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________________ (७४) सुणे तस मुखथकी, नूधर देई कान॥ला॥च॥१०॥ इम वहेतां दिनपांचमे, पाम्या एक उद्यान ॥ ला॥ सदल सरल महीरुह घणा, ऊंचा लगे असमान॥ला॥ च ॥ ११॥ गया सघन देखी जिहां, रवि पण न करे जोर ।। ला ॥ उमगुडे बेग थका, मधुरां टहुंके मो र ॥ ला ॥ च ॥ १५ ॥ सजल सरोवर जिहां तिहां, अति रमणीयक वन्न ॥ ला ॥ देखी मही पतिनुं थयुं, घणुं आणं दित मन्न ॥ ला ॥ च०॥ ॥ १३॥ योगणिने पूरी करी, डेरा दीधा तत्र ॥ ला ॥ खेदाक्रांत थया नटा, ऊतरिया सर्वत्र॥१४॥ धूतासे योगण थकी, ए वनमें नूपाल ॥ ला ॥ मोहनविजयें जली कही, सत्तावीसमी ढाल ॥ ला॥ च० ॥ १५॥ ॥दोहा ॥ ॥ डेरा दीधा देखिने, सामणचिंते चाव॥ एकान नमे कंतने, धूत्यानो ने दाव ॥१॥ ढील न करवी कामिनी, ऊखाणो कहें लोय ॥ जिम जिम जीजे कंबली,तिम तिम जारी होय॥॥श्म चिंती ऊठी तुरत, वीणा कर धरि तेह ॥ मानतुंग महीपति नणी, श्म नाषे धरि नेह ॥ ३ ॥ सुण बे तूं उजेणपति, कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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