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( ६२ )
रतनवतीयें दीठ ॥ च० ॥ स० ॥ मूकी तेहने तेमवा ॥ ते० ॥ बाला एक विशिष्ठ ॥ च० ॥ ७ ॥ स० ॥ रे पर देसी प्राहुणा || प्रा० ॥ केम बपी रह्यो रे अबूज ॥ च० ॥ स० ॥ ऊ खमारी खामिनी ॥ खा० ॥ तेडे बे अहो तुऊ ॥ च० ॥ ८ ॥ स० ॥ आव्यो वटा वाणियो ॥ वा० ॥ रतनवतीने पास ॥ च० ॥ स० करी प्रणि पत ऊजो रह्यो । ऊ० ॥ सा पूढे सुविलास ॥ च० ॥ ॥ ए ॥ स० ॥ श्राव्या किहांथी किहां जसो, जाषो स त्यवचन ॥ च०॥ स०॥ नर कहे श्राव्यो उजेणथी ॥ उ० ॥ जे बे नूतले धन्य ॥ च० ॥ १० ॥ स० ॥ मान तुंग राजा तिहां ॥ राजा० ॥ राजे वधते वांन ॥ च० ॥ स० ॥ रूपकलागुणें आगलो || गु० ॥ नही कोई तेह समान ॥ च० ॥ ११ ॥ स० ॥ जेहना सुजस निसा
ना ॥ नि० ॥ दह दिस सुणियें श्रवाज ॥ च० ॥ स० ॥ जेहथी करतो गगनमें ॥ ग० ॥ नासी रह्यो सुरराज ॥ च० ॥ १२ ॥ स० ॥ गतणी चकचोधमे ॥ च० ॥ पाम्यो हार अनंग ॥ च० ॥ स० ॥ वहे श्रहो निसि जस अंगणे ॥ ० ॥ दान गंगाना तरंग ॥ च० ॥ १३ ॥ स० ॥ ते नृप जेणें दी वो नही ॥ दी ० ॥ जीव्युं तस या ॥ च० ॥ स० ॥ दीगंहिज श्रावे बनी ॥ श्र० ॥
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