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________________ (३२) कोठार हो | सांदमुं जूवो रे साहिबा, जो बुद्धि दि किरतार हो ॥ नृप० ॥ ११ ॥ बलानो बल केटलं तुम आगल महाराय हो ॥ पाय पहुं करुं वी ती ॥ पियुने घणुंशुं कदेवाय हो ॥ नृप० ॥ १२ ॥ वचन सुणी वनितातणां ॥ बोलसे हवे महीपाल हो || मोहन विजयें सोहामणी, पजणी बारमी ढाल' हो ॥ नृप० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मानतुंग माननीतणा, वेधाला सुणि वयण ॥ बोल्यो तव हसिने तदा, अरुण करी दो नयण ॥ १ ॥ सांजलने तूं हे प्रिया, आजनी ए नयी रीश ॥ में तुमने कपटे करी, परणी धरी जगीश ॥ २ ॥ हवे चरणोदक पावजे, देजे जूनुं अन्न ॥ ताहरे पाय लगाम जे ॥ करजे जाएयो मन्न ॥ ३ ॥ ब किसी मत राखजे, पूजे सघली हूंस ॥ जो मुकने वश नहि करे, तो तुमने मुऊ सूंस ॥ ४ ॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ प्रितडी न कीजे रे नारी परदेसीयां रे ॥ ए देश ॥ ॥ प्राणजीवनना रे निसुणी बोलमा रे, चमकी चतुरा तेवार ॥ पीउडे निहेजे रे वात ए सी करी रे ॥ है है For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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