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( ४ )
॥ दोहा ॥
॥ एक दिन बंद पूरी करी, बेठो अवनीनाथ ॥ ऊना सेवक यागले, जोमी जोमी हाथ ॥ १ ॥ नृत्यकार नाटक करे, गायनपण करे गान ॥ बंदीजन बोले बिरुद, मुंजे पान सुपान ॥ २ ॥ एहवे सिंध्यासमय तिहां, प्रगट्यो रंग असंख ॥ ऊल्लर ऊणकारा थया गरजे घन जेम शंख ॥ ३ ॥ हय गय रथ वहेता र ह्या, गहमद थई प्रतिगेह ॥ चंचल हुई पदमिनी, कुलटा तस्कर जेह ॥ ४ ॥ दीपकयोति थई सुनग, वाम नाम जलकंत ॥ मानुं नयरी नयणकरी, नरप तिने निरखंत ॥ ५ ॥ याम एक गई जामिनी, सजा विसर्जी राय ॥ श्रोता सांजलजो हवे, जे कौतुक हां थाय ॥ ६ ॥
॥ ढाल बीजी ॥ हमीरांनी देशी ॥
॥ महीपति मनमां चिंतवे, निरखुं नगरवरूप ॥ चतुरनर || परिजनमें हां माहरो || केहवो बे न्या य अनूप ॥ चतु० ॥ १ ॥ सूरिजन सांजलजो कथा, रसिक यई देई कांन ॥ च० ॥ ऊपजसे रस रंगनो, चाख्याथी जेम पान ॥ च०सु०॥ २ ॥ मुऊ ऊपर मा हरी प्रजा, केहवो राखे बे नेह ॥ च० ॥ के बेस
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