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________________ (६५) निसुणी वचन्न, नृप ढाली रह्यो नीचा कन्न ॥ म॥ ॥ १६ ॥ सामणने पाये ततकाल, लागी मनावे हवे नूपाल ॥ म ॥ पजणी ए पचवीसमी ढाल, मोहन विजयनां वचन रसाल ॥ म० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥अहो अहो सुनगे सामणि, हुं अपराधी शीश॥ ए गुनहो बगसो मुने, रखे चमावो रीश ॥१॥चा कर चूके चाकरी, पण खामि न चूके वाच ॥ अवगु ण ऊपर गुण करे, ते मणि बीजा काच ॥२॥ कृ सागर बाल्यो थको, सांदमुं दिये सुवास ॥ कोस जो नाखीयें नीरमां, तो पण जल दिये तास ॥३॥ के सरने घसतां थकां, बिमणो दाखे रंग॥सोनाने पर जालिये,अतिहि दीपावे अंग॥४॥ श्छु पिले जो यंत्र मां, तो पण रस देअंत ॥ तेम निहेजा ऊपरे, कदी हि न कोपे कंत ॥५॥ तिमहं चूको सामिनी, पण तुमे चूको केम ॥ बेहू सरिखा होवतां, किम रस वाधे एम ॥६॥ ॥ ढाल बीशमी ॥ __ कपूर होवे अति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ नृप कहे बेकर जोमीने रे,अहो अहो आतमराम ॥वीणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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