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________________ (६३) केता करियें वखाण ॥ च ॥ १४ ॥ स० ॥ जे कन्या ते वर वरे॥व०॥ तेहनुपूरण नाग॥च०॥स ॥पथि कनां वचन सुणी श्स्या॥सु॥रतनवती धस्यो राग ॥च ॥ १५ ॥ स॥ आतुर हुश् परणवा ॥ प० ॥ उणीधणी तेह ॥ च ॥ स० ॥ गुण निसुणी पर गमी गया॥प०॥ रोमारोमे तेह॥च०॥१६॥स॥ ॥ वन हंती श्रावी घरे ॥ श्रा॥ रतनवती ततका ल ॥ च० ॥ स०॥ मोहन विजयें लहकती ॥ ल॥ कहि त्रेवीसमी ढाल ॥ च० ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ चेटीने नृप धुव कहे, गतिशैशव मुरु देव ॥ यौवन आगत तनुविषे, अनुमाने अहमेव ॥१॥ वर वरवा छा थई, मुऊने हवे सुविलास ॥ तेमाटे तुमने कडं, श्वा पूर उल्हास ॥२॥ वर वरवो उजो णपति, नहि तो पावकसंग॥तूं जा कहे मुज मातने, कर करुणा तो रंग ॥३॥ चेटी दोनी ततदणे, राणी निकट पह्रत ॥ रतनवतीनी वातडी, कहि मधु राई युत्त ॥ ४॥ गुणमंजरियें रायने, पजणी सकम प्रवृत्त ॥ मानतुंग नृप परणवा, पुत्री थश् उनत्तल ॥५॥ दलथंनण निजनारिने, कहे त्रिय म करिश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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