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(१०३) णीको नथी ॥२५॥ दलथंजण राजा हो लाल, जमा ईने जंपे राज॥गुरुणी अमारी रे एहवी को डे नही॥ २६ ॥ तमने अमने हो लाल, को ग धूती राज ॥ढाल सामंत्रीसमी रेसारी जाखी मोहनें॥२॥
॥दोहा॥ __॥ सना सह खमखम हसी, बिहु नृपनी सुणि वात ॥ सढुको कहे कोश् धूतणी, धूती गश् करि घात ॥१॥ मानतुंग राजा हवे, मागी शीख तिवार ॥ दलथंजण निज पुत्रिने, संप्रेडे सुविचार ॥२॥ दीधो बहुलो दायजो, हय गय रथ धन कोमी ॥ पुत्रीय निज मातथी, करी शीख कर जोमी ॥३॥ रतनवती उहोणपति, चाल्यो लेई शीख ॥ बंदी जन कहे जोग ए, रहेजो कोमी वरीष ॥४॥ दलथंजण नृप पुत्रीने, संप्रेडी वलियांद ॥ मानतुंग नृपनारि ले, मालव देस खमियांह ॥५॥ जव ते वामी आगले, नीस री नूपत ॥ तदा सुरंगी योगणी, चढी नृपतिने चित्त ॥६॥ योगण जोई बागमां, नरपति आपोआप ॥ पण क्यांही दीवी नही, तव करे नृप विलाप ॥७॥
॥ ढाल अडत्रीशमी ॥ ॥चांदलिया संदेसो रे कहे जे मारा कंतने रे ॥ए
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