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________________ ( १९३) रीताशे महाराज ॥ तेमाटे जाई वहि, म करो अ मारी लाज ॥ सु०॥ ११॥ श्म सघली हासी करे, पियुनी वारंवार ॥ राजाएं निज मंत्रिने, वेडाव्यो तिणिवार ॥सु॥१२॥ कहे रे केम अंगज इणे,प्र सव्यो केही रीत ॥ सचिव कहे जाणुं नही, जे थ एह अनीत ॥ सु० ॥ १३ ॥ मुझने पण कह्यो राणि ये, नजरें निरख्यो नांहि ॥ साच फुग्नो पारिखो, चालो जोश्ये दणमांहि ॥ सु० ॥ १४ ॥ जो जो धर्म प्रनावथी, होसे मंगलमाल ॥ मोहनविजयें वरणवी, एकतालीशमी ढाल ॥ सु ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ऊठ्या अंतेउरथकी, मंत्री ने महाराज ॥ श्रा व्या एकथंने गृहे, बालक जोवा काज ॥१॥ सहि नाणी घरनी सकल, अचल धरापति दीठ ॥ तिम तिम हृदये नूपने, विस्मय अतिहि पश्च ॥२॥ जाणे नृप निजचित्तमां, सहिनाणी मुझ तेह॥प्रसव्यो केम बालक श्णे, दैवगति कोई एह ॥३॥ यंत्र उ घाड्यां घरतणा, पेगे नृप धसि मांहि ॥दीठी तनुज हुलरावती, मानवती सोबांहि ॥ ४ ॥ मानवतीयें कंतने,दीगे नयणे जाम ॥ सेजयकी ऊनी करी,लजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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