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॥सू०॥ सुण एक मेरा विचार का ॥५॥ में योगी तें जोगियारे ॥ सू० ॥ चहेरा करे कलु लोग ॥ मा०॥ तेरे संगें सहेरमे रे ॥ सू ॥ केसे श्रावनका योग ॥ का॥६॥ में रहूंगीण बागमें रे॥सू०॥ तुं जा नगर मकार ॥ मा योगी सोही जाणियें रे।। सू०॥ राखे लोकाचार ॥ का० ॥७॥ व्याहके रतनवती त्रिया रे ॥ सू० ॥ तूं इत आए वेग ॥ मा० ॥ राखे जैसा हे तिसा रे ॥ सू० ॥ तेरे मेरे नेग ॥ का॥॥ फेर उऊोणि श्राजंगी रे ॥ सू० ॥रे नृप तेरे संग ॥ मा० ॥ योगणनी वाणी सुणी रे ॥ सू० ॥ पाम्यो नूपति रंग ॥ का॥ ए॥ योगण रहि ते वाडी रे ॥सू॥ नृप आयो पुरमांहि ॥माण ॥दलथंजण पण सांमुहो रे ॥ सू॥श्राव्यो धरि उबांहि ॥ का०१॥ मानतुंग अतिहेजसुं रे ॥ सू० ॥ पुरमें कीध प्रवेश ॥ मा० ॥ दीधो उतारो महेलमां रे ॥ सू० ॥ उत यो दल सुविशेष ॥ का ॥ ११॥ मानतुंग महि पालने रे ॥ सू० ॥ दलथंजण करे सेव ॥मा जोज न जगति नली करी रे ॥ सू० ॥ माने करीने देव ॥ का० ॥१२॥ रतनवतीने परणवा रे ॥ सू० ॥ सुंदर मुहुरत लीध ॥ माम् ॥ दक्षिणपति पुत्रीतणा
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