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॥ ढाल पांत्रीशमी ॥ मुरलीनी देशी ॥ ॥ तथा ॥ नाह अबोला लेई रह्या ॥ए देशी पण ॥
॥ हवे पीज पहेली पाधरी, जाऊं नगरी उोण ॥ यहां रह्ये श्यो फायदो, पोहोचुं तात पएण नारी धूता रीकहियें, पीयुने कीधो पाधरो नेत्र॥ त्रियाथी अलगा रहियें ॥१॥ ए टेक ॥ मातपिता तिहां माहरां जोतां होसे वाट ॥ ऊंखर फुरी थयां हसे, माहरो करिय उचाट ॥ ना ॥२॥ काम सरे न विलंबिये, माह्यां एहिज काम ॥ मानवती वीणा ले ॥रयणि ये चाली ताम ॥ ना॥३॥ एकाकी निर्नय थकी, कग्नि करीने मन्न ॥श्म अनुक्रमें दिन केटले, श्रावी तेणे वन्न ॥ ना ॥ ४ ॥ तेणे सरोवरे ऊनी रही, जिहां पीयु (कियो) वृषन स्वरुप ॥ ना० ॥ ते पण दीठी जायगा ॥ वलि श्रागल चाली चूंप ॥ ना ॥ ॥ ५ ॥ वोली विषमी वाटमी, श्रावी मालवदेश ॥ ना ॥ दिन केते निजनयरमां, आवी कीध प्रवेश ॥ ना ॥ ६॥ मातपिताने जई मली, कोई न जाणे तेम ॥ ना ॥ पाम्या हर्ष सहु रीजता, हेज न होवे केम ॥ ना० ॥७॥ वहन जे विड्या हुवे, तस फरी मेलो होय ॥ ना० ॥ ते सुख जाणे केवली,
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