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________________ ( १७ ) ज ॥रा० ॥ १३ ॥ इम महिपतिने देई धारणा रे, उठ्यो ताम प्रधान ॥ नयर संचस्यो मंदिर पेखतो रे, आणी मन अभिमान ॥ रा० ॥ १४ ॥ मोहनविजयें जाषी सातमी रे, सुंदर ढाल ए जोय ॥ मीठी आगल एहथी वाती रे, सांजलजो सहु कोय ॥ रा० ॥ १५ ॥ ॥ डुहा ॥ ॥ सेरी सेरी ढूंढतो, पीकांकित यावास ॥ जाणे मृगकस्तूरीयो, हिंडे लेतो वास ॥ १ ॥ मूके एक मं दिर सचिव, पेसे बीजे क ॥ गुणमोताहलनी परे, पामे विस्मय लोक ॥ २ ॥ इम जमतां दीठो तिहां, चं पकतर सांहिं ॥ सहिनांणी सघली मली, दरख्यो घणुं मनमाहिं ॥ ३ ॥ कह्याथकी अधिपति तणे, हुं जोवंतो जेह ॥ ते अनुमाने मानता, निश्चय मंदिर एह ॥ ४ ॥ पेठ ग्रहमे धसमसी, दाससहित शुचित्रं ग ॥ जिम प्रतिबिंबे मुकुरमे, श्राननभूषणसंग ॥५॥ ॥ ढाल यामी ॥ ॥ अलबेलानी देशी ॥ धनदतें दीगे यावतोरे ला ल ॥ निजघरमांदे प्रधान रे || रंगीला ॥ चलचित्त ति हुई तदा रे लाल ॥ जेम हाथीनो कांनरे ॥ रं गीला ॥ प्रायें सुंहालो वालियो रे लाल ॥ १ ॥ बोबडुं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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