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रे ॥ सू ॥ मनह मनोरथ सिद्ध ॥ का० ॥ १३ ॥ रतनवती गणे माहरो रे ॥ सू० ॥ सफल थशे अव तार ॥ मा ॥ परणशे मुझने चोरिये रे ॥ सू० ॥ मालवपती सिरदार ॥ का ॥ १४ ॥ योगणनी जो जो कला रे ॥ सू० ॥ करशे खेल रसाल ॥ मा० ॥ मोहनविजयें वरणवी रे ॥ सू० ॥ ए एकत्रीशमी ढाल ॥ का ॥ १५॥
॥दोहा॥ ॥ योगणवेश उतारीने, पेहेख्यो अदभुत वेश ॥ वीण जपावी बागमां, आवी नयर निवेश ॥१॥रत नवती पासे गश्, मली घणे मनोहार ॥ रतनवती जा णे हिये, ए कुण सुंदर नार ॥२॥ पूढे आव्या कि हां थकी, कवण तुमारो नाम ॥ मानतुंगराजा तणी हुँ नु वडारण नाम ॥३॥ श्रावी गोणी थकी, मानवती मुक नाम ॥ रूपें अमो तमसारखी, नवि निरखी कोय वाम ॥४॥ मुझने नूपें मुकी अबे, तुमने जोवा काज ॥ तेमाटे श्रावी अखें, तुज मंदि रमां श्राज ॥५॥
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