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(१७) हि ॥के रखे मुझने रे वाही गइ हसे रे, में पण मूकी एहने कांहि ॥ तट० ॥ १५ ॥ हजिय न आवी रे वेला बहुथ रे, किहां गश् योगण मूकी नेह ॥जोश काढुं रे जश्ने वन्नमां रे, जिहां तिहां होशे हमणों एह ॥ तट ॥ १३ ॥ नूपति जव्यो रे एकलो आप सुं रे, सेवक कोश्न लीधो संग ॥ धीरज हुश् रे राय जणी तदा रे, फरक्यो ज्यारे जमणो अंग॥ तट ॥१४॥ चमवमी चाख्यो रे खडग संबाहने रे, वनमां जोवे तव नूपाल ॥ मोहन विजयें रे नाषी रंगयी रे, अहावी समी ढाल रसाल ॥ तट० ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ॥ लतायुब ढंढोलतो, तस जोवे नृप राट ॥ जमे जिम मयगल विफस्यो, फिरे करे गललाट ॥१॥ यूथ ज्रष्ट जिम हरणलो, फिरे प्रचारे फाल॥तिम नेहे वेध्यो थको, वनमां फरेनूपाल ॥२॥ पण योगण लाने नही, जोवे पगनूपीठ ॥ मानवतीये कंतने, वनमां नमतो दीठ॥३॥ जाएयुं श्राव्यो वबहो, मुझने जोवा काज दिन धोले घूत्या तणो, अवसर मलियो आज ॥४॥ नाहनणी आकर्षवा, गाए गीत रसाल ॥ जाणे टहु की कोकिला, बेठी आंबामाल ॥५॥
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