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________________ ( ६६ ) पतां रे, सुं कांइ बेसे वे दाम ॥ गु० ॥ १५ ॥ नृप कहे माहरी ना नथी रे, घ्यावीस शिरने जोर ॥ गु० ॥ लगो नथी तुम वचनथी रे, पिए वे एक मरोर ॥ गु० ॥ १६ ॥ उत्तर एहवो मंत्रिने रे, दीघो तव नू पाल ॥ गु० ॥ मोहन विजयें एकही रे ॥ सुजग चोवीसमी ढाल ॥ गु० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नूप विचारे चित्त थकी, जावुं प्रति हि दूर ॥ यो गए डुहवासे खरी, जो हूं न रहूं हजूर ॥ १ ॥ एक समे बेहु क्रिया, किम सचवाणी जाय ॥ नृप चित्ते वी मल्यो, वाघ नदीनो न्याय ॥ २ ॥ जो नवि जाऊं परणवा, तो रीसासे नूप ॥ ए बेहुनां मन राखवा, सी बुद्ध करूं अनूप ॥ ३ ॥ एहवे फिरती योगिणी, यावी जिहां बे राय ॥ नृप ते मंत्री देख तां, दोमी लागो पाय ॥ ४ ॥ बेठी सामण बेसणे, वीण वजावे सार ॥ पण नृपनो जांखो वदन, फिर फिर जोए निहार ॥ ५॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ राग बंगालो, राजा नही नमे ॥ ए देशी ॥ ॥ बोले योगी नृपथी वाण, याज एसे क्यों दिसो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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