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________________ (२४) प्रमुदित हु प्रधान रे॥वाहवाह लाई धर्म तमारो॥ पावन कीधां कान रे ॥ जी ॥११॥ एहवे रमऊम करती श्रावी, मानवती मनरंगें रे ॥ विनयसहित प्रणिपात करीने ॥ बेठी तात उबंगें रे ॥जी० ॥१३॥ लावण्यता सुंदर देखीने, नृपसेवक श्म जाणे रे ॥ न्याये ए कुमरीने ऊपर, नृपति एकंगो ताणे रे ॥ ॥जी० ॥१॥ ए कुमरी नृपने परणाविस, चिंतव्यु बे जो कृपाल रे॥ मोहनविजयें हेजे नाषी, नवमी ढाल रसाल रे ॥ जी० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा॥ ॥चकितचित्त हुई सचिव, रूप निहाली जेह ॥ शुं शशिमुख दिसे सही, मुखप्रतिमाया एह॥१॥ कोटि विरंची जो लिखे, एह लिप तो न लिखाय॥ रचित रचाणो रूप ए, जिम जमराकर न्याय ॥२॥ सचिव कहे तव शेग्ने, रसनां वचन अमोल ॥जो मानो माहरो कह्यो, तो नाखं एक बोल ॥३॥क हिये ने मानो नही, तो कहे, ते आलि ॥ कचरा में नांखे कवण, मुरख कंचन कालि ॥४॥ शेठ कहे नाषो प्रन्नु जे मुऊ लायक काम ॥ हूं बुं राजनो टे ली, तुमे खांमी अनिराम ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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