुं बोरके, रहे दूर बिन एक ॥ ऊ चलूंगी में तबे, या है मेरी टेक ॥२॥ तूं जो इतनी करसके, तो मोको शहां राख ॥ नहि तो अबहिं कर विदा, पीडा उत्तर नाख ॥३॥ नृप पय लागीने कहे, अहो योग ण महाराय ॥ निवहीस ए सघj कह्यु, हुकमे रहिश सदाय ॥४॥ गाली गणीस तुमारडी, करिने घीनी नोल ॥ साखी प्रजु ए वातनो, आपन बिहूं विचाल
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