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________________ (७) वाजे गाजे मृदंग विधे घणा रे ॥६॥ वनिता मली वादे रे, कौतुकने उमादे रे॥ मानवती शुनसादें गाए सोहलारे, वमारण करीथाणे रे॥कोइनेदन जाणे रे, सहु कोश्वखाणे लोक नली जली रे ॥७॥ मानतुंगम हीशे रे, सजी जान विशेषे रे, निसाणे नरेशे पर ति ओरियें रे॥ रतनवर्ती करी संगे रे, जोरावर जंगे रे,आवी बिहु रंगे बेगं चोरिये रे ॥ ७॥ मानवती थश् माजी रे, करे हलफल काजी रे, सहुकोने मन बाकी वमारण तो खरी रे ॥ वरकन्या वरिया रे, चिहुँ फेरा फरिया रे, आनंदे नरिया नृपे नारी वरी रे ॥ ए ॥ मानतुंग महीधरियोरे, पुरुषं परवरियो रे॥ श्रावीने उतरियो डेरे मूलगे रे ॥ रयणी थई जाणी रे, पुत्रीजणी राणी रे, सुणो रे सयाणी मूके उमगें रे॥ १०॥ मानवती तव बोली रे, कपटालय खोली रे, राणी अहो नोली सुण मुक वीनती रे ॥ कुल देवी अमारी रे, अतिहि अटारी रे, विलससे नही नारी अम नृप तेवती रे॥११॥ उडोणी जाई रे, कुलदेवी मनाई रे, रतनवती चित लाई विलससे तदा रे ॥ सवि नेदहुँ लडं बुं रे, ते माटे कहुं बुं रे, नृप नेली रहुँ डं तिणे जाणुं सदा रे ॥ १५ ॥ खोटुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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