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________________ (११५) पडे, बो तुमे देवीसरूप ॥ पी० ॥ बो० ॥४॥ क्रोधे करी राय घास्यो जी ॥ बो॥ ऊंचे शब्द पुकास्यो जी ॥ बो० ॥ नृप कहे श्म अविचास्यो जी ॥ बो० ॥ तूं जीती हुँ हास्यो जी ॥ बो॥ फिट कुलहिणी निर्लज निगोमी, उत्नी सुं मुख आय पी॥ बो० ॥ ॥५॥हूं पण चूको पहेली जी ॥ बो ॥ जे योगण गई मेली जी ॥ बो० ॥ तस सोंपत करी चेली जी ॥ बो॥ होत तदा तुं सेली जी ॥ बो० ॥ पण यो गणना पेटमा उन्नी, होत तुं नारी निदान ॥ पी॥ बो० ॥ ६ ॥ बोली नाहगुं नारी जी ॥ बो ॥ श्म. कां कहो अविचारी जी ॥ बो० ॥ जाऊं तुम बलि हारी जी ॥ बो० ॥ म कहो वहतुं नारी जी ॥ बो॥ ए अंगज ने स्वामी तुमारो, मत आणो वि श्लेष ॥पी० ॥ बो० ॥ ७॥ हुँ बुं राउली दासी जी ॥ बो० ॥ बुं तुम तननी विलसी जी ॥ बो॥ तुम करुणा अन्यासी जी ॥ बो ॥ थयो सुत ए सुविलासी जी ॥ बोम् ॥ आपण किहां मिल्या हता स्वामी, जुलं उघामी नेण ॥ पी० ॥ बो॥ ॥॥ तुमे चूको कां कामी जी ॥ बो० ॥ हुँ किम चुकुं स्वामी जी ॥ बो० ॥ मुफमां नहि कांई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005386
Book TitleMantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages132
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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