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(१७)
नी थर हूंस॥सेजे सुता नींद श्रावी नही रे, मुझने ताहरा सूंस ॥रा॥५॥ते माटे तुं पुबत पाधरो रे, पोहोचजे तस आगारपीक सहिनाणीनिंते जोयनेरे, वली चंपकतरुछार ॥ रा॥६॥ जिम तिम करीने तेहना तातने रे, जोलवी करजे हाथ ॥ कहेजे ताह री पुत्री जाचवारे, मूक्यो २ महिनाथ ॥ रा० ॥७॥ करजे प्रणिपति तुं माहरी वती रे, मानिस ताहरो पाड ॥ जीवित सुधी गुण नही वीसरूं रे, पालीस रूमा लाम ॥रा ॥ ॥ ए कन्याथी वेध डे वयण नो रे, अवर न बीजो कोय॥जो ए परणुं ताहरी बु छिथी रे, तो मुझने सुख होय ॥रा ॥ ए ॥ वचन सुणीने महीपतिना इस्या रे, बोल्यो अमात्य तिवार॥ ए कन्यानो केहो आसरो रे, अवनीपति अवधार ॥ ॥ रा ॥ १० ॥ ए तो मुझथी कारज सहेल रे, क रिस हुंदाय उपाय ॥ कहो तो लावु हरिनी पुरंदरी रे, करीने तुम पसाय ॥ रा ॥ ११॥ मणिधर मा थे नाचे डेमकी रे, ते गारमीने प्रसाद ॥ईसने उपरे करीने पोठियो रे, सिंहथकी करे नाद ॥ रा ॥१॥ तिम हुँ पण ऊपरथी ताहरे रे, स्यों न करी सकुं का ज॥तो हूं साचो सेवक राउलो रे॥जो परणावं आ
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