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________________ (१७) ती बाप ॥ मा ॥ खे॥२॥ रतनवतीयें एहवे रे, पण तुम ऊपर कीध ॥ मा ॥ तुमे पिण परण्या श्रावीने रे, सकल मनोरथ सिफ॥माणाखे ॥३॥रत नवतीलेश करी रे, चाल्या तमे जव साम ॥मा॥ तव जितशत्रु नूपति रे, मेली सेन्या ताम ॥ मा०॥ खेद ॥४॥ श्राव्यो मुंगीपट्टणे रे, करवा अतिहि विरोध ॥ मा० ॥ कहे बे द्यो ते कन्यका रे, नही तो करसुं युद्ध ॥ मा० ॥ खे॥५॥ दलथंनण राजा कने रे, तेहवो नथी कांश सेन ॥ मा० ॥ अणि बां धी सांहमी रे, नीडे जितशत्रुथी जेण ॥ मा०॥६॥ तेमाटे तुम तेडवा रे, मूक्यो बुं कारण तेण ॥ मा० ॥ मानतुंगें सवि सांजली रे, दतनी वात रसेण ॥मा॥ खे० ॥ ७॥ नृप मूळे वल घालिने रे, जुजबल तोली कृपाण ॥ मा० ॥ सुजटने कीधा साबता रे, पाठा खे ड्या केकाण ॥ मा० ॥ खे०॥ ॥ रतनवती रमणी जणी रे, वोलावी उजेण ॥ मा० ॥ नृप दक्षिण दिश सांमुहो रे, मूक्यो उपामी सेन ॥ मा० ॥ खे॥॥ मुंगीपट्टण श्राविया रे, वहेता केते दीस ॥ मा ॥ निसाणे मंका दीया रे हयवरनी हुश्हींस ॥ मा० ॥ खे० ॥ १०॥ दलथंजण राजा जणी रे, खबर थई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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