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( १९५) कन्याये मोतियें, वधाव्यो वसुधार ॥ सुगुणिजन सां जलो रे ॥१॥ नृपने लोक पगें पगें, प्रणमे धरिने नेह ॥ण आनंबरें आवियो, मानतुंग निजगेह ॥ सु० ॥२॥ सुलट सवे कीधा विदा, सनमानी सो बाहि ॥ एकाकी नृप आवियो, निज अंतेउरमां हि ॥ सु० ॥३॥ रतनवती श्रादें प्रिया, पियुना प्र णमी पाय ॥ लाज करी ऊनी सहू, आसने बेडगे राय ॥ सु० ॥ ४ ॥ पूढे नृपप्रेमदा जणी, मानवती विरतंत ॥अंगज केम जायोणे,कहोमुकागल तंत ॥सु॥५॥ खमखमखम सहु को हसी, कंत नणी कहे एम ॥ स्वामी मानवती तणी, कूडी कथा हुए केम ॥ सु०॥६॥ ए गुणवंती गोरमी, तनुज रमाडे वि शाल ॥ अमथी तो पिउमा विना, नवि प्रसवाए बाल ॥सु ॥ ॥ नाग्यवंत पियुमा तुमे, जे ए पाम्या नार ॥ तो सुतनो स्यो आसरो, धन्य धन्य तुम अवतार ॥ सु ॥ ७॥ एहना पुत्रने आपजो, पाट तुमारो नाह॥ए तुमने अजुवालशे, राखजो एह वो चाह ॥ सु ॥॥ जुर्म मुख तुम पुत्रनो, जश् ए कथंने गेह ॥श्हां सुं श्राव्या पाधरा, चूक्या अव सर एह ॥ सु०॥ १० ॥ तुमथी मानवती सती,
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