________________
(६५) गु० ॥ ६ ॥ दक्षिणपतिने मंत्रियें रे, भेट्यो नृप मान तुंग ॥ गु० ॥ नेट थयो चित नेटणुं रे, हरख्यो घणुं पुरपुंग ॥ गु० ॥ ७ ॥ दलथंजणराजातणो रे, जा यो व्यो सचिव | गु० ॥ दीधो तस दरबारमें रे, सखर उतारो तदीव ॥ गु० ॥ ८ ॥ मंत्री उतस्यो तिहां जइ रे, जोजन कीधां सार ॥ गु० ॥ पहेरी वसन संध्यासमे रे, श्राव्यो ते दरबार ॥ गु० ॥ ए ॥ एकांते बेसी करी रे, मांगी जूपथी वात ॥ ० ॥ राजलगें व्यो अबुं रे, मूक्यो नृपनो विख्यात ॥ ० ॥ १० ॥ मुऊ नृपनी जे पुत्रिका रे, तेणे प्रतिज्ञा कीध ॥ गु० ॥ वरवो उद्रेणीधणी रे ॥ नही तो मे व्रत लीध ॥ गु० ॥ ११ ॥ ते माटे पण पूरवा रे, तिहां लगें वो खाम ॥ गु० ॥ दल थं प्रेयो अबे रे, मुऊने एणे काम ॥ ० ॥ १२ ॥ हवे सज यई स्वामी तमे रे, कीजे प्रयाणो आज ॥ गु० ॥ पाणी न खमे पातली रे, लाजे विणसे काज ॥ गु० ॥ १३ ॥ मानतुंग निसुणी रह्यो रे, तेह सचिवनां वयण ॥ गु० ॥ उत्तर देइ नवि सक्यो रे, नीचा करी रह्यो नेण ॥ ० ॥ १४ ॥ कड़े मंत्री केम साहिबा रे, अबोल्या रह्या आम ॥ गु० ॥ पाडो उत्तर आ
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org