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(ए४) सहिनाणी कोय ॥ वि० ॥ १४ ॥ जिम तुमे अंगज उलखो रे लाल ॥ आवे तुमचे पास ॥ वि०॥ ते कार ण मांगु अबु रे लाल ॥सहिनाणी सुविलास ॥ वि०॥ ॥ १५ ॥ वचन सुणी वनितातणां रे लाल ॥ दिये सहि नाणी सार ॥ वि० ॥ निजनामांकित मुण्डी रे लाल ॥ वलि मुगताफलहार ॥ वि० ॥ १६ ॥ बेहु सहिनाणी लेश्ने रे लाल ॥ सा हरषी मनमांहि ॥ वि० ॥ ढाल कही चोत्रीसमी रे लाल ॥मोहन विज यें उगंहि ॥ वि० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ हार उदार ने मुडमी, कबज करीने ताम ॥ ऊपी मानवती तदा, पियुने करी प्रणाम ॥१॥ कहो तो जई आवं प्रजु, रतनवतीने पास ॥ हमणा पानी फरी तुरत, आवीस एवं आवास ॥२॥ नृपति नेद जाणे नही, दीधी शीख तिवार ॥ मानवती पण पय नमी, श्रावी मंदिरबार ॥३॥ तारानर रयणी समे,
आवी बागमकार॥ वेष उतारी वीणमे,संगोप्यो तिणि वार ॥४॥ योगणवेश फरी सज्यो, चिंते चित्तमका र॥बोल सुबोल थयो माहरो, धूत्यो प्राणाधार ॥५॥
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