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________________ (२५) ॥ दोहा॥ ॥ कहे प्रधान धनदत्तने, ते पुत्री ने क्याहिं ॥ नयणे तेहने निरखिये, तेमावो तुमे आंहिं ॥१॥ शेठ कहे ते बालिका, गश् अ सुणो देव ॥ जणवा अध्यापकगृहे, जिमवा आवसे हेव ॥२॥ केहो शा स्त्र जणे अजे, तुम पुत्री गुणवंत ॥ जैनधर्म अम श्राइनो, साधु समीप नणंत ॥३॥ कहे प्रधान तुम धर्मनो, समकावो मुझ मर्म ॥श्रवण देश्ने सांनलो, पामीने सुखशर्म ॥ ४ ॥ धनदत्त कहे सुण साहेबा, श्राजधर्मनो मूल ॥जेहवो गुरुमुख सांजल्यो, निसुणो थश् अनुकूल ॥५॥ ॥ ढाल नवमी॥ ॥ ते तरिया जाई ते तरिया ॥ ए देशी॥ ॥ जीवदया गुणधर्म अमारो ॥ हवं नही अमें कोश्ने रे ॥ मजान प्रमुखे जल वावरियें, नूतलजंतु जोश्ने रे ॥ जी० ॥ १॥ मंत्र नवकार जपोजे अह निस, नावें अढ मन राखी रे ॥ एहथी केई नर सं पद पाम्या, शास्त्र अबे केई साखं। रे ॥ जीव० ॥२॥ तरण तारण जिन पंचम नाणी, करियें तस पदसेवा रे ॥ कर्मसुनटने दूर करेवा, शिवपदना सुख सेवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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