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(१०) शुं जाणसे ॥३॥ श्म कहे वारंवार सखी आदर घणे, मानवती तव तास ईस्या वायक नणे ॥रे स हीयो केम आज करो हठ एवमो, सहुए थई एक राग पुठे मुक कां पमो॥४॥ फोगट जोगवे कोण बाई ऊजागरो, थोमामांहे सवाद हवे तो मयाकरो ॥ वलि शहां रामत काले रमसुं नवनवी, हरणी ढली आकासके वेला बद हवी ॥५॥ गीततणा नणकार जो श्रवणें वागसे, सूता लोक सवे इहां जबकी जा गसे ॥ अतिक्केसें जे अर्थ करे स्यो फायदो, श्रावजो काल ईहायके आपणो वायदो ॥६॥ मानवतीनणी ताम चारे चतुरा कहे ॥ हे बेहेनी अमवातते तुंतो नवी लहे ॥ काल अमारो तात उत्सव मंमावसे॥चा रेने वर चार जलापरणावसे ॥७॥परण्या पडे तो होसे रहे, सासरे, अहर्निस बे कर जोमी पीयुने आसरे सासु ससरो जेठ नणंदी वमी शिरें, तेहनी लाज अ तीव करेवी बहूपरे ॥ ॥ करवो घरनो काम अहो निस चडवडी, नही परवार लिगार रहे एके घडी। चालवु मन अनुजाइ सहुसुं सुंदरी, परणे नूचरी खे चरी कोण पुरंदरी ॥ ए ॥ बालपणाना मित्रतणो अ लजो सही, नीगमवो जमवारो खुणे बेसी रह। ॥
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