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रखे स्वारथी, के आज्ञाकारी एह ॥ च० ॥ सु० ॥ ॥ ३ ॥ ऊट्यो परीक्षा कारणे, नरपती लेई करवा ल ॥ च० ॥ नीलवसन उढी करी, चाल्यो थई उ जमाल ॥ च०॥ सु०॥४॥ चाचर चोहटे गलिये नमे, एकलको नरराज ॥ च० ॥ गलिये गलिये सांजले, निजजसनो आवाज ॥ च०सु०॥ ५ ॥ लोक सकल कहे पणे, राजासमो नहि कोय ॥ च० ॥ वाक्य वछल हरिचंद जिस्यो, जुजबलजीम ज्यूं होय ॥ च०॥ सु० ॥ ६ ॥ आपण नगरीमे नथी, चौरादिकनी जीत ॥ च० ॥ नवि लीये कोई तृणो पड्यो, रामना राजनी रीत ॥ च० ॥ सु० ॥ ७ ॥ करदंग नही कोइ ऊपरे, दंग देवल तिचंग ॥ च० ॥ बंधन धम्मले अबे, तामना जलघटी संग ॥ चणासु ॥८॥ प्रगटयुं जाग्य प्रजातएं, राजननी थई रूप ॥ च० ॥ वाय हजी लाग्यो नयी, कलियुगनो तनु नूप ॥ च०॥ ॥॥ ए महिपति चिरंजीव जो, म होजो ऊनो वाय ॥ च० ॥ खारे दरीये जई पमो, नृपनी अलाय बला य ॥ ० ॥ ०॥ १० ॥ प्रभु रहना मनमातणी, पू रजो नितप्रते स ॥ च० ॥ लोढाजो एहना सदा, डुरजन
ने कपास ॥ च०सु०॥ ११ ॥ एह नृप
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